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    टेस्ट क्रिकेट को बचाना है तो बैजबॉल और 'गैगबॉल' से बचना होगा, नहीं तो हो जाएगा नुकसान

    Updated: Mon, 22 Dec 2025 04:14 PM (IST)

    ब्रेंडन मैक्कलम और गौतम गंभीर की कोचिंग में इंग्लैंड और भारतीय टीम ने टेस्ट में निराशाजनक प्रदर्शन किया है। इसी कारण इन दोनों की जमकर आलोचना भी की जात ...और पढ़ें

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    कोच गौतम गंभीर और ब्रेंडन मैक्कलम टेस्ट में हुए फेल

    स्पोर्ट्स डेस्क, नई दिल्ली। टेस्ट क्रिकेट को बचाने के लिए आईसीसी कई तरह के कदम उठा रहा है। इसके लिए वो डे-नाइट टेस्ट मैच भी लेकर आए और टेस्ट चैंपियनशिप भी। हालांकि, आईसीसी के साथ-साथ टीमों पर भी जिम्मेदारी है कि वह टेस्ट क्रिकेट को बचाए रखें। इसके लिए जरूरी है कि टेस्ट क्रिकेट की शैली को बनाए रखा जाए और अगर इसमें बदलाव भी किया जाए तो ये सुनिश्चित किया जाए की टेस्ट क्रिकेट की जो जरूरत है उससे कोई समझौता नहीं हो। लेकिन इंग्लैंड के कोच ब्रेंडन मैक्कलम और भारत के कोच गौतम गंभीर की हालिया सोच ने टेस्ट क्रिकेट को काफी नुकसान पहुंचाया है और इन दोनों की सोच ने टेस्ट क्रिकेट की बेसिक बात को पूरी तरह से नजरअंदाज किया है।

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    ब्रेंडन मैक्कलम साल 2022 में इंग्लैंड की टेस्ट टीम के कोच बने। उनके आने के बाद एक टर्म चलन में आया। ये था बैजबॉल। बैज मैक्कलम का निकनेम था और वह अपनी आक्रामक क्रिकेट खेलने के लिए जाने जाते थे। उन्होंने इसी आक्रामकता को इंग्लैंड की टीम में थोपने की कोशिश की और इसी कारण इसे बैजबॉल नाम दिया गया।

    गौतम गंभीर साल 2024 में भारत के कोच बने और उनके आने के बाद टीम इंडिया का टेस्ट में बुरा हाल हुआ है। भारत अपने घर में बादशाह समझा जाता था, लेकिन पहले न्यूजीलैंड और फिर साउथ अफ्रीका ने उसे उसके घर में आकर हरा दिया। ये आसान नहीं था, लेकिन गंभीर के कोच बनने के बाद टीम इंडिया ने जिस तरह की क्रिकेट खेली है उसके कारण भारतीय टीम घर में भी कमजोर लगी है।

    अति आक्रामकता है कारण

    गंभीर और मैक्कलम की सोच में अति आक्रामकता है जो इंग्लैंड और भारत दोनों पर हावी पड़ी है। हालांकि, तुलना की जाए तो इंग्लैंड की टीम गंभीर की टीम से आगे है। लेकिन गंभीर ने टेस्ट क्रिकेट की पारंपरिक शैली में भी बदलाव किया और विशेषज्ञ खिलाड़ियों की जगह ऑलराउंडरों को तरजीह दी जिसका भारत को नुकसान हुआ।

    इंग्लैंड ने बैजबॉल अपनाई तब से इंग्लैंड का टेस्ट में ग्राफ गिरा ही है। वह एक भी बार टेस्ट चैंपियनशिप के फाइनल में जाने की रेस में नहीं थी। उसे पाकिस्तान में जरूर जीत मिली, लेकिन उसका कारण पाकिस्तान की टीम की कमजोरियां थीं। टेस्ट क्रिकेट में आक्रामकता होनी चाहिए। ठीक वैसे ही जैसे वीरेंद्र सहवाग थे, जैसे ट्रेविस हेड हैं। लेकिन ऐसे एक-दो खिलाड़ी होते हैं जिनका अंदाज इसी तरह का होता है। अगर पूरी टीम इसी तरह की क्रिकेट खेलने लगी तो ये ठीक नहीं होगा क्योंकि हर कोई आक्रामक नहीं खेलता।

