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    नाबालिग की गोपनीयता पर दिल्ली हाईकोर्ट की दो टूक-जेजे बोर्ड के आदेश की प्रति नहीं दी जा सकती

    Updated: Thu, 25 Dec 2025 06:17 PM (IST)

    दिल्ली हाईकोर्ट ने नाबालिग की गोपनीयता पर सख्त रुख अपनाया है। अदालत ने स्पष्ट किया है कि जेजे बोर्ड के आदेश की प्रति किसी को भी नहीं दी जा सकती। यह फै ...और पढ़ें

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    विनीत त्रिपाठी, नई दिल्ली। दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि पीड़ित को जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड द्वारा आरोपित को बरी करने के आदेश की सत्यापित प्रति मांगने का कोई अधिकार नहीं है, क्योंकि ऐसे आदेशों के खिलाफ कोई अपील नहीं की जा सकती। न्यायमूर्ति स्वर्ण कांता शर्मा की पीठ ने कहा कि जुवेनाइल जस्टिस (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) एक्ट के तहत जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड द्वारा दिए गए बरी करने के आदेश के खिलाफ अपील पर साफ तौर पर रोक लगाता है।

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    गोपनीयता के आदेश का हो सकता है उल्लंघन 

    पीठ ने कहा कि जहां कानून में अपील का कोई अधिकार नहीं है, वहां चुनौती देने के मकसद से आदेश की सत्यापित मांगने का कोई संबंधित लागू करने योग्य अधिकार नहीं मांगा जा सकता।अदालत ने कहा कि ऐसी जानकारी देने से जेजे अधिनियम-2000 की धारा-21 के तहत गोपनीयता के आदेश का भी उल्लंघन हो सकता है। धारा 21 किसी भी जांच रिपोर्ट के प्रकाशन या सार्वजनिक करने पर रोक लगाती है।

    जेजे बोर्ड के आदेश की प्रति की मांग की गई

    इसके तहत कानून का उल्लंघन करने वाले नाबालिग का नाम, पता, या पहचान से जुड़ी कोई अन्य जानकारी बता सकती है। अदालत ने उक्त टिप्पणी व निर्णय के साथ नाबालिग यौन उत्पीड़न पीड़िता के पिता की याचिका को खारिज कर दिया। इसमें आरोपित को बरी करने के जेजे बोर्ड के आदेश की प्रति की मांग की गई थी।

    एक अलग बिल ऑफ राइट्स बनाने की मांग

    अदालत ने कहा कि इस प्रविधान का मकसद नाबालिग की निजता, गरिमा और भविष्य की संभावनाओं की रक्षा करना है और इसे सख्ती से लागू किया जाना चाहिए। इसके अलावा पीड़ित या उसके पिता के पास बरी करने के आदेश को चुनौती देने का अधिकार नहीं था। साथ ही अदालत ने पीड़िता के पिता की उस याचिका को भी खारिज कर दिया जिसमें यौन हिंसा से सुरक्षा के मकसद से कानूनों में सामंजस्य बिठाने और एक अलग बिल ऑफ राइट्स बनाने की मांग की गई थी।

    पिता ने एक प्रभावी तंत्र बनाने की भी की थी मांग 

    हालांकि, पीठ ने कहा कि याचिका में मांगी गई राहतें मौजूदा मामले के तथ्यों या किसी मौजूदा कानूनी कर्तव्य को लागू करने तक सीमित नहीं हैं, बल्कि इसके बजाय सामाजिक सुधार और विधायी कार्रवाई के लिए व्यापक निर्देश मांगे गए हैं।

    ऐसी याचिकाओं पर इस रिट याचिका में विचार नहीं किया जा सकता या उन्हें मंजूर नहीं किया जा सकता। पिता ने यौन उत्पीड़न पीड़ितों को मुआवजा देने और बांटने के लिए एक प्रभावी तंत्र बनाने की भी मांग की थी।

    कोर्ट ने कहा-विस्तृत कानूनी ढांचा पहले से है मौजूद

    हालांकि, कोर्ट ने कहा कि एक विस्तृत कानूनी ढांचा पहले से ही मौजूद है। अदालत ने कहा कि दिल्ली पीड़ित मुआवजा योजना- 2018 के तहत यौन उत्पीड़न/अन्य अपराधों की महिला पीड़ितों/जीवित बची महिलाओं के लिए अंतरिम और अंतिम मुआवजे के लिए प्रक्रिया, पात्रता, समय-सीमा और राशि तय की जाती है।

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