Delhi Pollution: दिल्ली में प्रदूषण से जंग लड़ने के दावे हवाई, 50 प्रतिशत सड़कों की ही मशीनों से हो रही सफाई
दिल्ली में प्रदूषण से निपटने के सरकारी दावे खोखले साबित हो रहे हैं। हर साल नई योजनाएँ बनती हैं, लेकिन प्रदूषण का स्तर जस का तस बना रहता है। वर्तमान मे ...और पढ़ें
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इंडिया गेट के पास छाए स्मॉग का नजारा। फोटो- जागरण
निहाल सिंह, नई दिल्ली। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली और पूरा एनसीआर वायु प्रदूषण से जूझ रहा है। हर साल प्रदूषण बढ़ने पर तमाम दावे और घोषणाएं विभिन्न एजेंसियों और विभागों द्वारा किए जाते हैं, लेकिन जमीनी स्तर पर इन पर कोई काम नहीं होता है। यही वजह है कि प्रदूषण को कम करने के लिए संसाधनों को बढ़ाने के दावे तो कई वर्षों से हो रहे हैं, लेकिन यह हकीकत में नहीं बदल पा रहे हैं।
आलम यह है कि 2800 किलोमीटर क्षेत्र ऐसा है जिसमें मैकेनिकल रोड स्वीपिंग मशीनों से सफाई होनी चाहिए, लेकिन 1400 किलोमीटर सड़कों की ही सफाई हो पा रही है। इतना ही नही प्रतिदिन भी इन सड़कों पर सफाई नहीं हो पा रही है।
एक दिन छोड़कर एक दिन इन मशीनों से सफाई हो रही है। इससे धूल के खिलाफ प्रदूषण से जंग लड़ने में प्रशासन के दावा केवल दावा ही बनकर रह जाता है। जबकि खतरनाक हो चुकी हवा में तो अतिरिक्त संसाधनों को लगाने की जरुरत हैं पर स्थिति यह है कि जरुरत के हिसाब से भी संसाधन दिल्ली में उपलब्ध नहीं है।
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राजधानी में धुंध के बीच गुजरते वाहन।
छोटी कूड़ा उठाने वाली मशीनों का इस्तेमाल क्यों नहीं?
दिल्ली में इस वर्ष भी 2700 करोड़ की लागत से एमसीडी ने 10 वर्षों के लिए करीब 140 मैकेनिकल रोड स्वीपिंग (एमआरएस) मशीनों, 1000 छोटी कूड़ा उठाने वाली मशीनों को अपने बेड़े में शामिल करने की घोषणा की है, लेकिन इन का उपयोग फिलहाल के वायु प्रदूषण को कम करने के लिए नहीं किया जा सकेगा।
अगले वर्ष जुलाई अगस्त में ही यह बशर्तें आ पाएगी कि एमसीडी की टेंडर प्रक्रिया पहले ही प्रयास में सफल हो जाए। अगर, प्रक्रिया पहले ही प्रयास में सफल नहीं होती है तो अगले वर्ष भी इन मशीनों को दिल्ली की सड़कों पर उतराने का मामला खटाई में पड़ सकता है।
दिल्ली में फिलहाल एमसीडी के पास 52 एमआरएस हैं। जो कि 1400 किलोमीटर लोक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी) की 60 फिट से चौड़ी सड़कों पर चलती हैं। अलग-अलग सड़कों पर चलने वाली इन मशीनों से एमसीडी का दावा है कि 150 टन प्रतिदिन मिट्टी साफ की जाती है।
फिलहाल केंद्र सरकार को वायु प्रदूषण के खिलाफ एमसीडी ने जो एक्शन प्लान दिया है उसमें बताया कि है कि 18 एमआरएस इस साल के अंत तक एमसीडी के बेडे़ में शामिल हो जाएगी। इससे कुल मशीनों की संख्या 70 हो जाएगी।
इसमें 14 मशीनें नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम (एन-कैप ) के जरिये मिल रही हैं जबकि चार मशीनें केंद्रीय शहरी विकास फंड के तहत मिल रही हैं। जबकि 30 से 60 फिट चौड़ी सड़कों पर 70 मशीनों की जरुरत हैं। इतना ही नहीं प्रतिदिन इन मशीनों को सड़कों पर सफाई के लिए लगाया जाए तो 234 कुल मशीनों की आवश्यकता है लेकिन चल रही है मात्र 52।
बार-बार बदलता रहा है दिल्ली सरकार का प्लान
दिल्ली में एमआरएस मशीनों और धूल के प्रदूषण को खत्म करने के लिए बार-बार दिल्ली सरकार और एमसीडी का प्लान बदलता रहा है। योजना में स्थायीत्व की कमी से यह समस्या दूर नहीं हो पा रही है। वर्ष 2023 में तत्कालीन आप की सरकार ने कैबिनेट से निर्णय पास किया था कि वह एमसीडी की सड़कों की धुंलाई और सफाई करेगी।
यह प्रस्ताव एमसीडी को जब सरकार की ओर से भेजा गया तो एमसीडी ने इसको इन्कार कर दिया। क्योंकि तत्कालीन निगमायुक्त ज्ञानेश भारती ने सड़कों की सफाई को एमसीडी की प्रारंभिक ड्यूटी बताया था। इसके बाद फिर आप सरकार ने ही 2023-24 में ही यह कार्य एमसीडी से कराने के लिए कहा था लेकिन वह योजना भी सिरे नहीं चढ़ पाई। अब दिल्ली सरकार एमसीडी को 140 नई एमआरएस खरीदने के साथ ही 1000 कूड़ा उठाने वाली मशीनें दिलवाने की बात कर रही है लेकिन यह कब तक सिरे चढ़ पाएगा यह तो भविष्य ही बताएगा।
नंबर गेम
- 2800 किलोमीटर इलाका ऐसा हैं जो 60 फिट से चौड़ी सड़कों वाला हैं जहां पर एमआरएस से सफाई होनी चाहिए
- 1400 किलोमीटर केवल पीडब्ल्यूडी इलाके में एमसीडी की 52 एमआरएस मशीनें चल रही हैं
- 18 मशीनें इस साल के अंत तक एमसीडी के बेड़े शामिल हो जाएगी जबकि पांच मशीनें एनडीएमसी के बेड़े में शामिल होंगी
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आप सरकार ने प्रदूषण के नाम पर सिर्फ राजनीति की थी जबकि अब तीनों (केंद्र, राज्य और निगम ) सरकार मिलकर प्रदूषण के खिलाफ ठोस कार्य कर रही है। जो मशीनों के खरीदने का कार्य लंबित था उसे हम तय समय में पूरा करेंगे। 31 दिसंबर तक 18 मशीनें एमसीडी को मिल जाएगी।
-राजा इकबाल सिंह, महापौर, दिल्ली

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