RBI ने स्टॉक मार्केट के लिए किए कई रिफॉर्म्स, अब शेयरों पर मिलेगा ₹1 Cr तक का लोन; IPO फाइनेंसिंग लिमिट हुई ₹25 लाख
आरबीआई (RBI MPC Decisions) ने शेयर बाजार में सुधार के लिए कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए हैं। बैंकों को विलय और अधिग्रहण के लिए आसानी से फाइनेंस करने की अनुमति दी गई है। शेयरों पर लोन की सीमा 20 लाख से बढ़ाकर 1 करोड़ रुपये कर दी गई है और आईपीओ फाइनेंसिंग की सीमा भी बढ़ाई गई है। इन सुधारों का उद्देश्य कंपनियों को आसान शर्तों पर लोन उपलब्ध कराना है।

नई दिल्ली। भारतीय रिजर्व बैंक (RBI MPC Decisions) ने बुधवार को मॉनेटरी पॉलिसी घोषणा के साथ शेयर बाजार से जुड़े कई रिफॉर्म्स का भी एलान किया। इन रिफॉर्म्स को एक दशक से भी ज्यादा समय बाद किए गए बड़े सुधारों में गिना जा रहा है, जिनका मकसद ट्रंप टैरिफ का सामना करना, कंपनियों को क्रेडिट यानी लोन प्रोवाइड करना और कैपिटल मार्केट की गतिविधियों को और बढ़ाना है।
आरबीआई की तरफ से किए गए एलानों के तहत बैंक अब मर्जर और अधिग्रहण (अन्य कंपनियों की खरीदारी) और आईपीओ (IPO) को ज्यादा आसानी से फाइनेंस कर सकते हैं, जबकि शेयरों और लिस्टेड डेट सिक्योरिटीज पर लोन की सीमा बढ़ा दी गई है। इन उपायों का असल मकसद 10,000 करोड़ रुपये से अधिक के बैंक लोन वाली कंपनियों के लिए उधार नियमों को आसान बनाना है।
शेयरों पर मिलेगा 1 करोड़ रुपये तक का लोन
आरबीआई के नए रिफॉर्म्स के तहत शेयरों पर लोन लिमिट प्रति व्यक्ति 20 लाख रुपये से बढ़ाकर 1 करोड़ रुपये कर दी गयी है और आईपीओ फाइनेंसिंग सीमा 10 लाख रुपये से बढ़ाकर 25 लाख रुपये प्रति व्यक्ति कर दी गई है।
अलग-अलग बैंकों में क्रेडिट कंसंट्रेशन की निगरानी जारी रहेगी और केवल जरूरी होने पर ही सिस्टम-वाइड सुरक्षा उपाय लागू किए जाएँगे, जिससे सस्ता और अधिक सुलभ कॉर्पोरेट लोन, बेहतर बैंक कैपिटल एफिशिएंसी और कैपिटल मार्केट में व्यापक भागीदारी संभव होगी।
डेट सिक्योरिटीज पर क्या हुआ फैसला
आरबीआई ने लिस्टेड डेट सिक्योरिटीज पर लोन देने की अधिकतम लिमिट हटाने का भी प्रस्ताव रखा है, जिससे बैंकों को निवेशकों को सपोर्ट करने में अधिक फ्लेक्सिबिलिटी मिलेगी। अक्टूबर 2025 से प्रभावी, इन परिवर्तनों से क्रेडिट सर्विस का विस्तार, लिक्विडिटी में सुधार और इक्विटी मार्केट्स में भागीदारी को प्रोत्साहन मिलने की उम्मीद है।
और क्या-क्या मिली बैंकों को छूट
भारतीय बैंकों पर अब तक लीवरेज्ड बायआउट या प्रमोटर हिस्सेदारी खरीद के जरिए सीधे अधिग्रहणों को फाइनेंस करने पर रोक थी, क्योंकि आरबीआई ने शेयर-आधारित लोन पर प्रतिबंध लगा रखे थे, जिससे कंपनियों को एनबीएफसी, अल्टरनेट इंवेस्टमेंट फंड, बॉन्ड या विदेशी कर्जदाताओं का सहारा लेना पड़ता था।
बैंक प्रोजेक्ट्स, कैपिटल एक्सपेंडिचर या वर्किंग कैपिटल की फाइनेंसिंग तो कर सकते थे, लेकिन इक्विटी अधिग्रहण (किसी कंपनी में हिस्सेदारी खरीदना) के लिए लोन नहीं दे सकते थे, न ही शेयरों को कॉलेट्रोल (गिरवी) के रूप में इस्तेमाल कर सकते थे।
अब, आरबीआई ने इस प्रतिबंध को हटा दिया है, जिससे एक औपचारिक रिस्क-मैनेज्ड फ्रेमवर्क तैयार हुआ है जो बैंकों को विलय, अधिग्रहण और कॉर्पोरेट अधिग्रहणों के लिए फंड मुहैया कराएगा।
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