क्या है US Fed का 'Hawkish' लहजा, जिससे खुश नहीं शेयर बाजार, ब्याज दरें कम लेकिन नहीं बदला इरादा, क्या असर होगा
अमेरिकी सेंट्रल बैंक US Fed ने अनुमान के मुताबिक ब्याज दरों में 25 बेसिस प्वाइंट की कटौती कर दी। हालांकि, फेड चेयरमैन जिरोम पॉवेल ने कमजोर होते लेबर म ...और पढ़ें

नई दिल्ली। अमेरिकी केंद्रीय रिजर्व की मॉनेटरी पॉलिसी (US Fed Policy) का इंतजार दुनियाभर के शेयर बाजार और निवेशकों को था। 10 दिसंबर की देर रात यूएस फेडरल रिजर्व के चेयरमैन जिरोम पॉवेल ने उम्मीदों के अनुरुप ब्याज दरों में 25 बेसिस प्वाइंट की कटौती कर दी। जैसी उम्मीद थी अमेरिकी सेंट्रल बैंक ने वैसा ही निर्णय दिया। लेकिन, हॉकिश रुख (Hawkish Stance) को बरकरार रखा, जो ग्लोबल मार्केट को पसंद नहीं आया। डाऊ फ्यूचर्स 180 प्वाइंट की गिरावट के साथ कारोबार कर रहे हैं। वहीं, भारतीय बाजार भी सुबह हल्की बढ़त के साथ खुले और गिरे फिर तेजी के साथ ट्रेड करने लगे।
अमेरिकी फेड में 12 में से नौ सदस्यों ने रेट कट के पक्ष में वोट दिया, जबकि एक सदस्य को 50 बेसिस पॉइंट रेट कट की ज़रूरत महसूस हुई। दरअसल, जिरोम पॉवेल ने कमजोर होते लेबर मार्केट को स्थिर करने के प्रयास में एक रेयर 'हॉकिश' कटौती की है। एनालिस्ट के अनुसार, फेडरल रिजर्व ने बुधवार को लगातार तीसरी बैठक में ब्याज दरों में कटौती की, और यह कमजोर होते श्रम बाजार को सहारा देने का एक प्रयास है, लेकिन साथ ही यह संकेत भी दिया है कि वह आगे कटौती करने के लिए तैयार नहीं है। आइये आपको बताते हैं कि यह हॉकिश रुख क्या है और इसका शेयर बाजार व दुनिया की अर्थव्यवस्थाओं पर क्या असर पड़ सकता है।
क्या होता है Hawkish Stance
दुनियाभर के सेंट्रल बैंक, विकास को बढ़ावा देने और महंगाई को नियंत्रित करने के बीच संतुलन बनाए रखने के लिए हॉकिश और डोविश पॉलिसी का इस्तेमाल करते हैं, और ये नीतियां घरेलू आर्थिक स्थिति, फॉरेन करंसी मार्केट व शेयर बाजार को काफी हद तक प्रभावित करती हैं।
क्या Hawkish कठोर पॉलिसी है?
इस संबंध में हॉकिश पॉलिसी का मतलब कठोर नीति है, जिसका उद्देश्य महंगाई को नियंत्रित करना और अर्थव्यवस्था को तब तक स्थिर करना है जब तक उसमें अत्यधिक वृद्धि के लक्षण दिखाई नहीं दें। हॉकिश पॉलिसी में ब्याज दरें बढ़ाकर, केंद्रीय बैंक बैंक लोन महंगा कर देते हैं, जिससे अत्यधिक खर्च और निवेश पर लगाम लग सकती है। इससे महंगाई पर नियंत्रण पाया जा सकता है।
US Fed ने क्यों बरकरार रखा हॉकिश रुख?
हालांकि, यूएस फेड ने ब्याज दरों में कटौती की लेकिन हॉकिश रुख को बरकरार रखा, जो यह बताता है कि आगे ब्याज दरों में कटौती की गुंजाइश कम है। दरअसल, फेडरल रिजर्व जॉब मार्केट की दिशा पर स्पष्टता का इंतज़ार कर रहा है, जिसमें नरमी के संकेत दिख रहे हैं, महंगाई कुछ ज़्यादा बनी हुई है, और अर्थव्यवस्था के बारे में उसका मानना है कि अगले साल इसमें तेज़ी आएगी। अगर ऐसा होता है तो ही अमेरिकी केंद्रीय बैंक ब्याज दरों में कटौती के बारे में सोचेगा।
बैंक ऑफ बड़ौदा के चीफ इकोनॉमिस्ट मदन सबनविस ने कहा, "यूएस फेड की पॉलिसी अनुमान के मुताबिक रही, जहां ब्याज दरों में कटौती के साथ-साथ जिरोम पॉवेल ने ग्रोथ को ज्यादा प्राथमिकता देने के साथ हॉकिश रुख को बरकरार रखा।"
US Fed पॉलिसी का बाजार पर क्या असर
फेड की पॉलिसी पर भारतीय शेयर बाज़ार में कोई बड़ा रिएक्शन होने की संभावना नहीं है, क्योंकि पॉलिसी डिसीजन उम्मीद के मुताबिक ही है, और फेड ने भविष्य की इंटरेस्ट रेट की दिशा के बारे में मिले-जुले संकेत दिए हैं। मिंट की रिपोर्ट में इक्विनॉमिक्स रिसर्च प्राइवेट लिमिटेड के फाउंडर और रिसर्च हेड जी चोक्कालिंगम ने कहा, "हमें नहीं लगता कि फेड के इस कदम का भारतीय शेयर बाज़ार पर कोई बड़ा असर होगा।
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वहीं, जियोजित इन्वेस्टमेंट के चीफ इन्वेस्टमेंट स्ट्रैटजिस्ट, विजयकुमार का मानना है कि US फेड पॉलिसी का भारतीय शेयर बाज़ार पर सीधा असर मामूली होगा, क्योंकि घरेलू बाज़ार अभी दो मुख्य घरेलू कारणों से दबाव में है, लगातार FII की बिकवाली और पिछले 6 तिमाहियों से कमज़ोर कॉर्पोरेट अर्निंग।

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