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    Bank Loan History: भारत में कैसे हुई लोन की शुरुआत, सदियों पहले विदेशी व्यापार के लिए मिलता था कर्ज

    By Abhinav ShalyaEdited By: Abhinav Shalya
    Updated: Mon, 22 May 2023 06:55 PM (IST)

    Evolution of Bank Loan भारत में लोन का इतिहास काफी पुराना है। समय के साथ-साथ इसमें काफी बदलाव आया है। हम अपनी रिपोर्ट में प्राचीन काल से लेकर 21वीं सद ...और पढ़ें

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    Bank Loan History: From Ancient Time to 21st Century

    नई दिल्ली, बिजनेस डेस्क। भारत में लोन का इतिहास पैसे जितना ही पुराना है। गौतम बुद्ध के जन्म के पहले की कहानियों के संग्रह जातक ग्रंथों में बताया गया है कि एक महिला अपने बेटे को हजारों गोल्ड कॉइन रिकवर करने भेजती है, जिसे उसके पति की ओर से किसी व्यक्ति को कर्ज के रूप में दिया गया था।

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    समय के साथ-साथ लोन देने के तरीकों में काफी बदलाव आया है। पहले बैंकिंग सिस्टम का मतलब साहूकर थे, अब बैंक हैं। आइए, जानते हैं लोन की शुरुआत कैसे हुई और अब ये सिस्टम में कहां तक है।

    प्राचीन भारत में कैसे दिया जाता था लोन?

    भारत में लोन का इतिहास काफी पुराना है। ब्रिटिशकाल से पहले भी भारत में लोन देने का पूरा एक सिस्टम था, जिसका जिक्र वेदों और मनुस्मृति में भी किया गया है। संस्कृत में कुसीदा, वर्धुसा, वृद्धि और ब्याज जैसे शब्दों का भी प्रयोग लोन पर ब्याज के लिए किया जाता है। 5वीं सदी तक लोन कैश के साथ वस्तु के रूप में भी दिए जाते थे। इस पर ब्याज की दरें भी अनिश्चित होती थीं।

    भारत के महान अर्थशास्त्री माने जाने वाले कौटिल्य की ओर से बिल ऑफ एक्सचेंज के पूरे सिस्टम के बारे में बताया गया है, जो कि विदेशी व्यापार करने में व्यापारियों की मदद करता था।

    मध्य काल में लोन की व्यवस्था कैसी थी?

    मुगलकाल के दौरान दस्तावेज नाम लोन देने की प्रक्रिया पॉपुलर हुई। उस समय 'दस्तावेज-ए-इंदुलताब' का मतलब मांग पर लोन, जबकि 'दस्तावेज-ए-मियादी' का मतलब कुछ समय बाद लोन के लिए किया जाता है। किसानों को दीवान के कार्यालय से अग्रिम ऋण या तकावी लेने की भी अनुमति थी।

    ब्रिटिश काल में स्थापित हुई लोन व्यवस्था

    ईस्ट इंडिया कंपनी के भारत आने के साथ ही लोन देने की व्यवस्था में बड़ा बदलाव आना शुरू हो गया। कलकत्ता (अब कोलकाता) में बैंक ऑफ हिंदुस्तान ने कामकाज शुरू किया। हालांकि, यह 1832 में फेल हो गया था।

    इसके बाद बड़े प्रदेशों जैसे बॉम्बे, बंगाल और मद्रास में धीर-धीरे बैंकिंग गतिविधियां शुरू होने लगीं। कई बैंक स्थापित किए गए। इसके जरिए ही लोन लोगों में बांटे जाने लगे। प्रथम विश्व युद्ध के बाद 1935 में रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की स्थापित की गई।

    आजादी के बाद लोन की व्यवस्था कैसी थी?

    आजादी के बाद भारत में तेजी से बैंकों का विस्तार हुआ और व्यापारियों एवं आम जनता को जरूरतों के लिए लोन दिए जाने लगे। बैंकों की पहुंच बढ़ाने के लिए सरकार ने सभी बैंकों का 1969 में राष्ट्रीयकरण कर दिया।

    1991 में उदारीकरण और निजीकरण जैसे बदलाव करने के बाद बैंकों से लोन लेना आम जनता और कारोबारियों के लिए आसान हो गया।

    21वीं सदी में ऑनलाइन हुई व्यवस्था

    21वीं सदी में लोन लेने की प्रक्रिया में बड़ा बदलाव आया है। अब लोन लेने के बैंक जाने की जरूरत नहीं होती है। आप घर बैठे ही लोन के लिए आवेदन कर सकते हैं। आज के समय में क्रेडिट स्कोर जैसे फीचर आ गए हैं, जिसकी मदद से बैंकों को आपकी क्रेडिट हिस्ट्री आसानी से पता लग जाती है।

     

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