Mughal Tax System: कौन-कौन से TAX लेते थे मुगल? फसल से सड़क तक के जरिए भरा जाता था सल्तनत का खजाना
मुगलों (Mughal Period) ने भारत पर कई सालों तक शासन किया और इस दौरान उन्होंने विभिन्न करों (Mughal Tax System) के माध्यम से एक विशाल खजाना बनाया। इनमें खराज (भूमि कर) जकात (धार्मिक कर) जजिया (गैर-मुस्लिमों पर कर) चौथ (सुरक्षा कर) राहदारी (टोल टैक्स) और कटरापार्चा टैक्स शामिल थे। इन करों से प्राप्त धन का उपयोग राज्य के कामकाज और अर्थव्यवस्था को चलाने में किया जाता था।

नई दिल्ली। भारत में मुगलों ने कई सदियों तक हुकूमत की। 1526 से 1857 तक मुगल हुकूमत में रहे। इस दौरान उन्होंने दौलत का विशाल भंडार अपने पास बनाया, जिससे राज्य के कामकाज और अर्थव्यवस्था (Mughal Economy) चलती थी। मगर ये खजाना बना कैसे? इस खजाने में कई तरह के टैक्स शामिल होते थे। मुगल काल में कई तरह के टैक्स लिए जाते थे, जिससे सल्तनत की कमाई होती थी। यहां हम आपको उन्हीं सभी टैक्स के बारे बताएंगे, जो मुगल काल में वसूले जाते थे।
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खराज (भूमि कर): यह टैक्स कृषि भूमि पर लगता था। इसकी दरें फसल की उत्पादकता और जमीन की क्वालिटी के आधार पर तय की जाती थीं। खराज का एक हिस्सा राज्य के खजाने में जमा होता था। इसे जिहत भी कहा जाता था।
जकात: यह एक धार्मिक टैक्स था जो मुसलमानों से लिया जाता था। जकात की दरें आम तौर पर 2.5% होती थीं और यह अमीरों से वसूला जाता था। इसका उद्देश्य गरीबों और जरूरतमंदों की मदद करना था।
जजिया: यह टैक्स गैर-मुस्लिमों पर लगाया जाता था। जजिया का मकसद राज्य के खजाने में रेवेन्यू कलेक्शन करना था और यह टैक्स मुस्लिम शासकों द्वारा लगाया जाता था।
चौथ: चौथ एक तरह का सुरक्षा कर (सेफ्टी टैक्स) था जो व्यापारियों और जमींदारों से वसूला जाता था।
राहदारी (टोल टैक्स): यह टैक्स उन व्यापारियों और यात्रियों से वसूला जाता था जो सामान लेकर एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाते थे। राहदारी का मकसद सड़कों और व्यापार मार्गों के रखरखाव के लिए पैसा जुटाना था। मुगल दूसरे देशों से आने वाली चीजों पर भी 2.5-10 फीसदी तक टैक्स (इम्पोर्ट ड्यूटी) लेते थे।
नजराना: यह एक तरह का उपहार या भेंट होता था, जो राजा या राज्य के अधिकारियों को दिया जाता था। यह टैक्स तो नहीं था, लेकिन अक्सर जब कोई व्यक्ति राज्य के किसी अधिकारी से मिलता था या किसी विशेष अवसर पर नजराना देने की परंपरा थी।
कटरापार्चा टैक्स: व्यापारियों और कारीगरों से रेशम जैसे उत्पादों पर कटरापार्चा टैक्स वसूला जाता था, जो बाजार शुल्क से अलग होता था।
ज़ब्त टैक्स: मुगल काल के दौरान भारत में शुरू किया गया ये भी एक लैंड टैक्स सिस्टम था। यह जमीन के मूल्य की एक निश्चित वैल्यूएशन पर आधारित होता था, जिसे राज्य द्वारा वसूला जाता था।
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