साउथ अफ्रीका क्रिकेट में चलता है कोटा सिस्टम, प्लेइंग 11 को चुनने का तरीका है बेहद अनोखा
दक्षिण अफ्रीका क्रिकेट में आरक्षण का नियम है। यह टेस्ट, वनडे और टी20 इंटरनेशनल समेत घरेलू क्रिके में लागू होती है। टीम की प्लेइंग 11 का चुनाव करते स ...और पढ़ें

भारत दौरे पर है साउथ अफ्रीका टीम। इमेज- एक्स
स्पोर्ट्स डेस्क, नई दिल्ली। आमतौर पर आरक्षण की व्यवस्था शिक्षा और सरकारी नौकरी की क्षेत्र में देखने को मिलती है। इससे समाज के कमजोर और पिछड़े वर्ग का उत्थान देखने को मिलता है। साथ ही उन्हें मुख्य धारा से जोड़ने का काम किया जाता है। साउथ अफ्रीका क्रिकेट टीम की एक अनोखी बात है जो कम ही क्रिकेट फैंस को पता होगी।
दरअसल, दक्षिण अफ्रीका क्रिकेट में आरक्षण का नियम है। यह टेस्ट, वनडे और टी20 इंटरनेशनल समेत घरेलू क्रिके में लागू होती है। टीम की प्लेइंग 11 का चुनाव करते समय इसका ध्यान रखा जाता है। ऐसे में आइए इस कोटा सिस्टम के बारे में जानते हैं।
इसलिए की गई शुरुआत
कोटा सिस्टम का उद्देश्य रंगभेद के बाद राष्ट्रीय टीम में सभी नस्लों के खिलाड़ियों की भागीदारी सुनिश्चित करना है। नस्लीय भेदभाव को खत्म करने के लिए दक्षिण अफ्रीकी टीम में कोटे की शुरुआत की गई। दक्षिण अफ्रीका क्रिकेट में आरक्षण के तहत प्लेइंग 11 में कम से कम छह अश्वेत खिलाड़ी (नॉन-व्हाइट) होने चाहिए। इन 6 प्लेयर्स में से कम से कम दो अश्वेत अफ्रीकी मूल के होने चाहिए।
टीम में इनका प्रतिशत कम से कम 55 प्रतिशत होना चाहिए। यह रूल साल 2016 में लागू किया गया था। इस नियम को "परिवर्तन नीति" या "टारगेट" के तहत लागू किया गया। बता दें कि यह रूल किसी एक मैच के लिए नहीं, बल्कि पूरे सीजन के लिए औसत के आधार पर मापा जाता है। इंटरनेशनल के अलावा घरेलू क्रिकेट में भी कोटा सिस्टम देखने को मिलता है।
आलोचना होती रहती है
साउथ अफ्रीका के कोटा सिस्टम की काफी आलोचना भी होती है। आरोप लगते हैं कि इस सिस्टम के चलते कई प्रतिभाओं को मौका नहीं मिला। इंग्लैंड के केविन पीटरसन भी साउथ अफ्रीका के प्लेयर थे। हालांकि, कोटा सिस्टम के चलते उनकी टीम में जगह नहीं बन पाई और उन्होंने इंग्लैंड का रुख किया। पीटरसन करीब 15 साल तक इंग्लैंड के लिए खेले। पीटरसन की तरह ही क्रिस स्मिथ, एंड्रयू स्ट्रॉस, माइकल लंब, टॉम करन और जेसन रॉय भी दक्षिण अफ्रीका से हैं। नीदरलैंड टीम में भी कई साउथ अफ्रीका के प्लेयर हैं।

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