एक और मंदी के साये में दुनिया, भारतीय शेयर बाजार भी धड़ाम
दुनिया भर के तमाम वित्तीय व कमोडिटी बाजार एक बार फिर वैश्विक मंदी के मुहाने पर खड़े हैं। पिछले कुछ दिनों से चीन की अर्थव्यवस्था के कमजोर होने के जो संकेत थम-थम कर मिल रहे थे उसकी आशंका और बढ़ गई है। इस आशंका में भारत के शेयर, मौद्रिक और
नई दिल्ली [जयप्रकाश रंजन]। दुनिया भर के तमाम वित्तीय व कमोडिटी बाजार एक बार फिर वैश्विक मंदी के मुहाने पर खड़े हैं। पिछले कुछ दिनों से चीन की अर्थव्यवस्था के कमजोर होने के जो संकेत थम-थम कर मिल रहे थे उसकी आशंका और बढ़ गई है। इस आशंका में भारत के शेयर, मौद्रिक और कमोडिटी बाजार में भी जबरदस्त कोहराम मचा हुआ है।
सोमवार को मुंबई शेयर बाजार में अबतक की सबसे बड़ी गिरावट देखी गई। सेंसेक्स 1624.51 अंक गिरकर 25,741.56 पर बंद हुआ। वहीं निफ्टी में 490.95 अंक गिरकर 7,809 पर बंद हुआ।। दो साल में पहली बार डॉलर के मुकाबले रुपया 66 के पार है, लगभग 60 पैसे कमजोर होकर 66.42 रुपये के स्तर पर आ गया। बुलियन बाजार में भी जबरदस्त अस्थिरता का माहौल है। सोने व चांदी की कीमतों में गिरावट का रुख बना हुआ है। जानकारों का कहना है कि दुनिया भर के तमाम देशों के वित्तीय और जींस बाजार में एक साथ इतनी बड़ी गिरावट को क्षणिक प्रतिक्रिया कह कर नहीं टाला जा सकता।
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असलियत में मंदी के इस माहौल के लिए चीन के बाजार को लेकर किए गए एक ताजे सर्वेक्षण को दोषी माना जा रहा है। इसके मुताबिक चीन का औद्योगिक उत्पादन पिछले कई वर्षों के न्यूनतम स्तर पर आ गया है और इसकी स्थिति में हाल फिलहाल सुधार की गुंजाइश भी कम नजर आ रही है। इसी आशंका में ही पिछले दिनों चीन की सरकार ने अप्रत्याशित कदम उठाते हुए अपनी मुद्रा युआन की कीमत का अवमूल्यन किया था।
साथ ही विकसित देशों की मांग भी निराशानजक नहीं है। अमेरिका में कई वर्षों बाद ब्याज दरों को बढ़ाने की तैयारी है। यूरोप के अधिकांश देश अपनी अर्थव्यवस्था को संभालने में जुटे हुए हैं लेकिन यह कब तक पटरी पर आएगी, इसको लेकर कोई भी ठोसपूर्वक कहने को तैयार नहीं है।
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सोमवार को मुंबई शेयर बाजार 1055 अंकों की गिरावट के साथ खुला। नेशनल स्टॉक एक्सचेंज भी 334 अंकों की गिरावट के साथ 7965 अंकों पर आ गया था। शेयर बाजार की यह मंदी मुद्रा बाजार में भी देखी गई। रुपये डॉलर के मुकाबले 66.49 के स्तर पर पहुंच गया जो पिछले दो वर्षों का रुपये का सबसे न्यूनतम स्तर है। बाजारों की इस प्रतिक्रिया पर सरकार व रिजर्व बैंक की नजर भी है।
यही वजह है कि मुंबई में एक कार्यक्रम के दौरान भारतीय रिजर्व बैंक के गर्वनर डॉ. रघुराम राजन ने बाजार को यह आश्वासन दिया कि देश के पास पर्याप्त विदेशी मुद्रा भंडार है। इसलिए रुपये की कीमत में जो अस्थिरता आ रही है उससे घबड़ाने की जरूरत नहीं है। लेकिन दोपहर तक राजन के बयान का असर देश के बाजारों पर होता नहीं दिख रहा है।
इस मंदी से भारतीय अर्थव्यवस्था पर भी काफी असर पड़ने की संभावना है। वैसे अंतरराष्ट्रीय कमोडिटी बाजार में भारी मंदी से कुछ फायदा भी होगा। मसलन, कच्चे तेल की कीमतों के 40 डॉलर प्रति बैरल आ जाने से भारत का आयात बिल और कम होगा। साथ ही आम जनता को सस्ती कीमत पर पेट्रोल, डीजल व रसोई गैस मिलेगी।
लेकिन तेल कंपनियों के शेयरों का विनिवेश कर राजस्व घाटा पूरा करने की सरकार की मंशा को धक्का लग सकता है। वैसे भी आज शेयर बाजार में जो गिरावट का माहौल है उससे तेल कंपनियों के शेयरों की कीमतें काफी घटी है। वैसे रुपये के कमजोर होने से निर्यात बढ़ने की संभावना कम ही है क्योंकि दुनिया के तमाम देशों में मांग कम हो रही है और कई मुद्राओं के मुद्राओं के मुकाबले भारतीय रुपया हाल के दिनों में मजबूत हुआ है। हां, खाद्य तेलों के अंतरराष्ट्रीय कीमतों में भी काफी गिरावट देखी जा रही है। इसका भी फायदा होगा।