मां-बेटे की कंपनी, दिल्ली से शुरुआत; पहला बिजनेस फ्लॉप, आज ऑस्ट्रेलिया का सबसे रईस भारतीय
विवेक चांद सहगल की सफलता की कहानी प्रेरणादायक है। उन्होंने अपनी मां के साथ मदरसन की शुरुआत की। शुरुआती असफलता के बाद, उन्होंने वायरिंग बनाने का काम शु ...और पढ़ें

नई दिल्ली। मेहनत से कुछ भी हासिल किया जा सकता है। पहचान से लेकर पैसा तक। अगर आपके अंदर जुनून है। अपने काम के प्रति आप ईमानदार है तो सफलता आपके कदम जरूर चूमती है। सफलता के रास्ते में अड़चन तो आएगी, लेकिन अगर आप फिर भी चलते गए तो दुनिया में आप राज कर सकते हैं। हममें से बहुत से लोग खुद से शिकायत करते रहते हैं। लेकिन खुद को सफल बनाने के लिए कुछ काम नहीं करते। अगर आप भी उन्हीं में से एक हैं तो आपको एक भारतीय बिजनेसमैन की कहानी जरूर पढ़नी चाहिए, जो आज कंगारुओं के देश में राज कर रहा है।
यह कहानी (Success Story) है कि उस लड़कने की जिसने अपनी मां के साथ व्यापार की शुरुआत की और फिर वह ऑस्ट्रेलिया जाकर बसा और ऑस्ट्रेलिया का सबसे अमीर भारतीय बन गया। यह बच्चा कोई और नहीं बल्कि, सम्वर्धन मदरसन ग्रुप की नींव रखने वाले विवेक चांद सहगल हैं।
मां के साथ शुरू किया बिजनेस
विवेक चांद सहगल की कहानी बड़ी ही दिलचस्प है। सहगल ने 1975 में अपनी मां स्वर्ण लता सहगल के साथ मिलकर मदरसन की शुरुआत की थी, जिसका शुरुआती नाम मदरसन ट्रेडिंग कंपनी था। इससे पहले, 18 साल की उम्र में उन्होंने कमीशन पर चांदी ट्रांसपोर्ट करके थोड़ी-बहुत कमाई की थी।
पिता ने दिया कंपनी का नाम
सहगल बताते हैं, "यह मेरे पिता थे जिन्होंने मदरसन नाम सुझाया था। मुझे यह नाम तुरंत पसंद आ गया। यह भरोसे को दिखाता है, जो इतने सालों बाद भी हमारी कंपनी के पीछे की मुख्य ताकत है। आज, यह हमें लगातार याद दिलाता है कि हम कहाँ से आए हैं और हम यहां क्यों हैं।"
चांदी का बाजार जल्द ही गिर गया, और उनके बिजनेस को वित्तीय मुश्किलों का सामना करना पड़ा, जिसका मुख्य कारण एक कॉम्पिटिटर का दिवालिया होना था जिसने इंडस्ट्री को खतरे में डाल दिया था। इस असफलता के बाद वह रुके नहीं।
1983 में मारुति के बनने से बदल गई सहगल की कहानी
चांदी का बिजनेस मंदा पढ़ने के बाद मदरसन ने इलेक्ट्रिकल वायरिंग बनाने का काम शुरू कर दिया। मदरसन ने 1977 पहली केबल फैक्ट्री ने पारिवारिक फर्म के लिए एक नई दिशा शुरू की। मारुति उद्योग लिमिटेड ने सुजुकी मोटर कॉर्पोरेशन के साथ मिलकर दिसंबर 1983 में भारत में अपनी पहली कारों को असेंबल करना शुरू किया। असेंबली लाइन से निकलने वाला पहला मॉडल आइकॉनिक मारुति 800 था।
