पश्चिम चंपारण में NDA के गढ़ में सेंधमारी की जद्दोजहद, JDU की 3 और सीटों पर दावेदारी से तनाव!
पश्चिम चंपारण 1990 से एनडीए का गढ़ रहा है। 2005 में नीतीश कुमार के नेतृत्व में एनडीए सरकार बनने पर जिले की नौ में से छह सीटें एनडीए ने जीतीं। वर्तमान में सात सीटें एनडीए के पास हैं पर जदयू द्वारा तीन और सीटों पर दावेदारी से राजनीतिक तनाव बढ़ सकता है। बागी उम्मीदवारों ने पहले भी एनडीए की राह में बाधाएं खड़ी की हैं।

जागरण संवाददाता, बेतिया। 1990 के विधानसभा चुनाव के बाद पश्चिम चंपारण जिला एनडीए के गढ़ के रूप में बिहार में जाना जाने लगा था। पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह के नेतृत्व वाली जनता दल के साथ भाजपा का गठबंधन हुआ था।
उस समय पश्चिम चंपारण के नौ विधानसभा क्षेत्रों में चार बगहा, रामनगर, बेतिया, चनपटिया और नौतन से एनडीए गठबंधन के क्रमश: पूर्णमासी राम, चंद्रमोहन राय, डॉ. मदन प्रसाद जायसवाल, कृष्णकुमार मिश्र चुनाव जीते थे।
उसके बाद से जिले के प्राय: विधानसभा क्षेत्रों पर एनडीए का दबदबा कायम हो गया था। बिहार में 2005 में नीतीश कुमार के नेतृत्व में एनडीए की सरकार बनी, उस वक्त जिले के नौ विधानसभा में से छह विधानसभा क्षेत्र से एनडीए के उम्मीदवार जीते थे।
फिलवक्त नौ में से सात पर एनडीए का कब्जा है। इसमें से एक सीट वाल्मीकिनगर से जदयू के विधायक धीरेंद्र प्रताप सिंह उर्फ रिंकू सिंह हैं। अभी जदयू की ओर से तीन सीटों के लिए अतिरिक्त दावेदारी की गई है, जिसमें रामनगर, चनपटिया एवं नौतन शामिल है।
जदयू की इस दावेदारी को लेकर राजनीतिक माहौल बिगड़ सकता है, क्योंकि यहां बागियों ने हर बार एनडीए की राह रोकी है। 2020 के चुनाव में सिकटा से जदयू के खुर्शीद फिरोज अहमद उम्मीदवार थे। भाजपा के बागी दिलीप वर्मा ने उनकी राह रोक दी और भाकपा माले के वीरेंद्र गुप्ता चुनाव जीत गए थे।
वर्तमान में एनडीए के कार्यकर्ता बदलते बिहार और विकास के एजेंडे के साथ जनता के बीच हैं तो आईएनडीआई गठबंधन 2024 के लोकसभा चुनाव वाले एजेंडे के साथ मैदान में है।
'मिनी चंबल' के रूप में विख्यात जिले में लोगों को फिर से उस माहौल की वापसी का डर सता रहा है और एनडीए के कार्यकर्ता उसी डर को भुनाने का प्रयास भी कर रहे हैं।
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