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    FPI की बिकवाली जारी, सितंबर में 23885 करोड़ रुपये की हुई निकासी

    Updated: Sun, 05 Oct 2025 06:36 PM (IST)

    सितंबर में एफपीआइ ने भारतीय शेयर बाजारों से 23885 करोड़ रुपये के शेयर बेचे जिससे 2025 में कुल निकासी 1.58 लाख करोड़ रुपये हो गई। यह बिकवाली अमेरिका की व्यापार नीति में बदलाव और रुपये के कमजोर होने जैसे कारणों से हुई। हालांकि कुछ विश्लेषकों का मानना है कि मूल्यांकन अब अधिक उचित हैं और जीएसटी दरों में कटौती जैसे कारक एफपीआइ की रुचि को पुनर्जीवित कर सकते हैं।

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    वैश्विक अनिश्चितता के बीच विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक (एफपीआइ) भारतीय शेयर बाजारों में लगातार तीसरी महीने शुद्ध विक्रेता रहे हैं।

    नई दिल्ली। वैश्विक अनिश्चितता के बीच विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक (एफपीआइ) भारतीय शेयर बाजारों में लगातार तीसरी महीने शुद्ध विक्रेता रहे हैं। इस वर्ष सितंबर में एफपीआइ ने शुद्ध रूप से 23,885 करोड़ रुपये के शेयरों की बिक्री की है।

    नेशनल सिक्योरिटीज डिपाजिटरी लिमिटेड (एनएसडीएल) के डाटा का अनुसार, एफपीआइ ने इससे पहले अगस्त में 34,990 करोड़ रुपये और जुलाई में 17,700 करोड़ रुपये की भारी निकासी की थी। डाटा के अनुसार, इस ताजा निकासी के साथ कैलेंडर वर्ष 2025 में एफपीआइ की शेयरों से कुल निकासी बढ़कर 1.58 लाख करोड़ रुपये या 17.6 अरब डालर तक पहुंच गई है।

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    जानकारों का कहना है कि एफपीआइ की यह बिकवाली कई कारणों से प्रेरित है। इसमें अमेरिका की व्यापार और नीति में बदलाव प्रमुख है। अमेरिका ने भारतीय वस्तुओं के आयात पर 50 प्रतिशत का उच्च टैरिफ लगाया है। इसके अलावा एच-1बी वीजा के शुल्क को बढ़ाकर एक लाख डालर कर दिया है। इससे निर्यात आधारित क्षेत्रों खासतौर पर सूचना प्रौद्योगिकी (आइटी) के प्रति भावना को प्रभावित किया है।

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    मार्निंगस्टार इन्वेस्टमेंट रिसर्च इंडिया के शोध प्रबंधक हिमांशु श्रीवास्तव का कहना है कि रुपये का रिकार्ड निम्न स्तर पर गिरना भी मुद्रा जोखिम को बढ़ाता है। इसके साथ ही, भारतीय शेयरों के अपेक्षाकृत उच्च मूल्यांकन ने एफपीआइ को अन्य एशियाई बाजारों की ओर आकर्षित किया है।

    हालांकि, कुछ विश्लेषकों का मानना है कि परिस्थितियां धीरे-धीरे भारत के पक्ष में बदल सकती हैं।

    एंजल वन के वरिष्ठ विश्लेषक वकार जावेद खान ने बताया कि मूल्यांकन अब अधिक उचित हो गए हैं और जीएसटी दरों में कटौती तथा विकास-समर्थक मौद्रिक नीति जैसे कारक एफपीआइ की रुचि को पुनर्जीवित कर सकते हैं।

    खान ने कहा कि भारत वैश्विक स्तर पर सबसे तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्था बना हुआ है। कारपोरेट के तिमाही नतीजे और व्यापक आर्थिक डाटा निकट भविष्य में एफपीआइ प्रवाह को निर्धारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे।

    अक्टूबर की भी खराब शुरुआत सितंबर में भारी निकासी के बाद एफपीआइ निवेश के लिहाज से अक्टूबर की खराब शुरुआत रही है। अक्टूबर के दो कारोबारी सत्रों में एफपीआइ 3,842 करोड़ रुपये के शेयरों की बिक्री कर चुके हैं।

    डेट या बांड बाजारों में रहे शुद्ध निवेशक इस बीच डेट या बांड बाजारों में शुद्ध प्रवाह देखा गया है। एफपीआइ ने सितंबर में सामान्य सीमा वाले डेट में 1,085 करोड़ रुपये और स्वैच्छिक रिटेंशन रूट के माध्यम से 1,213 करोड़ रुपये का निवेश किया। वहीं, फुली एक्सेसेबल रूट (एफएआर) या सरकारी डेट में एफपीआइ का निवेश 9,956 करोड़ रुपये रहा है।

    जियोजित इन्वेस्टमेंट्स लिमिटेड के मुख्य निवेश रणनीतिकार, वीके विजय कुमार के मुताबिक एफपीआइ की भारत से अन्य बाजारों में धन स्थानांतरित करने की रणनीति ने अब तक बेहतर रिटर्न दिया है, क्योंकि पिछले वर्ष में भारतीय शेयरों ने अधिकांश वैश्विक बाजारों की तुलना में खराब प्रदर्शन किया है।