क्या होता है Crypto Burn, कीमत पर इसका क्या होता है असर? यहां पहुंच जाते हैं ऐसे टोकन
क्रिप्टोकरेंसी की सप्लाई का आंकलन करने के लिए अधिकतम, कुल और सर्कुलेटिंग सप्लाई जैसे मेट्रिक्स उपयोग किए जाते हैं। क्रिप्टो बर्न में कॉइन को हमेशा के लिए सर्कुलेशन से हटा दिया जाता है, जिससे सप्लाई कम होती है और टोकन की वैल्यू बढ़ जाती है। बर्न किए गए टोकन ऐसे वॉलेट में भेजे जाते हैं जिन्हें एक्सेस नहीं किया जा सकता, जिससे वे हमेशा के लिए नष्ट हो जाते हैं। इससे क्रिप्टो की कीमत पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

क्रिप्टो बर्न करने से टोकन की सप्लाई में आती है कमी
नई दिल्ली। किसी क्रिप्टोकरेंसी की सप्लाई का मूल्यांकन करने के लिए तीन मेन मेट्रिक्स का उपयोग किया जाता है। इनमें अधिकतम सप्लाई, कुल सप्लाई और सर्कुलेटिंग सप्लाई शामिल हैं। किसी क्रिप्टो को जनरेट करते समय ही उसकी सप्लाई तय की जाती है। जैसे कि बिटकॉइन (BTC) की मैक्सिमम सप्लाई 21 मिलियन BTC है। इसका मतलब है कि इस लिमिट तक पहुंचने के बाद कोई और BTC क्रिएट बनाया जा सकता।
मगर शीबा इनु की कुल सप्लाई है 589.5 क्वाड्रिलियन (5,89,50,00,00,00,00,00,000) टोकन। इसीलिए किसी क्रिप्टोकरेंसी की कम्युनिटी के एक्टिव मेंबर्स ऐसी क्रिप्टो के कॉइन बर्न (What is Crpto Burn) करते हैं, जिसके कॉइन की सप्लाई बहुत अधिक हो।
क्या होता है क्रिप्टो बर्न
क्रिप्टो कॉइन को हमेशा के लिए सर्कुलेशन से हटाने के लिए टोकन्स को बर्न किया जाता है, जिससे उन टोकन की कमी होती है और सप्लाई कंट्रोल होती है। इस प्रोसेस का इस्तेमाल कई तरह के स्ट्रेटेजिक और इकोनॉमिक कारणों से टोकन की वैल्यू और इकोसिस्टम पर असर डालने के लिए किया जाता है।
कहां जाते हैं ऐसे कॉइन
टोकन को एक ऐसे वॉलेट में भेजकर "बर्न" किया जाता है जिसे एक्सेस नहीं किया जा सकता, जिसे अक्सर "बर्नर" या "ईटर" एड्रेस कहा जाता है। क्योंकि इस वॉलेट की 'प्राइवेट की' किसी के पास नहीं होती, इसलिए टोकन कभी खर्च या वापस नहीं लिए जा सकते और हमेशा के लिए सर्कुलेशन से बाहर हो जाते हैं।
कैसे पड़ता है क्रिप्टो की कीमत पर असर
जब किसी क्रिप्टोकरेंसी के कॉइन बड़ी मात्रा में बर्न किए जाते हैं, तो वे सिस्टम से बाहर हो जाते हैं। सिस्टम से बाहर होने पर उस क्रिप्टो की सप्लाई घट जाती है। इससे क्रिप्टो की कीमत पर पॉजिटिव असर पड़ता है और उसका रेट बढ़ता है।
पब्लिकली ट्रेडेड क्रिप्टो सर्कुलेशन में कॉइन की संख्या कम करने के लिए क्रिप्टो बर्न करती हैं। आम तौर पर, इस तरीके का मकसद क्रिप्टो की वैल्यू बढ़ाना होता है। टोकन को ऐसे वॉलेट एड्रेस पर भेजकर बर्न किया जाता है जिसे एक्सेस नहीं किया जा सकता। इससे वे सर्कुलेशन से हट जाते हैं और उस क्रिप्टोकरेंसी की सप्लाई कम हो जाती है।
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(डिस्क्लेमर: यहां क्रिप्टोकरेंसी बर्न की जानकारी दी गयी है, निवेश की सलाह नहीं। जागरण बिजनेस निवेश की सलाह नहीं दे रहा है। क्रिप्टो मार्केट में निवेश बाजार जोखिमों के अधीन है, इसलिए निवेश करने से पहले किसी सर्टिफाइड इन्वेस्टमेंट एडवाइजर से परामर्श जरूर करें।)
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