Budget Expectations: बद्दी की फार्मा इंडस्ट्री की गुहार, यूरोप से टक्कर के लिए मदद दे सरकार
हिमाचल प्रदेश के बद्दी में इस समय 675 उद्योग स्थापित हैं। नामी फार्मा उद्योगों में अबाट हेल्थकेयर सिप्ला फार्मा ग्लेनमार्क रैनबैक्सी डॉ. रेड्डी सन फार्मा पिनाकल लाइफ साइंस पार्क फार्मास्युटिकल टार्क स्कॉट एडिल एमिली टारेंट एलकेम लैब सहित अनेक फार्मा उद्योग स्थापित हैं। प्रदेश में निर्मित 35 प्रतिशत दवाओं का निर्यात किया जाता है जो 150 से अधिक देशों में भेजी जाती हैं।
सुनील शर्मा, जागरण सोलन। हिमाचल से प्रतिवर्ष 40 हजार करोड़ रुपये की दवा का कारोबार होता है। देश के कुल दवा कारोबार में बद्दी सहित हिमाचल की हिस्सेदारी 12 प्रतिशत है। केंद्र सरकार का सहयोग रहा तो भारत में 2028 तक यूरोपीय देशों के मानकों के अनुरूप दवा का उत्पादन होगा।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने दुनियाभर में दवा उत्पादन को बेहतर बनाने के लिए रिवाइज्ड शेड्यूल एम को लागू किया है, जिसे अपनाने में भारत का फार्मा सेक्टर जुटा है। अगर सरकार की तरफ से कोलैटरल फ्री लोन (कुछ भी गिरवी रखे बिना) उपलब्ध कराया जाता है तो फार्मा सेक्टर को नई ऊर्जा मिलेगी।
भारत हर वर्ष तीन लाख करोड़ रुपये की दवा का उत्पादन करता है। करीब 10 हजार फार्मा उद्योग दुनियाभर में दवा निर्यात करते हैं। भारत में डेढ़ लाख प्रत्यक्ष और करीब तीन लाख लोग परोक्ष रूप से फार्मा उद्योग से जुड़े हैं।
अभी यूरोपियन देशों के स्तर की दवा उत्पादन तैयार करने में कुछ समय लगेगा। ऐसा करने में केंद्र सरकार मदद करेगी तो वर्ष 2028 तक यह संभव हो सकेगा। इस समय भारत का फार्मा उद्योग रिवाइज्ड शेडयूल एम के मुताबिक अपने उद्योगों को तैयार कर रहा है। केंद्र सरकार उद्यमियों को कोलैटरल-फ्री लोन उपलब्ध कराती है तो उससे फार्मा सेक्टर को बड़ी राहत महसूस होगी।
सतीश सिंघल, प्रबंधक यूनिसीडस फार्मा एवं पूर्व चेयरमैन हिमाचल ड्रग मैन्युफैक्चरिंग एसोसिएशन
हिमाचल ड्रग मैन्युफैक्चरिंग एसोसिएशन के महासचिव मनीष ठाकुर का कहना है कि फार्मा की पढ़ाई करने वाले युवा पूरी तरह शिक्षित नहीं हैं। उन्हें नए मानकों के मुताबिक कुशल बनाना होगा। फार्मा में काम करने वाले बच्चों की शुरू से पढ़ाई अच्छी होगी तो दवा भी बेहतर बनकर तैयार होगी। फार्मा के कर्मियों को जागरूक करने के लिए ट्रेनिंग कार्यक्रम चलाने होंगे, जिससे दवा उत्पादन व गुणवत्ता में काफी प्रभावशाली असर होगा।
पहाड़ी राज्यों के उद्यमियों को केंद्र सरकार को सहयोग के तौर पर सब्सिडी या पैकेज देना चाहिए। अब तक हिमाचल के फार्मा उद्योग बद्दी तक रेल नहीं पहुंच सकी है। केंद्र सरकार को जल्द बजट उपलब्ध करवाकर इसे पूरा करवाना चाहिए। इससे दवा उद्यमियों को राहत मिलेगी और महंगे परिवहन से छुटकारा मिलेगा।
संजय शर्मा, कोषाध्यक्ष, हिमाचल ड्रग मैन्युफैक्चरिंग एसोसिएशन
बद्दी में स्थापित हैं 675 उद्योग
हिमाचल प्रदेश के बद्दी में इस समय 675 उद्योग स्थापित हैं। नामी फार्मा उद्योगों में अबाट हेल्थकेयर, सिप्ला फार्मा, ग्लेनमार्क, रैनबैक्सी, डॉ. रेड्डी, सन फार्मा, पिनाकल लाइफ साइंस, पार्क फार्मास्युटिकल, टार्क, स्कॉट एडिल, एमिली, टारेंट, एलकेम लैब सहित अनेक फार्मा उद्योग स्थापित हैं। प्रदेश में निर्मित 35 प्रतिशत दवाओं का निर्यात किया जाता है, जो 150 से अधिक देशों में भेजी जाती हैं। 65 प्रतिशत दवाओं को भारत के अलग-अलग राज्यों में इस्तेमाल किया जा रहा है।
फार्मा उद्यमियों की प्रमुख मांगें
- फार्मा उद्यमी रिवाइज्ड शेड्यूल एम व अन्य अपग्रेडेशन के लिए कोलैटरल-फ्री लोन की मांग कर रहे हैं।
- जीएसटी लागू होने के बाद सभी राज्यों में एक जैसा टैक्स सिस्टम है। ऐसे में पहाड़ी राज्यों को विशेष पैकेज की उम्मीद है।
- फार्मा उद्योगों तक रेल विस्तार का कार्य जल्द से जल्द पूरा हो।
- हिमाचल में महंगा परिवहन है, केंद्र को इनकम टैक्स में सब्सिडी देनी चाहिए।
क्या है रिवाइज्ड शेड्यूल एम
रिवाइज्ड शेड्यूल एम औषधि और प्रसाधन सामग्री अधिनियम, 1945 का एक हिस्सा है। इसमें फार्मास्युटिकल उत्पादों के लिए अच्छे विनिर्माण प्रथाओं (जीएमपी) और परिसर, संयंत्र, और उपकरणों से जुड़ी जरूरतों को बताया गया है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने छह जनवरी को संशोधित नियम अधिसूचित किए थे। इन नियमों का उद्देश्य, फार्मा और बायोफार्मास्युटिकल उत्पादों के लिए मजबूत गुणवत्ता नियंत्रण सुनिश्चित करना है।
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