    टेस्ट क्रिकेट का व्यवहार है कि यहां पांच दिन खेलने वाले खिलाड़ी चाहिए होते हैं जो सेशन दर सेशन अपनी पकड़ मजबूत करते हैं और जानते हैं कि विकेट पर कैसा खेलना है। सही मायनों में स्पेशलिस्ट जिन्हें पता है कि टेस्ट क्रिकेट में बल्लेबाजी कैसे की जाती है। ऐसा नहीं है कि इंग्लैंड के पास ऐसे बल्लेबाज नहीं थे। बिल्कुल थे, लेकिन बैजबॉल खेलने की चाहत ने उनको अपना व्यवहार बदलने को मजबूर किया और यही कारण था कि जो रूट जैसा बल्लेबाज जब बैजबॉल अपना रहा था तो फेल हुआ। बाद में उन्हें समझ में आया कि उनकी शैली क्या है और वह इसी पर लौटे। नतीजा सभी के सामने है। रूट टेस्ट में सबसे ज्यादा रन बनाने के सचिन तेंदुलकर के रिकॉर्ड को तोड़ने के करीब हैं।

    इंग्लैंड ने अपनी टीम में टेस्ट स्पेशलिस्ट तो रखे लेकिन उन पर आक्रामकता थोपने की कोशिश की। यही कारण है कि इंग्लैंड कई बार जीते हुए मैच भी हार गया। ये आक्रामकता उसकी गेंदबाजी, रणनीति, बल्लेबाजी सभी में दिखी और इस कोशिश में वह टेस्ट क्रिकेट को उस धैर्य, ठहराव को भूल गए जो जीत के लिए सबसे ज्यादा जरूरी समझा जाता था।

    गंभीर ने ऑलराउंडरों को दी तरजीह

    अगर गंभीर की बात की जाए तो उन्होंने स्पेशलिस्ट खिलाड़ियों को पूरी तरह से नजरअंदाज किया और ऐसे खिलाड़ियों को तरजीह दी जो ऑलराउंडर हैं या फिर ऐसे खिलाड़ियों को चुना जो गेंदबाजी और बल्लेबाजी दोनों से टीम में योगदान दे सकें। यही कारण रहा है कि उन्होंने वॉशिंगटन सुंदर को टेस्ट में आजमाया और कुलदीप यादव को लगातार नजरअंदाज किया। यही कारण है कि उन्होंने सरफराज खान, ऋतुराज गायकवाड़ जैसे प्योर टेस्ट बल्लेबाजों को टीम से बाहर रखा है।

    गेंदबाजी में भी उन्होंने पूरी कोशिश की कि ऐसे खिलाड़ी लेकर आएं जो जरूरत पड़ने पर बल्ले से भी काम कर सकें। इसी क्रम में मोहम्मद शमी को नजरअंदाज कर हर्षित राणा को प्राथमिकता दी गई। टेस्ट बिल्कुल अलग खेल है और यहां वही खिलाड़ी लंबी रेस का घोड़ा होता है जो जानता है कि पांच दिन की क्रिकेट को कैसे खेला जाता है न कि वो जो टी20 में चार ओवर डाल और 20 बॉल में 40 रन बनाकर कुछ ही घंटों में मैच समाप्त करने की फिराक में होते हैं।

    ऑस्ट्रेलिया और साउथ अफ्रीका हैं नजीर

    भारत और इंग्लैंड दोनों के सामने ऑस्ट्रेलिया और साउथ अफ्रीका की टीमें बेहतरीन उदाहरण हैं। दोनों ही टीमों ने टेस्ट के स्पेशलिस्ट को जगह दी और उन्हें बचाकर भी रखा। नतीजा ये रहा कि 2023 में टेस्ट चैंपियनशिप ऑस्ट्रेलिया ने जीती और 2025 में साउथ अफ्रीका ने। साउथ अफ्रीका ने तो भारत को भारत में हरा दिया। बर्बादी के लिए देखना है तो वेस्टइंडीज का उदाहरण लिया जा सकता है जिसकी टी20 शैली ने उसके पास टेस्ट खिलाड़ी ही नहीं छोड़े हैं और आज उस टीम का क्या हाल है ये सभी के सामने है।

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