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    Budget Expectations 2025: संकट में है बंगाल का जूट उद्योग, अब केंद्र से मदद की गुहार

    आयात में वृद्धि और बढ़ती परिचालन लागत से जूट इंडस्ट्री पर बुरा असर पड़ रहा है। यह इंडस्ट्री मांग में गिरावट की वजह से अपनी उत्पादन क्षमता का पूरी तरह से इस्तेमाल भी नहीं कर पा रही है। जूट उद्योग का कहना है कि इससे बड़ी संख्या में नौकरियां चली गई हैं। इसका असर जूट किसानों पर भी पड़ा है जो अपनी उपज बेचने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।

    By Suneel Kumar Edited By: Suneel Kumar Updated: Tue, 17 Dec 2024 06:37 PM (IST)
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    जूट उद्योग 55 प्रतिशत क्षमता पर काम कर रहा है, जिससे 50,000 से अधिक श्रमिक प्रभावित हो रहे हैं।

    इंद्रजीत सिंह, कोलकाता। जूट बोरियों की लगातार घटती मांग से बंगाल के जूट उद्योग को इन दिनों दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। आयात में वृद्धि और बढ़ती परिचालन लागत ने भी उद्योग को परेशान कर रखा है। वाणिज्य मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक 2021-22 में सालाना 38-39 लाख गांठ (प्रत्येक गांठ में 500 बोरियां) की होने वाली मांग में भारी गिरावट आई है। वित्त वर्ष 2024-25 में यह 30 लाख गांठ रहने की उम्मीद है।

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    देश में जूट मिलों के शीर्ष संगठन भारतीय जूट मिल संघ (आईजेएमए) ने केंद्र सरकार से जूट बोरियों की घटती मांग और श्रमिकों व किसानों पर इसके प्रतिकूल प्रभाव सहित अन्य चुनौतियों से निपटने में उद्योग की मदद के लिए नीतिगत हस्तक्षेप की मांग की है।

    आईजेएमए के अध्यक्ष राघवेंद्र गुप्ता ने कहा मांग में गिरावट से क्षमता का पूरी तरह उपयोग नहीं हो पा रहा है, जिससे मिलों को पालियों में कटौती करने और परिचालन बंद करने के लिए मजबूर होना पड़ा है। इसके परिणामस्वरूप बड़े पैमाने पर नौकरियां चली गई हैं। इसका असर जूट किसानों पर भी पड़ा है, जो अपनी उपज को न्यूनतम समर्थन मूल्य पर बेचने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।

    जूट उद्योग 55 प्रतिशत क्षमता पर काम कर रहा है, जिससे 50,000 से अधिक श्रमिक प्रभावित हो रहे हैं। बता दें कि देश के कुल जूट उत्पादन में बंगाल का योगदान लगभग 70 प्रतिशत है। शेष 30 प्रतिशत में अन्य राज्य शामिल हैं। देश में कुल 94 जूट मिलें हैं, जिनमें अकेले 70 बंगाल में हैं। बंगाल में 40 लाख जूट किसान और चार लाख श्रमिक इस उद्योग पर निर्भर हैं।

    आयातित गेहूं-धान की पैकेजिंग में भी जूट बोरियों का हो इस्तेमाल

    मांग को बढ़ावा देने के लिए आईजेएमए ने केंद्र से आग्रह किया है कि सभी आयातित गेहूं, चाहे वह सरकारी सौदों के माध्यम से हो या निजी व्यापार के माध्यम से, जेपीएम (जूट पैकेजिंग मैटेरियल) अधिनियम, 1987 के अनिवार्य प्रविधानों के अनुसार जूट की बोरियों में पैक किया जाना चाहिए।

    धान की पैकेजिंग के लिए सेकेंड हैंड बैग के बजाय नई जूट बोरियों के इस्तेमाल की ओर लौटने का भी सुझाव दिया है। गुप्ता ने कहा कि फिलहाल खाद्यान्न और चीनी की पैकेजिंग में क्रमश: 100 प्रतिशत व 20 प्रतिशत जूट बोरियों का इस्तेमाल अनिवार्य है, लेकिन चीनी के मामले में इसका भी सही तरीके से अनुपालन नहीं हो पा रहा है।

    जूट उत्पादों पर डंपिंग-रोधी शुल्क की समीक्षा की मांग

    आईजेएमए ने सरकार से बांग्लादेश और नेपाल से जूट उत्पादों पर डंपिंग-रोधी शुल्क (एडीडी) की समीक्षा का अनुरोध किया है। मौजूदा डंपिंग-रोधी शुल्कों के बावजूद बांग्लादेश और नेपाल अभी गैर सरकारी जूट सामान बाजार में 55 प्रतिशत हिस्सेदारी रखते हैं, जिसका मूल्य 3,500 करोड़ रुपये है। जूट बेलर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष मदन गोपाल माहेश्वरी का कहना है कि इस उद्योग का ग्रामीण अर्थव्यवस्था में 12,000 करोड़ रुपये से अधिक का योगदान है।

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