कैंसर जैसी गंभीर बीमारी पर कैसे होता है बीमा, ऐसे काम आएगा क्रिटिकल इलनेस इंश्योरेंस
आजकल गंभीर बीमारियों के इलाज में बहुत खर्च होता है। क्रिटिकल इलनेस इंश्योरेंस कैंसर, हार्ट अटैक जैसी बीमारियों के लिए आर्थिक मदद देता है। यह बीमा पॉलिसीधारक को एकमुश्त राशि देता है, जिससे इलाज के साथ घर खर्च, बच्चों की पढ़ाई और लोन भी चुकाए जा सकते हैं। इसमें टैक्स में छूट भी मिलती है, लेकिन कुछ मामलों में यह बीमा नहीं मिलता। यह उन लोगों के लिए जरूरी है जिनके परिवार में गंभीर बीमारियों का इतिहास रहा है।

नई दिल्ली। अगर आपने कभी सोचा है कि कैंसर जैसी गंभीर बीमारी हुई तो क्या होगा? तो आप अकेले नहीं हैं। आजकल मेडिकल इलाज इतना महंगा हो गया है कि सिर्फ हॉस्पिटल का खर्च ही नहीं, बल्कि रोजमर्रा की जिंदगी भी मुश्किल हो जाती है। ऐसे में क्रिटिकल इलनेस इंश्योरेंस (Critical Illness Insurance) बहुत काम का साबित हो सकता है। आइए, इसे आसान भाषा में समझते हैं।
क्रिटिकल इलनेस इंश्योरेंस क्या होता है?
यह एक खास तरह का बीमा होता है जो कैंसर, हार्ट अटैक, किडनी फेलियर, पैरालिसिस जैसी गंभीर बीमारियों के लिए बनाया गया है। अगर किसी बीमित व्यक्ति को इनमें से कोई बीमारी डायग्नोज होती है, तो बीमा कंपनी एक मुश्त रकम (lump sum payment) देती है। यानी एक साथ पूरी राशि। सबसे अच्छी बात यह है कि इस रकम को सिर्फ इलाज के लिए ही नहीं, बल्कि घर के खर्च, बच्चों की पढ़ाई, EMI या लोन चुकाने के लिए भी इस्तेमाल किया जा सकता है।
यह बीमा कैसे काम करता है?
मान लीजिए किसी व्यक्ति को कैंसर डायग्नोज होता है। अगर यह बीमारी बीमा पॉलिसी में कवर की गई है, तो बीमा कंपनी मेडिकल बिल नहीं मांगती है। सिर्फ बीमारी की डायग्नोसिस रिपोर्ट ही काफी होती है। इसके बाद कंपनी तय रकम सीधे पॉलिसीहोल्डर को दे देती है।
हालांकि, इसमें एक सर्वाइवल पीरियड होता है। यानी बीमित व्यक्ति को बीमारी का पता चलने के बाद कम से कम 14 से 30 दिन तक जीवित रहना जरूरी है, तभी बीमा का पैसा मिलता है।
यह भी पढ़ें: बेस्ट हेल्थ इंश्योरेंस परिवार के लिए कैसे चुनें, फ्लोटर या इंडिविजुअल पॉलिसी कौन-सी है आपके लिए बेहतर विकल्प
क्रिटिकल इलनेस पॉलिसी की खासियतें
1. एकमुश्त भुगतान: बीमारी का इलाज चाहे जितने में हो, बीमा कंपनी तय रकम देती है।
2. कम वेटिंग पीरियड: सामान्य हेल्थ इंश्योरेंस की तुलना में इसमें वेटिंग पीरियड कम होता है।
3. टैक्स में राहत: इस बीमा पर चुकाए गए प्रीमियम पर इनकम टैक्स एक्ट की धारा 80D के तहत टैक्स छूट मिलती है।
4. आसान क्लेम प्रक्रिया: सिर्फ बीमारी की रिपोर्ट लगानी होती है, मेडिकल बिल की ज़रूरत नहीं।
किन मामलों में बीमा नहीं मिलता (Exclusions)
अगर बीमारी वेटिंग पीरियड के दौरान सामने आती है, तो क्लेम नहीं मिलता।
पहले से चली आ रही बीमारियां (pre-existing diseases) कवर नहीं होतीं।
अगर व्यक्ति सर्वाइवल पीरियड के अंदर ही निधन हो जाए, तो भुगतान नहीं होता।
आत्म-हानि, नशे, युद्ध, आतंकवाद या एडवेंचर स्पोर्ट्स जैसी स्थितियों में हुए नुकसान कवर नहीं होते।
कॉस्मेटिक सर्जरी, डेंटल ट्रीटमेंट या विदेश में इलाज भी आम तौर पर शामिल नहीं होते।
कौन लोग यह बीमा जरूर लें?
यह बीमा उन लोगों को लेना चाहिए जो जिनके परिवार में कैंसर या किडनी की बीमारी का इतिहास रहा है। जिनकी उम्र 40 वर्ष से ऊपर है। साथ ही जो लोग तनावभरे काम करते हैं या एकमात्र कमाने वाले सदस्य हैं। क्योंकि ऐसी स्थिति में इलाज के साथ-साथ घर के खर्च भी चलते रहने चाहिए — और यहीं यह बीमा आपकी मदद करता है।
हेल्थ इंश्योरेंस और क्रिटिकल इलनेस इंश्योरेंस में फर्क
| आधार | हेल्थ इंश्योरेंस | क्रिटिकल इलनेस इंश्योरेंस |
| कवरेज | हर तरह की बीमारी, एक्सीडेंट आदि | सिर्फ गंभीर बीमारियां (जैसे कैंसर, स्ट्रोक आदि) |
| भुगतान का तरीका | असली खर्च के अनुसार (reimbursement) | तय रकम (lump sum) |
| सर्वाइवल पीरियड | नहीं होता | 14–30 दिन तक जरूरी |
| उपयोग | सिर्फ इलाज के खर्च | इलाज + घर के खर्च, लोन, बच्चों की फीस आदि |
अगर किसी को अचानक कैंसर जैसी बीमारी हो जाए तो इलाज में लाखों रुपये लग सकते हैं। ऐसे में क्रिटिकल इलनेस इंश्योरेंस आपकी फाइनेंशियल ढाल बनता है।
यह न सिर्फ अस्पताल के खर्च में मदद करता है, बल्कि यह सुनिश्चित करता है कि बीमारी के दौरान आपकी घर की रसोई, बच्चों की पढ़ाई और EMI सब सुचारू रूप से चलती रहें।

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