बैजबॉल ने मांगी भीख, गंभीर-गिल ने आलोचना के बाद भी उठाया सिर
इंग्लैंड क्रिकेट टीम बीते कुछ सालों से लगातार टेस्ट क्रिकेट में बैजबॉल की हुंकार भरती रही है। उसने अपनी इस बैजबॉल का डंका पीटा है। इस पर उसे गर्व था। हालांकि मैनचेस्टर में यही बैजबॉल भारत के सामने भीख मांगती नजर आई। टीम इंडिया के कोच और कप्तान की आलोचना हुई लेकिन मैच ड्रॉ कराने के बाद उन्होंने सिर उठा लिया।

अभिषेक उपाध्याय, स्पोर्ट्स डेस्क, नई दिल्ली। टेस्ट क्रिकेट को ड्रॉ होते हुए देखा है? देखा ही होगा। कई बार टेस्ट मैच ड्रॉ होते हैं,लेकिन कई ड्रॉ जीत की तरह होते हैं जिन्हें टीमें अपने कंधों पर किसी स्टार की तरह पहनती हैं। भारतीय क्रिकेट टीम ने इंग्लैंड के खिलाफ जिस तरह से मैनचेस्टर टेस्ट मैच ड्रॉ कराया वो जीत ही है। ऐसी जीत जिसे युवा कप्तान शुभमन गिल की टीम इंडिया गर्व के साथ अपने सीने पर लपेटे फिरेगी और दुनिया को दिखाएगी। ये सच है। ये ड्रॉ आसान नहीं था।
अब ये कहा जाए कि ये ड्रॉ सिर्फ जीत नहीं बल्कि उससे आगे की कहानी है तो गलत मत मानिएगा। इसके कारण हैं। इस टीम इंडिया ने वो कर दिखाया है जिसे इंग्लैंड अपने सिर पर लेकर पूरी दुनिया में घूमती थी। जहां इंग्लैंड की टीम जाती थी इसी बात का अलाप लगाए रहती थी। एक ही बात जपती थी। बैजबॉल, बैजबॉल।
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क्या है बैजबॉल?
न्यूजीलैंड के पूर्व कप्तान और अपनी तूफानी बैटिंग के लिए मशहूर ब्रेंडन मैक्कलम जब से इंग्लैंड की टेस्ट टीम के कोच बने तब से इंग्लैंड ने बैजबॉल खेलना शुरू कर दिया। बैज मैक्कलम का निकनेम था और उनकी ही तरह अटैकिंग क्रिकेट खेलना ही बैजबॉल है। इंग्लैंड यही कर रही थी। बेन स्टोक्स की कप्तानी में टीम मैदान पर इस बात को पूरी तरह से अंजाम देती आ रही थी। इसके तहत इंग्लैंड की टीम किसी भी सूरत में अटैक बंद नहीं करेगी और सिर्फ और सिर्फ जीत के लिए खेलेगी। ड्रॉ का तो सवाल ही नहीं।
बैजबॉल ने मांगी ड्रॉ की भीख
अब भारत और इंग्लैंड के बीच खेले गए चौथे टेस्ट मैच के आखिरी दिन, आखिरी सेशन का वो पल याद करिए जब बैजबॉल को अपनी बांहों पर बाजुबंद की तरह पहनने वाले, उसे अपने सिर पर कोहीनूर (भारत से चुराया हुआ) की तरह सजाने वाले, अपने कानों में कुंदन की तरह लटकाने वाले और अपने सीने पर किसी कवज की तरह पहनने वाले इंग्लैंड के कप्तान स्टोक्स रवींद्र जडेजा और वॉशिंगटन सुंदर से मैच ड्रॉ पर खत्म करने के लिए कह रहे थे। शुद्ध भाषा में कहें तो उनसे ड्रॉ की भीख मांग रहे थे।
टीम इंडिया के हेड कोच गौतम गंभीर की इस सीरीज में जमकर आलोचना हुई। उनके फैसलों पर सवाल उठे, उनके चयन पर पर हंगामा बरपा। उनके फैसले किसी की समझ में नहीं आ रहे थे। पूर्व क्रिकेटर उनको जमकर निशाने पर ले रहे थे और ये सभी जायज भी था। गंभीर ने सवाल उठाने वाले फैसले किए भी और उनसे सवाल पूछे जाने भी चाहिए। बावजूद इसके गंभीर की टीम जिसकी कप्तानी शुभमन गिल कर रहे थे उसने बैजबॉल की हुंकार भरने वाली इंग्लैंड को ये कहने पर मजबूर कर दिया, "ड्रॉ करा लो यार"
ये जीत है। अब ये जीत गंभीर के अडिग फैसलों की है जो किसी की समझ में नहीं आए तो ये उनकी किस्मत है। लेकिन ये जीत टीम इंडिया के युवा खिलाड़ियों के जुझारूपन की भी है। उस मांडसेट की भी है कि डरेंगे नहीं। कप्तान गिल भी इस सीरीज में निशानो पर रहे। उनकी कप्तानी पर सवाल उठे। फिर भी ये सफलता उनके ही हिस्से आई जिसमें इंग्लैंड की बैजबॉल ने दम तोड़ दिया। घुटने टिका दिए।
एजबेस्टन में दिखी थी झलक
मैनचेस्टर में तो इंग्लैंड ने मुंह से कहकर ड्रॉ मांग लिया। अब एजबेस्टन याद करिए। इंग्लैंड पर हार का संकट था और आकाशदीप, मोहम्मद सिराज हावी थे। तब इंग्लैंड की बैजबॉल कहां घुस गई थी पता नहीं चला था। इंग्लैंड के बल्लेबाज आखिरी दिन जीत के लिए नहीं ड्रॉ के लिए खेल रहे थे। मैनचेस्टर और एजबेस्टन में अंतर बस जुबान का था। हां, एजबेस्टन में भी अगर इंग्लैंड फील्डिंग कर रही होती तो वहां भी मुंह से ड्रॉ मांग लेती।
इंग्लैंड की बैजबॉल ने भारत के हाथों में दम तोड़ दिया है। लाश उठाने स्टोक्स और मैक्कलम नहीं आएंगे।
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