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Stock Market Tips: शेयर बाजार में निवेश के लिए गिरने, संभलने और सीखने का कोई विकल्प नहीं

Stock Market Tips माता-पिता को बच्चों की सुरक्षा और उन्हें सबक लेने लायक बनने देने में संतुलन बनाना होता है। निवेश के मामले में भी यह पूरी तरह सच है। PC Pixabay

By Pawan JayaswalEdited By: Published: Sun, 09 Aug 2020 03:22 PM (IST)Updated: Mon, 10 Aug 2020 07:09 PM (IST)
Stock Market Tips: शेयर बाजार में निवेश के लिए गिरने, संभलने और सीखने का कोई विकल्प नहीं
Stock Market Tips: शेयर बाजार में निवेश के लिए गिरने, संभलने और सीखने का कोई विकल्प नहीं

नई दिल्ली, धीरेंद्र कुमार। कुछ माता-पिता अपने बच्चों को बहुत ज्यादा सुरक्षा के दायरे में रखते हैं। बच्चों के लिए माता-पिता की सतर्कता बहुत सहज और स्वाभाविक भी है। लेकिन यह भी सच है कि सुरक्षा के नाम पर जिन बच्चों का जोखिमों से परिचय नहीं होने दिया जाता है, बड़े होकर वे मुश्किल परिस्थितियों से निकलने में बड़े कमजोर साबित हो सकते हैं। मतलब यह कि माता-पिता को बच्चों की सुरक्षा और उन्हें सबक लेने लायक बनने देने में संतुलन बनाना होता है। निवेश के मामले में भी यह पूरी तरह सच है। और पूंजी बाजार नियामक का भी यह दायित्व है कि वह नियमों में इतनी गुंजाइश छोड़े कि वे नियम नए निवेशकों को डराने की जगह उन्हें सबक भी दें और निवेश के लिए आकर्षित भी करें।

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निवेशकों को सबसे अच्छी सीख अपने अनुभव से मिलती है। लेकिन कुछ निवेशक ऐसे होते हैं जिनको जोखिम से बचाने की जरूरत होती है। कुछ दिनों पहले मैं एक न्यूज चैनल के डिबेट शो में शामिल हुआ। किसी तरह से डिबेट का टॉपिक यह हो गया कि इक्विटी निवेशकों को छोटे बच्चों की तरह ट्रीट करना चाहिए या नहीं। जाहिर तौर पर यह चॉकलेट या आइसक्रीम के बारे में नहीं था यह इस बारे में था कि क्या इक्विटी निवेशकों को उनके कदमों के नतीजों से पैदा होने वाले जोखिम से बचाए जाने की जरूरत है।

सेबी ने कुछ नए कदमों का एलान किया है। इससे इक्विटी मार्केट के कैश सेग्मेंट में मार्जिन ट्रेडिंग खत्म हो जाएगी। हालांकि, पारंपरिक ब्रोकरेज इंडस्ट्री ने सेबी के इस कदम की आलोचना की है। उद्योग जगत से ताल्लुक रखने वाले ज्यादातर लोगों का कहना है कि इससे खुदरा निवेशकों द्वारा की जाने वाली खरीद-फरोख्त घट जाएगी और यह प्राइस डिस्कवरी और तरलता को भी प्रभावित करेगी। इसका सीधा असर ऑफलाइन यानी फिजिकल रूप में खरीद-फरोख्त करने वाले ब्रोकर्स के कारोबार की मात्रा पर दिखेगा।

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बहुत संभव है कि यह सब बातें सच हों। लेकिन यह सबसे अहम कारक नहीं है, जिसके आधार पर कोई फैसला लिया जाए। अहम बात यह है कि हाल के कुछ महीनों के दौरान इक्विटी ट्रेडिंग में खुदरा निवेशकों की हिस्सेदारी में बड़ा उछाल आया है। इस बात ने सेबी का ध्यान भी आकíषत किया है। इसमें नए और पुराने दोनों तरह के निवेशक शामिल हैं।

