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    गुटखे के दाग रेलवे को पड़ते हैं भारी, साफ करने में खर्च होती है मोटी रकम, इतने में बन जाएं 10 वंदे भारत

     Indian Railway ट्रेनों और प्लेटफार्मों पर पान और गुटखे के दागों को साफ करने पर सालाना लगभ ₹1200 करोड़ खर्च करता है। इतने पैसों में तो वंदे भारत जैसी कई लग्जरी ट्रेने बन जाएं। रेलवे ने थूकने पर जुर्माना लगाया है और उन्नत सफाई तकनीकों का इस्तेमाल किया है। लेकिन इसके बावजूद लोग पान मसाला खाकर थूक देते हैं।

    By Gyanendra Tiwari Edited By: Gyanendra Tiwari Updated: Wed, 27 Aug 2025 05:19 PM (IST)
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    गुटखे के दाग रेलवे को पड़ते हैं भारी, साफ करने में खर्च होती है मोटी रकम

    नई दिल्ली। Indian Railways: भारतीय रेलवे देश की परिवहन व्यवस्था की रीढ़ की कही जाती है। रिपोर्ट के अनुसार हर दिन लगभग 3 करोड़ से अधिक लोग रेल में सफर करते हैं। सफर के दौरान बहुत से यात्री पान मसाला और गुटखे का भी सेवन करते हैं और बोगियों में ही थूकते हैं। इस थूक को साफ करने के लिए भारतीय रेलवे (Indian Railway  Gutkha Stain Clean Amount) हर साल 1200 करोड़ रुपये खर्च करती है। इतने में तो कई वंदे भारत ट्रेन बन जाएं।

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    हर साल, लगभग ₹1200 करोड़ सिर्फ ट्रेनों, प्लेटफॉर्म और स्टेशन परिसरों से गुटखे के दाग (Gutkha Stains) साफ करने पर खर्च किए जाते हैं।यह भारी-भरकम खर्च न केवल बहुमूल्य संसाधनों को बर्बाद करता है, बल्कि नागरिक भावना, जन स्वास्थ्य और जवाबदेही के गहरे मुद्दों को भी दर्शाता है।

    रेलवे को लगता है इतना चूना कि बन जाए 10 वंदे भारत

    गुटखे के थूक को साफ करने में भारतीय रेलवे जितनी रकम खर्च करती है उतने में 10 नई वंदे भारत ट्रेन (Vande Bharat Train) बन जाएं। एक वंदे भारत ट्रेन बनाने की लागत 110 से 120 करोड़ रुपये आती है। इसके हिसाब से रेलवे जितना पैसा थूक साफ करने में खर्च करता है उतने में 16 राजधानी ट्रेन और 10 वंदे भारत बन जाएं। एक राजधानी ट्रेन को बनाने में लगभग 75 करोड़ रुपये का खर्च आता है।

    गुटखा, सुपारी और स्वाद बढ़ाने वाले पदार्थों के साथ मिलाया जाने वाला चबाने वाला तंबाकू (Tobacco) का एक रूप है। इसका भारत भर में व्यापक रूप से सेवन किया जाता है। दुर्भाग्य से, कई लोग आदतन इसे खाकर सार्वजनिक स्थानों, खासकर रेलवे की संपत्ति पर थूक देते हैं। समय के साथ, ये दाग जिद्दी, भद्दे और अस्वास्थ्यकर हो जाते हैं, जिससे सौंदर्य और स्वास्थ्य दोनों संबंधी चिंताएं पैदा होती हैं।

    नहीं पड़ रहा लोगों पर कोई असर

    स्वच्छ भारत अभियान और समय-समय पर सफाई अभियानों के बावजूद, यात्रियों के व्यवहार में बदलाव न आने के कारण यह समस्या बनी हुई है। ये दाग न केवल रेलवे स्टेशनों (Railway Station) और ट्रेनों की शोभा बिगाड़ते हैं, बल्कि बीमारियों के फैलने का भी खतरा पैदा करते हैं, खासकर मानसून के मौसम में जब थूक बारिश के पानी में मिल जाता है।

    गुटखे के दागों की सफाई (Stain Clean) पर सालाना खर्च होने वाले ₹1,200 करोड़ को रेलवे के बुनियादी ढांचे, यात्री सुविधाओं या सुरक्षा उन्नयन में जरूरी सुधारों के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।

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