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    14 साल के लड़के ने खोला था एक नमकीन स्नैक्स स्टोर; आज 333 करोड़ का बिजनेस, पूरे परिवार का बना भविष्य

    Updated: Sun, 21 Dec 2025 06:47 PM (IST)

    चितले बंधु मिठाईवाले (Chitale Bandhu Success Story), जिसके फाउंडर भास्कर गणेश चितले हैं। 14 साल की उम्र में पिता की मृत्यु के बाद, उन्होंने परिवार की ...और पढ़ें

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    चितले बंधु ब्रांड के फाउंडर भास्कर गणेश चितले हैं। 

    नई दिल्ली। अगर आप किसी भी किराना दुकान स्टोर में जाएंगे, तो एक नाम आपको जरूर दिख सकता है। जिसका नाम चितले बंधु मिठाईवाले (Chitale Bandhu Mithaiwale) है। लेकिन इस सफलता की कहानी जितनी मीठी है, उसकी शुरुआत उतनी ही कड़वी और संघर्षों से भरी हुई थी।

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    14 साल की उम्र में उठा पिता का साया

    चितले बंधु ब्रांड के फाउंडर भास्कर गणेश चितले (Chitale Bandhu Success Story) हैं। लोग उन्हें प्यार से बाबासाहेब कहते थे। वह जमींदार परिवार में पैदा हुए थे। बचपन में जिंदगी आराम से चल रही थी, लेकिन महज 14 साल की उम्र में पिता की मृत्यु ने सब कुछ बदल दिया। घर की जिम्मेदारी संभालने के लिए उन्हें पढ़ाई छोड़नी पड़ी और मां के साथ संघर्ष भरा जीवन शुरू हो गया।

    महामारी ने छीन लिया सबकुछ

    1918 में फैली स्पैनिश फ्लू जैसी महामारी ने भास्कर चितले के जीवन को पूरी तरह झकझोर दिया। हालात इतने खराब हो गए कि कभी जमींदार परिवार से ताल्लुक रखने वाले भास्कर को सातारा जिले के सूखाग्रस्त गांव लिंबगांव में खेतों में मजदूरी करनी पड़ी। जब मजदूरी से भी घर नहीं चल पाया, तो उन्होंने सांगली जिले के भिलवड़ी जाकर नई शुरुआत करने का फैसला किया।

    पहला बिजनेस फेल, फिर भी नहीं मानी हार

    कृष्णा नदी के तट पर बसे भिलवड़ी में भास्कर चितले ने डेयरी बिजनेस शुरू किया। लेकिन किस्मत ने एक बार फिर उनकी परीक्षा ली। बीमारी के कारण मवेशी मरने लगे और पहला बिजनेस पूरी तरह ठप हो गया। इसके बावजूद उन्होंने हार नहीं मानी और 1939 में चितले ग्रुप ऑफ इंडस्ट्रीज की नींव रखी।

    समस्या से निकाला अवसर

    उस दौर में दूध को स्टोर करना बड़ी चुनौती थी क्योंकि न तो पाश्चुरीकरण था और न ही आधुनिक तकनीक। ताजा दूध दूर तक पहुंचाना संभव नहीं था। यहीं से भास्कर चितले को नया रास्ता दिखा। दही, श्रीखंड, चक्का जैसे उत्पादों से उनका कारोबार चल पड़ा और धीरे-धीरे मुंबई व पुणे तक पहचान बनने लगी।

    पुणे में खुली पहली दुकान, भाकरवड़ी बनी पहचान

    1950 में पुणे के कुंटे चौक पर पहली चितले बंधु दुकान खुली, जो बाद में बाजीराव रोड शिफ्ट हुई। 1976 में गुजराती नमकीन भाकरवड़ी को महाराष्ट्रीयन स्वाद में ढालकर पेश किया गया। आज स्थिति यह है कि जहां पहले 40 लोग मिलकर 200 किलो भाकरवड़ी बनाते थे, वहीं अब मशीनों से एक घंटे में 2,000 किलो उत्पादन हो रहा है।
    आज चितले बंधु का मैन्युफैक्चरिंग प्लांट पुणे के पास रांजे में है, जो करीब 1.5 लाख वर्ग फुट में है। चौथी पीढ़ी के उद्यमी इंद्रनील चितले और केदार चितले तेजी से काम कर रहे हैं।

    chitale bandhu

    333 करोड़ रुपये का कारोबार

    आज चितले बंधु के कारोबार का रेवेन्यू 333 करोड़ रुपये तक पहुंच चुका है। देशभर में इसके 125 से ज्यादा स्टोर्स हैं। पुणे के बाहर 35 से अधिक एक्सप्रेस आउटलेट्स हैं। इसके नमकीन, मिठाई, हेल्दी स्नैक्स और डेयरी प्रोडक्ट्स हैं। ये IPL 2025 में मुंबई इंडियंस के साथ स्नैकिंग पार्टनर रह चुकी है।

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