कुछ सप्ताह पहले मैंने सेबी चेयरमैन के एक साक्षाकार का उल्लेख किया था। इस साक्षाकार में सेबी चेयरमैन ने इक्विटी मार्केट में खुदरा निवेशकों की गतिविधियों में आई तेजी पर चिंता जाहिर की थी। इसका मतलब यह है कि सेबी ने माíजन ट्रेडिंग खत्म करने के लिए हाल ही में जो कदम उठाया है, वह इक्विटी मार्केट में खुदरा निवेशकों की गतिविधियों में तेजी का ही जवाब है। और कुछ समय से इस पर काम चल रहा था।

व्यक्तिगत तौर पर मेरा मानना है कि यहां पर दो अलग-अलग मुद्दे हैं। एक है इक्विटी निवेश व इक्विटी ट्रेडिंग, और दूसरा है लीवरेज यानी किसी खास परिस्थिति का फायदा उठाना। पिछले 25 वर्षो से निवेशकों से बातचीत करते हुए मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूं कि जो लोग सीधे ट्रेडिंग या इक्विटी में निवेश करके रकम बनाने का प्रयास कर रहे हैं, उनमें से ज्यादातर लोग अपने बुरे अनुभवों से ही सीखेंगे।

अपने अनुभवों से सीखने का कोई विकल्प नहीं है। ध्यान देने की बात यह है कि मैं खुद को भी इसी कैटैगरी में रखता हूं। सच यह है कि आप कितनी ही सैद्धांतिक बातें सीख-पढ़ लें और उस पर विवेचना कर लें, लेकिन जब तक आप आप कुछ बुरे फैसले नहीं लेते और इसकी वजह से नुकसान नहीं उठाते तब तक निवेश से जुड़ी हर छोटी बड़ी बात जान नहीं पाते। जैसे, बच्चे खुद से खेलते और घायल होते हैं, तभी जान पाते हैं कि उनको क्या करना और क्या नहीं करना चाहिए।

जब माता-पिता बच्चों को जरूरत से ज्यादा ही इन खतरों से बचाने की कोशिश करते हैं तो एक तरह से वे बच्चों का नुकसान करते हैं। इसकी वजह यह है कि बहुत ज्यादा सुरक्षा के दायरे में रहे बच्चे कठिन हालात का सामना किए बिना ही बड़े होते हैं। और इसका नतीजा यह होता है कि ये बच्चे जब बड़े होकर खुद को मुश्किल हालात में फंस जाते हैं तो वे उसका सामना करने के लिए खुद को तैयार नहीं पाते हैं।

अगर निवेश के लिहाज से देखें तो इसका मतलब है कि आपको कम अवधि में बाजार के उतार-चढ़ाव और नुकसान का अनुभव होना चाहिए। लेकिन यह इतना भी नहीं होना चाहिए आप बर्बाद हो जाएं और निवेश से तौबा कर लें। इसका मतलब है कि बहुत ज्यादा नियम-कानून और नाकाफी नियम-कानून के बीच एक संतुलन की जरूरत है।

खुदरा निवेशक जो लीवरेज ले सकते हैं, उस पर अंकुश लगाना सही तरीका है। ब्रोकर्स से रकम उधार लेकर मुनाफा बढ़ाना नए निवेशकों को अपनी ओर खींचने का शानदार तरीका है। बड़ा बनने के लिए कौन मुनाफा नहीं कमाना चाहता है। लेकिन हकीकत यह है कि समझदार निवेशक यह जानते हैं कि कभी भी बड़ा नुकसान हो सकता है और लेवरेज्ड ट्रेडर्स की सारी रकम गायब हो सकती है।

जो लेवरेज्ड ट्रेडर्स नहीं हैं, नुकसान तो उनको भी होता है लेकिन ज्यादा नहीं। यह उनको सबक देने के लिए काफी होता है। लेकिन सबक इतना महंगा भी न हो कि वे निवेश की दुनिया से बाहर हो जाएं।यह बताता है कि नियम-कानून का लक्ष्य क्या होना चाहिए। जितने भी लोग इक्विटी मार्केट में निवेश की शुरूआत करते हैं, उनमें से ज्यादातर की शुरुआत कम अवधि के ट्रेडर के तौर पर ही होती है। इसके बाद कुछ गलत फैसलों से नुकसान उठाते और सीखते हुए वे निवेश के बेहतर तौर-तरीकों को जान पाते हैं।

(लेखक वैल्यू रिसर्च के सीईओ हैं।)


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