अदाणी के कॉपर प्लांट में अयस्क की कमी से उत्पादन पर संकट, मिल रहा जरूरत का 10% से भी कम; क्या है वजह?
गौतम अदाणी (Gautam Adani) के गुजरात स्थित कॉपर स्मेल्टर को क्षमतानुसार चलाने के लिए अयस्क की कमी हो रही है। कच्छ कॉपर लिमिटेड, जिसने जून में प्रोसेसिंग शुरू की, आवश्यक कच्चे माल का दसवां हिस्सा भी नहीं जुटा पाई है। माइनिंग में रुकावटों और चीनी स्मेल्टिंग क्षमता के विस्तार से सप्लाई प्रभावित हुई है। कच्छ कॉपर की धीमी शुरुआत भारत की आत्मनिर्भरता की कोशिशों में मुश्किलों का संकेत है।

गौतम अदाणी के प्लांट के लिए कम हो रही सप्लाई
नई दिल्ली। भारतीय अरबपति गौतम अदाणी (Gautam Adani) के गुजरात में 1.2 बिलियन डॉलर (10687 करोड़ रुपये) के कॉपर स्मेल्टर को 500,000 टन सालाना प्लांट की पूरी क्षमता से चलाने के लिए जरूरी अयस्क का सिर्फ एक छोटा सा हिस्सा ही मिल रहा है। इसकी वजह है ग्लोबल सप्लाई में कमी।
कस्टम डेटा के मुताबिक, कच्छ कॉपर लिमिटेड, जिसने कई बार विलंब के बाद जून में मेटल प्रोसेसिंग शुरू की थी, जरूरी रॉ मटेरियल के 10वें हिस्से से भी कम मंगा पाई है। साल 2025 में अक्टूबर तक 10 महीनों में, इसने लगभग 147,000 टन कॉपर कंसन्ट्रेट इंपोर्ट किया। ब्लूमबर्ग के इकट्ठा किए गए डेटा के मुताबिक, कॉम्पिटिटर हिंडाल्को इंडस्ट्रीज लिमिटेड ने इसी समय के दौरान 1 मिलियन टन से थोड़ा ज्यादा अयस्क खरीदा।
क्यों कम हुई सप्लाई
ब्लूमबर्ग की पिछली रिपोर्ट के अनुसार अदाणी ग्रुप के स्मेल्टर को पूरी ताकत से काम करने के लिए लगभग 1.6 मिलियन टन कंसन्ट्रेट की जरूरत होती है। इस साल हर जगह कॉपर स्मेल्टर की सप्लाई पर माइनिंग में रुकावटों की वजह से असर पड़ा है, जिसमें फ्रीपोर्ट-मैकमोरन इंक, हडबे मिनरल्स इंक, इवानहो माइन्स लिमिटेड और चिली की सरकारी कंपनी कोडेल्को जैसे बड़े प्रोड्यूसर शामिल हैं।
इस मुश्किल में और बढ़ोतरी करते हुए, चीन की अपनी स्मेल्टिंग कैपेसिटी के लगातार विस्तार ने प्रॉफिट मार्जिन को कम कर दिया है और देश के बाहर के कुछ प्रोड्यूसर को प्रोडक्शन कम करने या बंद करने पर मजबूर कर दिया है।
ट्रीटमेंट और रिफाइनिंग चार्ज में भी गिरावट
ट्रीटमेंट और रिफाइनिंग चार्ज, वह फीस होती है जो माइनर्स प्रोसेसिंग के लिए देते हैं और कम सप्लाई के कारण ये इस साल रिकॉर्ड निचले स्तर पर आ गए हैं। इससे पता चलता है कि स्मेल्टर्स मटीरियल हासिल करने के लिए और भी कम मार्जिन लेने को तैयार हैं।
कच्छ कॉपर जैसी नई कंपनियों के लिए, जो चार साल में सालाना कैपेसिटी को दोगुना करके 1 मिलियन टन करने का प्लान बना रही हैं, सप्लाई कम होने का मतलब है फैसिलिटी को मेंटेन करने में ज्यादा खर्च, और रैंप-अप प्रोसेस में और भी ज्यादा समय लगना।
कच्छ कॉपर की धीमी शुरुआत किस तरफ है इशारा
माना जा रहा है कि कच्छ कॉपर की धीमी शुरुआत भारत की मेटल्स में आत्मनिर्भरता बढ़ाने की कोशिशों में आ रही मुश्किलों की ओर इशारा करती है। इंफ्रास्ट्रक्चर, पावर और कंस्ट्रक्शन सेक्टर से बढ़ती डिमांड, सीमित प्रोसेसिंग कैपेसिटी और सीमित घरेलू ओर रिजर्व से कहीं ज्यादा है।
कच्छ कॉपर की धीमी शुरुआत भारत की मेटल्स में आत्मनिर्भरता बढ़ाने की कोशिशों में आ रही मुश्किलों की याद दिलाती है। इंफ्रास्ट्रक्चर, पावर और कंस्ट्रक्शन सेक्टर से बढ़ती डिमांड, सीमित प्रोसेसिंग कैपेसिटी और सीमित घरेलू ओर रिजर्व से कहीं ज्यादा है।

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