दिल्ली में पहले भी दो बार की जा चुकी है क्लाउड सीडिंग, जानिए कृत्रिम बारिश में कितना आता है खर्च
Delhi artificial rain : भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान, पुणे के अनुसार, दिल्ली में पहले भी दो बार कृत्रिम वर्षा का प्रयास किया गया है। 70 के दशक में नेशनल फिजिकल लेबोरेट्री ने भी ऐसा प्रयास किया था। महाराष्ट्र के सोलापुर में भी प्रयोग किए गए, जिससे वर्षा में वृद्धि हुई। वैश्विक स्तर पर 56 से अधिक देशों में यह तकनीक उपयोग में है।

राज्य ब्यूरो, नई दिल्ली। भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान (आइआइटीएम) पुणे की रिपोर्ट के अनुसार राजधानी में पहले भी दो बार कृत्रिम वर्षा का प्रयास किया जा चुका है। पहली बार 1957 के मानसून में किया गया था। इसके बाद इसे 1971-72 की सर्दियों में भी किया गया।
70 के दशक का कृत्रिम वर्षा का ट्रायल नेशनल फिजिकल लेबोरेट्री कैंपस ने किया था। उस दौरान सेंट्रल दिल्ली के 25 किमी के हिस्से को कवर किया गया था। जमीन पर लगे जनरेटरों से सिल्वर आयोडाइड के कणों को छोड़ा गया था और बादलों की नमी को वर्षा की बूंदों में बदला गया था। उस दौरान इस पूरी प्रक्रिया के लिए 22 दिन का चयन किया गया था।
दिसंबर 1971 से मार्च 1972 के बीच यह दिन चुने गए थे। इस दौरान 11 दिनों तक क्लाउड सीडिंग की प्रक्रिया हुई। प्राथमिक विश्लेषण के दौरान इस प्रक्रिया के दौरान वर्षा बढ़ गई थी। अब उस प्रक्रिया के 53 साल बाद मंगलवार को एक बार फिर राजणानी में इस प्रक्रिया का ट्रायल हुआ है।
देश के अन्य हिस्सों में भी हुई कृत्रिम वर्षा
वहीं आइआइटीएम एरोसोल इंटरेक्शन और रेनफाल एनहेंसमेंट एक्सपेरिमेंट प्रोग्राम के तहत देश के कुछ अन्य हिस्सों में भी वैज्ञानिकों ने बीते एक दशक में कृत्रिम वर्षा करवाई है। महाराष्ट्र के सोलापुर में 2017-19 के दौरान कृत्रिम वर्षा एक छोटे इलाके में करवाई गई।
इन दो सालों के दौरान 276 बादलों पर स्टडी की गई और क्लाउड सीडिंग का टेस्ट किया गया। इनकी रिपोर्ट के अनुसार इस प्रक्रिया से कुछ इलाकों में 48 प्रतिशत तक वर्षा बढ़ी। औसत तौर पर 100 वर्ग किमी के क्षेत्र में 18 प्रतिशत वर्षा बढ़ी। रिपोर्ट के अनुसार अकेले सोलापुर में इस तकनीक से 867 मिलियन लीटर अतिरिक्त पानी कृत्रिम वर्षा से बरसा।
56 से अधिक देशों में हो चुकी है कृत्रिम वर्षा
56 से अधिक देशों में अब तक वैश्विक स्तर पर कृत्रिम वर्षा हो चुकी है। इनमें आस्ट्रेलिया, चीन, रसिया, थाईलैंड, यूएई और यूएस जैसे देश शामिल है।
क्लाउड सीडिंग का खर्च
क्लाउड सीडिंग में आने वाला खर्च कई चीजों पर निर्भर करता है। इसमें जगह, तरीके और आकार सब चीजों का आंकलन होता है। छोटे प्रोजेक्ट में लगभग 12.5 लाख से 41 लाख रुपये खर्च हो सकते हैं। बडे़ प्रोजक्ट पर 8 से 12 करोड़ रुपये तक खर्चा आता है।
राजधानी में क्लाउड सीडिंग ट्रायल के लिए कुल 3.21 करोड़ रुपये मंजूर हुए हैं। यह पांच ट्रायल के लिए हैं। हर ट्रायल की कीमत 55 लाख से 1.5 करोड़ रुपये है। शुरूआती सेटअप पर 66 लाख रुपये अतिरिक्त का संभावित खर्च बताया गया है। 100 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र के लिए 5-6 दिनों की राहत में प्रति किमी एक लाख रुपये खर्च आएगा।
इन राज्य सरकारों ने भी क्लाउड सीडिंग का प्रयोग किया
- 2012 कर्नाटक : तीन नदी बेसिन परियोजना
- 2003-2016 : आंध्र प्रदेश क्लाउड सीडिंग
- 2017, 2019 कर्नाटक : वर्षाधारे परियोजना
- 2019 महाराष्ट्र : वर्षा संवर्धन परियोजना
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