Updated: Mon, 06 Oct 2025 02:46 PM (IST)
दशहरा के बाद सुपौल जिले के कोसी क्षेत्र से रोजगार की तलाश में पलायन शुरू हो गया है। सैकड़ों लोग पंजाब हरियाणा और दिल्ली जैसे राज्यों में जा रहे हैं क्योंकि बिहार में रोजगार के अवसर सीमित हैं। कृषि और निर्माण कार्यों में मजदूरी के लिए लोग पलायन कर रहे हैं जिससे गांवों में सन्नाटा पसर गया है और स्थानीय व्यापार प्रभावित हो रहा है।
संवाद सूत्र, सरायगढ़ (सुपौल)। दशहरा पूजा की समाप्ति के साथ ही कोसी क्षेत्र के विभिन्न इलाकों से एक बार फिर बड़े पैमाने पर लोगों का पलायन शुरू हो गया है। हर साल की तरह इस बार भी पूजा के बाद गांवों से सैकड़ों की संख्या में युवक और परिवार के मुखिया पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान और अन्य राज्यों की ओर निकल पड़े हैं।
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उद्देश्य एक ही है रोजी-रोटी की तलाश। भले ही गांव में त्योहार की रौनक अभी पूरी तरह खत्म भी नहीं हुई हो, लेकिन रेलवे स्टेशन और बस स्टैंड पर बाहर जाने वालों की भीड़ स्पष्ट रूप से देखने को मिल रही है। लोग अपने-अपने गांवों से छोटे-बड़े बैग, बिस्तर और खाने-पीने का सामान लेकर रवाना हो रहे हैं।
बिहार में नहीं मिलता काम
पलायन कर रहे लोगों से जब कारण पूछा गया, तो लगभग सभी के जवाब एक जैसा होता है कि गांव में कोई काम नहीं है। परिवार चलाने के लिए बाहर जाना ही पड़ता है। अधिकांश लोग उत्तर भारत के राज्यों में कृषि कार्य, ईंट भट्ठा, फैक्ट्री और निर्माण कार्यों में मजदूरी करने जाते हैं।
फिलहाल पंजाब और हरियाणा में धान कटनी का मौसम शुरू होने वाला है, ऐसे में कोसी क्षेत्र के मजदूर वहां धान कटाई और मंडी में उठाई-पटाई का काम करने के लिए जा रहे हैं। सरायगढ़ प्रखंड के राघोपुर निवासी महेश यादव ने बताया कि हर साल दशहरा खत्म होते ही हमलोग निकल पड़ते हैं।
इधर खेती-बारी में अब काम नहीं के बराबर है। बाहर जाकर जो कुछ कमाई होती है, वही घर खर्च और बच्चों की पढ़ाई में लगता है। दिलचस्प बात यह है कि इस बार विधानसभा चुनाव की आहट भी तेज हो चुकी है।
बिहार चुनाव में पड़ेगा असर
प्रशासनिक हलकों में चर्चा है कि इसी महीने के अंत तक आचार संहिता लागू हो सकती है और नवंबर में मतदान होने की संभावना है। ऐसे में बड़ी संख्या में हो रहे इस पलायन से मत प्रतिशत पर असर पड़ना तय माना जा रहा है।
जब बाहर जा रहे कुछ मजदूरों से पूछा गया कि क्या वे मतदान के लिए वापस लौटेंगे, तो अधिकांश का जवाब था कि अगर आ सके तो वोट गिरा देंगे, नहीं तो घर की महिलाएं वोट डाल देंगी।
कुछ ने यह भी कहा कि रोजी-रोटी सबसे जरूरी है। अगर हम बाहर नहीं जाएंगे तो परिवार भूखा रहेगा। दशहरा तक जिन गांवों में रौनक और भीड़-भाड़ रहती है, वहीं अब सन्नाटा पसरने लगा है। बाजारों में मजदूरी करने वालों की संख्या घट गई है।
व्यापारी भी हो रहे निराश
छोटे दुकानदारों का कहना है कि दशहरा के बाद व्यापार भी थोड़ा ठहर जाता है, क्योंकि जिनके भरोसे खरीदारी होती थी, वे सभी बाहर चले जाते हैं। भपटियाही प्रखंड के दुकानदार पंकज चौधरी बताते हैं कि पूजा के समय बाजार में खूब भीड़ रहती है, पर जैसे ही पूजा खत्म होती है, मजदूर तबका बाहर चला जाता है।
इससे बाजार की रौनक गायब हो जाती है। राज्य और केंद्र सरकार द्वारा चलाई जा रही विभिन्न रोजगार योजनाएं पलायन पर अंकुश नहीं लग पा रही हैं। ग्रामीणों का कहना है कि मनरेगा में काम सीमित है और मजदूरी का भुगतान भी समय पर नहीं होता।
इस वजह से वे बाहर जाकर स्थायी आमदनी के लिए मजबूर हैं। स्थानीय समाजसेवी राकेश मिश्रा का कहना है कि अगर सरकार गांवों में ही रोजगार के ठोस साधन विकसित करे तो मजदूरों को अपने गांव छोड़कर बाहर नहीं जाना पड़ेगा। पलायन केवल आर्थिक समस्या नहीं है, यह सामाजिक ढांचे को भी कमजोर करता है।
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