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    क्या दिल्ली में कृत्रिम वर्षा के प्रयासों पर फिरा पानी ? दो बार की गई क्लाउड सीडिंग पर बादल गरजे तक नहीं

    Updated: Tue, 28 Oct 2025 09:40 PM (IST)

    दिल्ली सरकार ने पश्चिमी विक्षोभ के बीच क्लाउड सीडिंग के दो परीक्षण किए। आईआईटी कानपुर के विमान से सिल्वर आयोडाइड का मिश्रण बादलों में छोड़ा गया, पर वर्षा नहीं हुई। पर्यावरण मंत्री ने इसे सफल प्रयास बताया और फरवरी 2025 तक और परीक्षण की योजना है। क्लाउड सीडिंग का उद्देश्य विभिन्न आर्द्रता स्तरों पर वर्षा की संभावनाओं का आकलन करना है। इस परियोजना की लागत 3.21 करोड़ रुपये है।

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    दिल्ली में क्लाउड सीडिंग से नहीं हो सकी वर्षा। जागरण

    राज्य ब्यूरो, नई दिल्ली। पश्चिमी विक्षोभ के कारण बादलों से घिरे आसमान में दिल्ली सरकार ने मंगलवार को बुराड़ी के आसपास उत्तर-पश्चिम दिल्ली में क्लाउड सीडिंग के दो परीक्षण किए। दोनों परीक्षणों में आठ-आठ फ्लेयर्स से सिल्वर आयोडाइड और सोडियम क्लोराइड यौगिकों का मिश्रण बादलों में छोड़ा गया। हालांकि दिल्ली में वर्षा एक बार भी नहीं हुई - खासकर उन इलाकों में जो उड़ान पथ के मार्ग में थे।

    दिल्ली के पर्यावरण मंत्री मनजिंदर सिंह सिरसा ने इसे नमी के अलग-अलग स्तर पर कृत्रिम वर्षा की संभावना का आकलन करने का दूसरा और तीसरा ''सफल'' प्रयास बताया। साथ ही कहा कि आंकड़े जुटाने के लिए फरवरी तक राजधानी में ऐसे और परीक्षण करने की योजना है।

    उन्होंने कहा, '23 अक्टूबर को हुए पहले परीक्षण के बाद मंगलवार को दिल्ली में दो और परीक्षण किए गए। ये आईआईटी कानपुर के सेसना विमान द्वारा किए गए, जो मेरठ की तरफ से दिल्ली में दाखिल हुआ।आठ फ्लेयर्स दागे गए, जो खेकड़ा, बुराड़ी, उत्तरी करोल बाग, मयूर विहार, सादिकपुर और भोजपुर से गुजरते हुए मेरठ लौट आए।' उन्होंने कहा, छोड़े गए प्रत्येक फ्लेयर का वजन लगभग 2 से 2.5 किलोग्राम था और प्रत्येक का इस्तेमाल लगभग 2.5 मिनट तक किया गया था।

    उन्होंने बताया, 'इस प्रकार सीडिंग प्रक्रिया लगभग 18 से 20 मिनट तक चली। हमारा उद्देश्य विभिन्न आर्द्रता स्तरों पर सीडिंग की संभावनाओं के बारे में जानकारी इकट्ठा करना है ताकि यह समझा जा सके कि किस प्रकार की वर्षा संभव है।' उन्होंने कहा, मौसम विभाग के अनुसार हवा की दिशा उत्तरी थी और आर्द्रता आदर्श स्थिति यानी 50 प्रतिशत से कम थी। उन्होंने कहा, 'यदि यह सफल रहा तो हम इसके लिए एक दीर्घकालिक योजना भी तैयार करेंगे।'

    मालूम हो कि क्लाउड सीडिंग एक मौसम परिवर्तन तकनीक है जो बादलों की वर्षा उत्पन्न करने की क्षमता में सुधार करती है। सिल्वर आयोडाइड और अन्य यौगिकों को बादलों में सूक्ष्म भौतिक परिवर्तन लाने के लिए डाला जाता है, जिससे बर्फ के क्रिस्टल या वर्षा की बूँदें बनने को बढ़ावा मिलता है।

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    मंगलवार के दो नवीनतम प्रयास 23 अक्टूबर को किए गए पहले प्रयास के बाद किए गए हैं, जिसके बाद दिल्ली के मुख्यमंत्री ने 29 अक्टूबर को एक पूर्ण प्रयास की घोषणा की थी। शहर में पर्याप्त बादल छाए रहने के कारण, इस परीक्षण को एक दिन के लिए टाल दिया गया था। 23 अक्टूबर को भी कोई वर्षा दर्ज नहीं की गई।

    दिल्ली कैबिनेट ने सात मई को पांच क्लाउड-सीडिंग परीक्षणों के प्रस्ताव को मंजूरी दी थी, जिसकी कुल परियोजना लागत 3.21 करोड़ रुपये थी। यानी प्रत्येक परीक्षण की लागत लगभग 64 लाख रुपये।

    आईआईटी कानपुर के सहयोग से मई के अंत और जून की शुरुआत में ये परीक्षण किए जाने की घोषणा की गई थी, लेकिन दक्षिण-पश्चिम मानसून की शुरुआत के कारण इन्हें अगस्त के अंत और सितंबर की शुरुआत तक के लिए टाल दिया गया था। क्षेत्र में मानसून की वर्षा जारी रहने के कारण यह दूसरी समय-सीमा भी टाल दी गई। दक्षिण-पश्चिम मानसून आधिकारिक तौर पर 24 सितंबर को इस क्षेत्र से विदा हो गया।