केरल के इस गांव में हर किसान परिवार है करोड़पति, सब्जियों से हुए मालामाल; आखिर कैसे हुआ ये कमाल?
केरल के एलावनचेरी गांव में 300 परिवारों ने सब्जी की खेती से 16 करोड़ का कारोबार खड़ा किया। किसानों (Richest Farmers) ने VFPCK के साथ मिलकर सामूहिक खेती, साझा लागत और बिना बिचौलिए के काम करके मुनाफा कमाया। यहां हर साल 5,000 टन सब्जियां उगाई जाती हैं। आर शिवदास जैसे किसानों ने साबित किया कि खेती एक सफल व्यवसाय है, जिससे शहरी पलायन भी रुका है।

एलावनचेरी कहलाता है करोड़पति किसानों का गांव
नई दिल्ली। आपने अक्सर किसानों की परेशानियों, कर्ज और खराब प्रदर्शन जैसी खबरें सुनी होंगी। मगर कुछ किसान ऐसे भी होते हैं, जिनके सामने ऐसी दिक्कतें नहीं आतीं, बल्कि वे बहुत अधिक पैसा भी कमाते हैं। एक गांव है, जहां के किसान करोड़पति हैं। उस गांव को करोड़पति किसानों (Richest Farmers) का गांव कहा जाता है।
केरल का एलावनचेरी गांव
हम बात कर रहे हैं केरल के एलावनचेरी गांव की, जहां के 300 परिवारों ने सब्जी की खेती को 16 करोड़ रुपये के बिजनेस में बदल दिया। न कोई सरकारी मदद, न किस्मत का साथ, बस पक्का इरादा, स्मार्ट खेती और एक क्रांतिकारी मॉडल ने वहां के किसानों को अमीर बना दिया।
हजारों टन सब्जियों का उत्पादन
1996 से एलावनचेरी के किसानों ने VFPCK (वेजिटेबल एंड फ्रूट प्रमोशन काउंसिल) के तहत ज्ञान, संसाधन और जोखिमों को एक साथ मिलाया और सामूहिक खेती, साझा लागत, साझा मुनाफा और कोई बिचौलिया न होने के चलते उन्हें तगड़ा प्रॉफिट हुआ। नतीजा क्या निकला - हर साल 5,000 टन सब्जियां।
नहीं होता शहरी पलायन
इन्हीं में से एक किसान हैं आर शिवदास से, जो वहां के पहले 1 करोड़ रुपये कमाने वाले किसान हैं। 52 साल की उम्र में उन्होंने साबित कर दिया कि खेती कोई 'संघर्ष' नहीं बल्कि एक स्केलेबल बिजनेस है। अच्छी क्वालिटी के बीज, मिट्टी की टेस्टिंग और ड्रिप इरिगेशन से उन्होंने सफलता हासिल की। द बेटर इंडिया के अनुसार वहां के ज्यादातर किसान 20-50 साल के हैं। इसलिए वहां कोई शहरी पलायन भी नहीं होता।
जमीन न होने पर किसान एक्स्ट्रा जमीन लीज पर लेते हैं, 30 से ज़्यादा सब्जियां उगाते हैं, जिनमें पेठा, तोरी और करेला आदि शामिल हैं। इस गांव में पूरे राज्य से खरीदार आते हैं। यहाँ तक कि आस-पास की पंचायतों ने भी इस खेती के बिजनेस में हिस्सा लिया है।
क्या हैं चुनौतियां
एलावनचेरी के किसानों का तरीका है -'मॉडर्न टेक + पारंपरिक ज्ञान' और पक्के फार्म पवेलियन, कोई सस्ते शेड नहीं, सिस्टमैटिक पानी डिस्ट्रीब्यूशन, ऑर्गेनिक पेस्ट कंट्रोल, जीरो वेस्ट, मैक्सिमम प्रॉफिट। यहाँ तक कि नुकसान भी बराबर बांटा जाता है।
ऐसा नहीं है कि यहां सब अच्छा है, बल्कि जंगली जानवर और क्लाइमेट रिस्क जैसी चुनौतियां भी हैं। पर सब मिलकर इनसे निपटते हैं।
सरकारी मदद नहीं
एलावनचेरी के किसानों को स्टोरेज, सड़कों या सिंचाई के लिए सरकार से कोई मदद नहीं मिलती। वे इनकी मांग करते हैं। पर जंगली सूअरों से लेकर पानी की कमी तक, वे बिना सरकारी सहायता के मिलकर समस्याओं को हल करते हैं।
खेती पर निर्भरता, पर घट रही इनकम
भारत में 52% वर्कफोर्स खेती पर निर्भर है, लेकिन इस काम में इनकम कम हो रही है। एलावनचेरी का मॉडल किसानों की मदद कर सकता है, हालांकि पर सप्लाई चेन, स्टोरेज, सही लीज और क्लाइमेट-प्रूफिंग के लिए कुछ कदम उठाने होंगे।

कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।