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    Dollar के मुकाबले वैश्विक मुद्रा के रूप में स्थापित हो रहा रुपया, क्या बन पाएगा दुनिया की सबसे मजबूत करेंसी?

    By Gaurav KumarEdited By: Gaurav Kumar
    Updated: Sat, 20 May 2023 03:30 PM (IST)

    आने वाला दशक भारत का होने वाला है ऐसे में भारतीय रुपया को नजरअंदाज करना कोई भी देश नहीं चाहेगा। रुपया की पहचान और चमक वर्तमान में तेजी से बढ़ रही है त ...और पढ़ें

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    Rupee as global currency, becoming the world's strongest position?

    नई दिल्ली, बिजनेस डेस्क: समाज हो या कोई देश, आपकी इज्जत तभी होती है जब आप ताकतवर होते हैं। एक जमाने में जिस भारत को लोग गरीबों का देश कहते थे, यहां के लोगों को अनपढ़ मानते थे आज उसी भारत के सामने दुनिया धीरे-धीरे सिर झुका रही है।

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    भारत को एक वक्त सोने की चिड़िया कहा जाता था। जब अंग्रेज भारत छोड़कर गए थे, तब एक डॉलर की कीमत लगभग 1 रुपये के बराबर हुआ करती थी। वर्तमान की बात करें तो 1 डॉलर की कीमत 82 रुपये से भी अधिक हो गई है।

    लेकिन धीरे-धीरे भारतीय करेंसी ‘रुपया’ अंतराष्ट्रीय बाजारों में अपनी पहचान बना रहा है। आज हम यही जानेंगे की क्या भविष्य में रुपया डॉलर से भी मजबूत करेंसी बनकर उभरेगा और क्या रुपया, डॉलर की जगह ले पाएगा।

    अंतरराष्ट्रीय करेंसी बनने की तरफ कदम

    रुपये को अंतरराष्ट्रीय करेंसी बनाने की कवायद आज से नहीं, बल्कि वर्षों से चलती आ रही है। किसी भी देश की करेंसी की वैल्यू ज्यादा नोट छापने से नहीं, बल्कि उस करेंसी को कितने व्यापारी और देश स्वीकार करते हैं, इससे बनती है। अंतराष्ट्रीय करेंसी का मतलब ही यही होता है कि उस करेंसी की स्वीकार्यता कितने देशों में है।

    रुपये को अंतराष्ट्रीय बनाने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक ने साल 2013 में बड़ा कदम उठाते हुए, विदेशी निवेशकों को 'मसाला बॉन्ड' रखने की अनुमति दी थी। ये रुपये-मूल्य वाले बॉन्ड थे, जिससे विदेशी निवेशकों के लिए ऐसी संपत्ति खरीदना और बेचना आसान हो गया था।

    साल 2015 में, आरबीआई ने विदेशी निवेशकों को रुपये-मूल्य वाले डेरिवेटिव में व्यापार करने की अनुमति दी थी।

    साल 2019 में, भारत सरकार ने विनिमय दर को उदार बनाने की एक प्रक्रिया शुरू की, जिससे रुपये को आरक्षित मुद्रा के रूप में और अधिक आकर्षक बनाया जा सके।

    अंतरराष्ट्रीय मुद्रा बनने से होगा क्या?

    समय के साथ साल दर साल केंद्र सरकार और आरबीआई की विभिन्न आर्थिक नीतियों की वजह से रुपये की मांग अंतराष्ट्रीय बाजारों में बढ़ी जिसकी वजह से भारत की अर्थव्यवस्था में वाणिज्य और निवेश में बढ़ावा मिला। आरबीआई के डेटा के मुताबिक साल 2008 में देश में विदेशी पोर्टफोलियो निवेश 12 अरब डॉलर था जो साल 2020 में बढ़कर 80 अरब डॉलर हो गया।

    रुपये के अंतरराष्ट्रीय से व्यापार और निवेश के अवसरों में वृद्धि होती है, जिससे भारत की अर्थव्यवस्था भी विश्व के अन्य देशों की अर्थव्यवस्था के साथ और अधिक एकीकृत हो जाएगी।

    डॉलर का बन पाएगा विकल्प ?