पहली सस्ती कार, जिसे भारत में ही असेंबल किया गया था, सुजुकी मारुति 800 ने भारतीय ट्रांसपोर्टेशन में एक असली क्रांति ला दी थी।
विवेक चांद सहगल याद करते हुए कहते हैं, "जब मुझे पता चला कि वायरिंग एक जापानी कंपनी ने डिजाइन की है, तो मैंने वीजा लिया और दस दिनों के अंदर मैं टोक्यो में था! मैंने बिजनेस के लिए पिच किया, लेकिन उन्होंने मुझे फैक्ट्री दिखाने से मना कर दिया। मैं सैंपल लेकर भारत वापस आया, और उन्हें बनाने के लिए दिन-रात काम किया।"
इसके बाद मदरसन ने जापान की सुमितोमो वायरिंग सिस्टम्स के साथ साझेदारी की। सुमितोमो वायरिंग सिस्टम्स (SWS) और मदर्सन का सहयोग 1983 में एक टेक्निकल एग्रीमेंट से शुरू हुआ, जो बाद में 1986 में एक फॉर्मल जॉइंट वेंचर, मदर्सन सुमी सिस्टम्स लिमिटेड (MSSL) की स्थापना में बदल गया।
1983 में भारत में पहला ऑटोमोटिव कंपोनेंट (वायरिंग हार्नेस) बनाया गया। जब मारुति प्लांट का उद्घाटन हुआ तो मदरसन की वायरिंग हार्नेस का इसमें इस्तेमाल हुआ। यहीं से शुरू हुई थी मदरसन की ऑटोमोटर पार्ट्स की यात्रा। और इसके तीन साल बाद 1986 मदरसन सूमी सिस्टम्स लिमिटेड की स्थापना सुमितोमो वायरिंग सिस्टम्स, जापान के साथ जॉइंट वेंचर में हुई।
1993 में BSE पर लिस्ट हुई मदरसन
1980 के दशक की नीतियों और 1991 में उदारीकरण ने मारुति उद्योग (तब एक JV) को लोकल सोर्सिंग बढ़ाने के लिए प्रेरित किया, जिससे 1991 तक 65% स्वदेशीकरण हुआ, 'लोकल कंटेंट' नियमों के जरिए एक मजबूत लोकल ऑटो कंपोनेंट इंडस्ट्री बनी, और सप्लायर डेवलपमेंट को बढ़ावा मिला। इस कानून से अब संवर्धन मदरसन इंटरनेशनल लिमिटेड (Samvardhana Motherson International Limited) को फायदा हुआ।
सुमितोमो वायरिंग सिस्टम्स के साथ कंपनी का ज्वाइंट वेंचर सफल रहा और मदरसन सूमी ने 1993 में बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज में लिस्टिंग के लिए सिर्फ $1 मिलियन जुटाए थे।
1994 में मर्सिडीज के साथ की साझेदारी
मर्सिडीज 1994 में भारतीय बाजार में आने वाला पहला लग्जरी कार ब्रांड था। दो साल बाद, उन्होंने पुणे में एक लोकल असेंबली लाइन शुरू की। सिर्फ 39 दिनों में, मदरसन ने उनके वायरिंग हार्नेस बनाने के लिए एक पूरा नया प्लांट लगा दिया। मदरसन ने मर्सिडीज का भरोसा जीता और जल्द ही उनके लिए अपने प्रोडक्शन में डैशबोर्ड असेंबली भी शामिल कर ली।
पहली बार, मदरसन एक मशहूर ग्लोबल ब्रांड को अपने क्वालिटी स्टैंडर्ड्स दिखा पाई। यह एक लंबी पार्टनरशिप की शुरुआत साबित हुई जो आज तक जारी है।
