क्या होता है 'गोल्डन फाइबर'? जिसे बेच ये शख्स बना 7200 करोड़ का मालिक; खत्म हो रहे उद्योग से ऐसे चमकी किस्मत!
बांग्लादेश में राजनीतिक अशांति के चलते जूट निर्यात पर प्रतिबंध लगने से भारत का जूट उद्योग प्रभावित है। कच्चे जूट की कमी और कीमतों में वृद्धि से जगतदल ...और पढ़ें

नई दिल्ली। बांग्लादेश में राजनीतिक अशांति के कारण भारत का जूट उद्योग प्रभावित हो रहा है। बांग्लादेश ने सितंबर 2025 से कच्चे जूट के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया है, जिससे भारत में कच्चे जूट की कमी और कीमतों में भारी वृद्धि हुई है। बांग्लादेश में राजनीतिक अशांति के कारण भारत का जूट उद्योग प्रभावित हो रहा है। बांग्लादेश ने सितंबर 2025 से कच्चे जूट के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया है, जिससे भारत में कच्चे जूट की कमी और कीमतों में भारी वृद्धि हुई है।
उत्तर 24 परगना जिले के भटपारा में स्थित जगतदल (जगद्दल) जैसी जूट मिल (Jagatdal Jute Mill) कच्चे जूट की कमी और कीमत वृद्धि के कारण बंद हो गई है, जिससे लगभग 5,000 श्रमिक बेरोजगार हो गए हैं। वहीं हावड़ा जिले के बेलुर में स्थित महादेव जूट मिल (Mahadev Jute Mill) यह मिल भी इसी कारण से बंद हुई है और इससे लगभग 3,000 श्रमिक (जगतदल के साथ संयुक्त रूप से) प्रभावित हुए हैं।
आज जूट एक बिजनेस का रूप ले चुका है। कोलकाता की हुगली नदी के किनारे कभी जूट मिलों की सीटी पूरे शहर की पहचान हुआ करती थी। जूट को 'गोल्डन फाइबर' कहा जाता था और बंगाल की अर्थव्यवस्था इसी पर टिकी थी। लेकिन समय बदला। मजदूर आंदोलन, पुरानी मशीनें और प्लास्टिक जैसे सिंथेटिक विकल्पों की बढ़ती मांग ने जूट उद्योग को लगभग ठप कर दिया। मिलें बंद होने लगीं, मजदूर मायूस हो गए और पूरा उद्योग जैसे नींद में चला गया।
ऐसे मुश्किल दौर में 20वी सदी में एक नाम उम्मीद बनकर सामने आया जिनका नाम घनश्याम सरदा है। सरदा ग्रुप ऑफ इंडस्ट्रीज के चेयरमैन घनश्याम सरदा ने उस जूट उद्योग में संभावनाएं देखीं, जिसे बाकी लोग खत्म मान चुके थे। उनके लिए यह सिर्फ बिजनेस नहीं था, बल्कि विरासत, जिम्मेदारी और लोगों से जुड़ा एक मिशन था। सरदा ग्रुप के स्वामित्व वाली कंपनियों विजन कॉम्पटेक, अगरपारा जूट मिल, एक्सिस टेक्नोलॉजीज, अलवर जूट मिल शामिल हैं।
जब मैंने जूट उद्योग को देखा, तो मुझे गिरावट नहीं, बल्कि अपार संभावनाएं नजर आईं।- सरदा ग्रुप ऑफ इंडस्ट्रीज के चेयरमैन घनश्याम सरदा
उस वक्त कोलकाता की जूट मिलें बहुत कम क्षमता पर चल रही थीं। मजदूरों का मनोबल टूट चुका था। ऐसे में घनश्याम सरदा ने जिम्मेदारी अपने कंधों पर ली और उद्योग को दोबारा खड़ा करने की ठानी। सबसे पहले उन्होंने मिलों के आधुनिकीकरण पर ध्यान दिया। नई और आधुनिक मशीनों में निवेश किया ताकि उत्पादन बेहतर हो और जूट के नए, उच्च गुणवत्ता वाले उत्पाद तैयार किए जा सकें। लेकिन सरदा जानते थे कि सिर्फ मशीनें काफी नहीं होंगी।
घनश्याम सरदा की नेटवर्थ
उन्होंने असली ताकत जूट मिल के मजदूरों पर ध्यान दिया। कई सालों की उपेक्षा के बाद मजदूरों को फिर से खड़ा करना जरूरी था। इसके लिए उन्होंने ट्रेनिंग सेंटर शुरू किए, स्किल अपग्रेड प्रोग्राम चलाए और मजदूरों को नई तकनीक सिखाई। हुरून रिच लिस्ट 2023 के मुताबिक घनश्याम सरदा की नेटवर्थ 7,200 करोड़ रुपये है।
काम के हालात सुधारे गए, वेतन और सुविधाएं बढ़ाई गईं और मजदूरों में अपनापन पैदा किया गया। मुश्किल वक्त में उन्होंने मजदूरों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम किया। यहां तक कि उद्योग को बचाने के लिए सभी ने मिलकर वेतन में एक-तिहाई कटौती तक स्वीकार की।
80,000 से ज्यादा लोगों को रोजगार
हालांकि चुनौतियां कम नहीं थीं। वैश्विक बाजार में प्रतिस्पर्धा बढ़ रही थी और कई नए देश जूट उत्पादन में उतर चुके थे। लेकिन गुणवत्ता, नवाचार और भरोसे के दम पर सरदा ग्रुप ने अपनी अलग जगह बना ली।
आज हालात पूरी तरह बदल चुके हैं। सरदा ग्रुप देश के कई राज्यों में जूट मिलें चला रहा है और हजारों लोगों को सीधे और परोक्ष रूप से रोजगार दे रहा है। करीब 80,000 से ज्यादा लोगों को रोजगार देने वाला सरदा ग्रुप आज एक मल्टी-सेक्टोरल दिग्गज बन चुका है।

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