    पुरी दुनिया मानती है कि आने वाला दशक भारत का होगा। भारत इस वक्त दुनिया में सबसे ज्यादा आबादी वाला देश के साथ-साथ दुनिया का सबसे बड़ा बाजार भी है। इसलिए कोई भी देश भारत के साथ व्यापार नहीं करने का रिस्क उठाना चाहता।

    नतीजतन, भारत इस वक्त ऐसे मुहाने पर खड़ा है, जहां से उसके महाशक्ति बनने का रास्ता शुरू होता है। इसकी शुरुआत का अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि वर्तमान में दुनिया के 18 देश भारत के करेंसी ‘रुपया’ में ट्रेड करने के लिए तैयार हो गए हैं। इतना ही नहीं, दिसंबर 2022 में भारत और रूस ने रुपये में अपना पहला ट्रेड पूरा भी कर लिया है।

    18 देश जो रुपये में ट्रेड करने के लिए तैयार है, उनमें मलेशिया, मॉरीशस, म्यांमार, यूनाइटेड किंगडम, रूस, न्यूजीलैंड, श्रीलंका, ओमान, सेशेल्स, सिंगापुर, तंजानिया, युगांडा, बोत्सवाना, फिजी, जर्मनी, गुयाना, इज़राइल और केन्या है।

    आपको बता दें कि इन सभी देशों ने रुपये में ट्रेड सेटलमेंट के लिए विशेष वोस्ट्रो रुपया खाते (SVRAs) भी खोल चुके हैं। इसके अलावा सऊदी अरब और यूएई भी रुपये में जल्द ही ट्रेड शुरु करने की योजना बना रहे हैं।

    क्या है SVRAs?

    विशेष वोस्ट्रो रुपया खाते (Special Vostro Rupee Accounts) भारत और उस भागीदार देश में रुपये में ट्रेड सेटलमेंट के लिए खोला जाता है। यह अकाउंट उन आधिकारिक बैंक को खोलना होता है, जिनके भागीदार देश हमारे साथ व्यापार कर रहे हैं। यह अकाउंट आरबीआई और भागीदार देश के सेंट्रल बैंक की मंजूरी के बाद खोला जाता है।

    ये खाते भारतीय बैंक में रुपये में विदेशी संस्था की होल्डिंग रखते हैं। जब कोई भारतीय आयातक दूसरे देश के व्यापारी को रुपये में भुगतान करता है तो राशि इस वोस्ट्रो खाते में जमा हो जाती है। इसी तरह, जब किसी भारतीय निर्यातक को भारतीय रुपये में माल और सेवाओं के लिए भुगतान करना होता है, तो इस वोस्ट्रो खाते से राशि काट कर निर्यातक के नियमित खाते में जमा कर दी जाएगी।

    SRVAs धारकों को भारत सरकार की प्रतिभूतियों में सरप्लस राशि का निवेश करने की अनुमति है। आरबीआई द्वारा यह सुविधा नई व्यवस्था को लोकप्रिय बनाने में मदद के लिए दी जा रही है। अभी तक 18 देशों के 60 बैंकों में 30 वोस्ट्रो अकाउंट खोले जा चुके हैं।

    रुपये में ट्रेड से भारत को क्या फायदा?

    यह सवाल सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है कि रुपये में ट्रेड करने से भारत को क्या फायदा होगा। आपको बता दें कि इन 18 देशों के साथ-साथ अन्य देश भी अगर भारत के रुपये में ट्रेड करते हैं तो अंतराष्ट्रीय बाजार में रुपये की मांग बढ़ जाएगी। जितनी ज्यादा मांग बढ़ेगी, उतनी ही ज्यादा मजबूत और स्थिर भारत की करेंसी होगी।

    दूसरा बड़ा फायदा यह होगा कि अंतरराष्ट्रीय बाजारों में डॉलर का एकल वर्चस्व भी कमजोर पड़ेगा, जिससे अमेरिका जैसा शक्तिशाली देश भी भारत की तरफ आंख उठाने से पहले सौ बार सोचेगा।

    अगर अन्य देश रुपये में व्यापार करते हैं तो ये देश रुपये का इस्तमाल भारत के कंपनियों से माल और सेवाओं की खरीद करने में निवेश करने के लिए करेंगे। यह व्यापार संबंधी लेनदेन लागत को कम करेगा और व्यापार को बढ़ावा देगा।

    रुपये में ट्रेड करने से भारत का व्यापार घाटा भी कम होगा। व्यापार घाटा को आसान में कहे तो निर्यात से ज्यादा आयात करना। रुपये में ट्रेड से भारत अधिक निर्यात करने में सक्षम होगा क्योंकि अधिक देश रुपये में व्यापार को वापस लेने के इच्छुक होंगे।

    इसी साल के मार्च महीने में केंद्र की मोदी सरकार ने नई फॉरेन ट्रेड पॉलिसी (FTP), 2023 लेकर आई है। इस पॉलिसी से साल 2030 तक भारत के निर्यात को 2 ट्रिलियन डॉलर तक बढ़ाने में मदद मिलने की उम्मीद है।

     

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