1997 तक, दो अहम पड़ावों ने मदरसन ने एशिया और अमेरिका की ऑटोमोबाइल कंपनियों के साथ रिश्ते बनाना शुरू करने में मदद की। इंटरनेशनल बनने का सही समय आ रहा था। हुंडई के लिए 1997 में मदरसन ने पार्ट्स सप्लाई करना शुरू किया। इसके बाद फोर्ड के साथ भी करार हुआ। इस तरह मदरसन के ग्लोबली क्लाइंट भी बन गए थे।
ऑस्ट्रेलिया के सबसे अमीर भारतीय हैं विवेक चांद सहगल
ऑस्ट्रेलिया न्यूज वेबसाइट फाइनेंशियल रिव्यू को 2019 में दिए एक इंटरव्यू में सहगल ने कहा था कि 1994 में वह इंडिया में ऑस्ट्रेलिया के हाई कमीशन के जरिए अकेले बिज़नेस माइग्रेंट थे, और उन्होंने इस मौके का पूरा फायदा उठाया। ऑस्ट्रेलिया जाने के बाद उन्होंने BTR नाइलक्स जैसी कंपनियों के साथ जॉइंट वेंचर शुरू किए और हेडलाइट्स और डोर ट्रिम्स जैसे अलग-अलग तरह के कंपोनेंट बनाना सीखा।
उन्होंने कहा था, "जिस चीज ने मेरा ध्यान खींचा, वह यह थी कि ऑस्ट्रेलियाई लोग इस बात पर कितने गर्व महसूस कर रहे थे कि वे कार के सभी पार्ट्स खुद बना रहे थे। बिना कैपेक्स बढ़ाए वॉल्यूम बढ़ाने के लिए वे जो करते थे, वह बहुत दिलचस्प था। मैं हमेशा कहता हूं कि जापानी लोगों की ट्रेनिंग, ऑस्ट्रेलियाई लोगों की काबिलियत और एक भारतीय की एंटरप्रेन्योरशिप ने मिलकर मदरसन को बनाया।"
सहगल ने मेलबर्न के पूर्व में एक घर खरीदा, अपने दो बच्चों को वेस्ली कॉलेज में एडमिशन दिलाया, और 1997 तक वह ऑस्ट्रेलियाई नागरिक बन गए थे।
सहगल ऑस्ट्रेलिया के सबसे अमीर भारतीय है। फोर्ब्स की लाइव ट्रैकिंग लिस्ट के अनुसार इस समय विवेक चांद सहगल की नेटवर्थ $6.6B डॉलर है। 2022 में, उन्होंने इंडिया वायरिंग हार्नेस बिजनेस को अलग कर दिया और इसे मदरसन सूमी वायरिंग इंडिया के नाम से इंडियन स्टॉक एक्सचेंज में लिस्ट कराया।
44 देशों में फैला है कारोबार
विवेक चांद सहगल की देखरेख में, संवर्धन मदरसन ग्रुप आज दुनिया की सबसे बड़ी ऑटो कंपोनेंट सप्लायर कंपनियों में से एक बन गया है। यह अब कुछ सबसे जरूरी ऑटोमोबाइल पार्ट्स बनाता है, जिन्हें दुनिया भर की बड़ी ऑटोमोबाइल कंपनियों ने स्वीकार किया है।
मदरसन ग्रुप मर्सिडीज-बेंज, ऑडी और फॉक्सवैगन जैसे प्रमुख ग्लोबल ऑटोमेकर्स के साथ-साथ एयरोस्पेस (एयरबस), टेक्नोलॉजी और इंडस्ट्रियल सेक्टर में अन्य प्रमुख क्लाइंट्स को 44 देशों में ऑटोमोटिव कम्पोनेंट्स (वायरिंग, मॉड्यूल, पॉलिमर, विजन सिस्टम) और अलग-अलग इंजीनियरिंग सॉल्यूशन देता है। उनके क्लाइंट बेस में प्रीमियम ऑटो ब्रांड से लेकर उभरती हुई टेक इंडस्ट्रीज तक शामिल हैं, जो जटिल सिस्टम इंटीग्रेशन के लिए मदरसन पर टियर 1 सप्लायर के तौर पर निर्भर हैं।

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