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    Diwali 2023: दिवाली की पूर्व संध्या पर थारू समाज में धर्मदीयरी की परंपरा, दीया लेकर पहुंचते हैं राम जानकी मंदिर, जानें और क्या है नियम

    By Prabhat MishraEdited By: Mukul Kumar
    Updated: Wed, 08 Nov 2023 07:45 PM (IST)

    दिवाली में अब कुछ ही दिन बाकी रह गए हैं। समाज में हर व्यक्ति अपने हिसाब से दिवाली मनाता है। हमारे देश में विभिन्न जगहों पर अलग-लग तरीके से दिवाली मनाई जाती है। जानकारी के मुताबिक दीपावली की पूर्व संध्या थारू समाज के लोग सामूहिक रूप से धर्मदीयरी मनाते हैं। खास बात यह है कि सूरज अस्त होने के पहले वह राम जानकी मंदिर दीया लेकर पहुंचते हैं।

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    थारू समाज में सामूहिक धर्मदीयरी की परंपरा

    प्रभात मिश्र, नरकटियागंज (पश्चिम चंपारण)। दीपावली की पूर्व संध्या जमदीयरी की जगह थारू समाज के लोग सामूहिक रूप से धर्मदीयरी मनाते हैं। उस दिन सूरज अस्त होने के पहले टहकौल राम जानकी मंदिर में एक-एक दीया के साथ पहुंचते हैं।

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    दर्जनों लोग निभाते हैं परंपरा

    दीया जलाते हैं और ध्यान करते हैं। उसके बाद पूजा अर्चना कर भजन कीर्तन में शामिल होते हैं। पूजा के बाद भजन कीर्तन और शेष रातें गुजारने के लिए मंदिर के पास गुरु आश्रम बना हुआ है। टहकौल निवासी दयाशंकर पटवारी बताते हैं कि आमतौर पर दीपावली के एक दिन पहले घरों से जमदीयरी निकाली जाती है। 

    उन्होंने कहा कि हमारे थारू समाज में यह प्रथा धर्मदीयरी के रूप में मनाई जाती है। धर्मदीयरी का दीप जलाया जाता है। इस पूजा में टहकौल, मंडीहा, विजयपुर, कोहरगड्डी, सिरसिया, परसौनी, मेहनौल समेत दर्जनों गांव के लोग शामिल रहते।

    घरों से बाहर कोई नहीं निकलता

    थारु जनजाति समाज का मानना है कि प्रभु की आस्था में धर्म का दीप जलाकर ही हम अपने आप की रक्षा कर सकते हैं। इसलिए जमदीयरी (छोटी दीवाली) को वे धर्मदीयरी कहते हैं। गांव की महिला विद्यावती देवी और रेनू देवी बताती हैं कि दीपावली की पूरी रात अपने अपने घरों से बाहर कोई नहीं निकलता।

    जरुरत की सभी सामग्रियां पहले ही खरीद कर रख ली जाती हैं। कोई एक दूसरे के घर नहीं जाता है। यहां तक की बच्चों को भी नहीं जाने दिया जाता है। मान्यता है कि घर की लक्ष्मी दूसरे के घर चली जाएगी। इसीलिए समाज के लोग अपने अपने घरों में ही पूजन कार्य में लगे रहते हैं।

    पति व पत्नी पूरी रात दीप जलाकर जगते हैं। दयाशंकर पटवारी ने बताया कि लंबे समय से यह परंपरा चली आ रही है। 25 वर्षों से मैं इस धर्मदीयरी में शामिल होता हूं। क्षेत्र की सुख समृद्धि के लिए थारू समाज में सामूहिक रूप से इस पूजा की परंपरा है।

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