स्वतंत्रता के सारथी: आजादी की लड़ाई में आगे रहे कोसी के सपूत, अंग्रेजों को धूल चटाकर जमाई थी धाक
सुपौल के स्वतंत्रता सेनानियों ने देश की आजादी के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया। पंडित राजेन्द्र मिश्र और शिव नारायण मिश्र जैसे वीरों ने अंग्रेजों के खिलाफ आवाज उठाई और लोगों को प्रेरित किया। नमक आंदोलन में भी इस क्षेत्र के लोगों ने बढ़-चढ़कर भाग लिया। इन रणबांकुरों के बलिदान को आज भी याद किया जाता है और उन्हें श्रद्धांजलि दी जाती है।
जागरण संवाददाता, सुपौल। आजादी अच्छी किसे नहीं लगती। चाहे खूंटे से बंधा हुआ पशु हो या पिंजरे में कैद पक्षी। सभी गुलामी की जंजीर को तोड़कर आजादी का जीवन चाहते हैं। तो फिर कोसी के रणबांकुरों, मां भारती के लालों को फिरंगी हुकूमत कैसे बर्दाश्त होती।
स्वतंत्रता संग्राम में कोसी के सपूतों ने बढ़-चढ़कर भूमिका निभाई और फिरंगियों को धूल चाटने पर मजबूर किया। पंडित राजेन्द्र मिश्र उर्फ राजा बाबू एवं खूब लाल मेहता इस जिले के पहले स्वतंत्रता सेनानी हुए। जिले के कर्णपुर गांव निवासी शिव नारायण मिश्र उर्फ लाल बाबाजी ने अपना संपूर्ण जीवन राष्ट्र के नाम न्यौछावर कर दिया।
नमक आंदोलन का बिगुल
कोसी क्षेत्र में नमक आंदोलन का बिगुल उन्हीं के नेतृत्व में उनके ही पैतृक गांव कर्णपुर से फूंका गया। लाल बाबाजी स्वतंत्रता आंदोलन के विशेष दूत और सुभाष के संदेशों को गांव-गांव पहुंचाया करते थे।
अंग्रेजों ने पैसे को आग में लाल कर उनके पूरे शरीर को दाग दिया था और उनकी गर्दन तोड़ दी गई, जो जीवनपर्यंत सीधी न हो सकी। परंतु फिरंगी उन्हें झुका नहीं सके। उनके ही शिष्यवत रहे लहटन चौधरी अपने बाल्यकाल में ही इस संग्राम में कूद पड़े और आजादी मिलने तक संघर्ष करते रहे।
बढ़-चढ़कर लिया था हिस्सा
कर्णपुर के ही चन्द्रकिशोर पाठक, भोगेन्द्र पाठक, बलदेव चौधरी, नवीन पाठक, महेन्द्र पाठक, साजेन्द्र मिश्र, शशिधर मिश्र, रामजी चौधरी, तेज नारायण पाठक की भूमिका भी अविस्मरणीय है। बलुआ के ललित नारायण मिश्र ने भी आजादी की लड़ाई में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था।
गढ़ बरुआरी के गंगा प्रसाद सिंह, सुखदेव झा, बरैल के शत्रुघ्न प्रसाद सिंह जैसे योद्धा जीवन भर फिरंगियों से लड़ते रहे। इन्होंने अपनी तमाम सुख सुविधाओं का परित्याग कर फिरंगियों से लोहा लिया।
इनकी कुर्बानी नहीं भुलाई जा सकती
आजादी के लड़ाई के दौरान यहां सुखपुर के कामेश्वर झा, बमभोला चंद, बौकू कामत, अरूप नंदन सिंह, तारणी प्रसाद सिंह, रामेश्वर सिंह, कपिलेश्वर मिश्र, सीताराम सिंह, अवध नारायण सिंह, खगेशी झा, मल्हनी के काली प्रसाद सिंह, ठाकुर सिंह, हरिनारायण सिंह, महेश्वर सिंह, बतहन साफी, परसरमा के त्रिवेणी सिंह ने अपनी भूमिका निभाई।
वहीं, यमुना प्रसाद सिंह, चन्द्रशेखर मिश्र, जगदीश सिंह, रामभद्र मिश्र, अनंत चौधरी, युगल किशोर सिंह, रामावतार सिंह, वीणा और एकमा के दिगम्बर ठाकुर, कृष्णकांत झा, विश्वम्भर मिश्र, भूरा पासवान, सुरेश्वर झा, महानंद झा, अजगैबीनाथ झा, शैलेश्वर मिश्र, तारणीकांत झा, भुजंगी झा, बलहा के महेश्वर कामत ने भी इसमें हिस्सा लिया।
इनके अलावा यमुना झा, वासुदेव झा, खुशीलाल भगत, लाली चौधरी, जगतपुर के जयवीर झा, कुलानंद मल्लिक, कुशेश्वर मल्लिक, जयराम मिश्र, नेमुआ के ढलाय चौधरी, मलाढ़ के कपिलेश्वर झा, मृत्युंजय झा, महुआ के मो.सफीक, सोल्हनी के रामेश्वर खां उर्फ बटुक खां की कुर्बानी को भी भुलाया नहीं जा सकता है।
जदिया के सखीचंद मंडल, कुंजी लाल यादव, कुंज बिहारी मंडल, कुसुम लाल यादव, विद्यानंद मंडल, हरदी के मधुकर कामत, निर्मली के रसिक लाल धानुक, गंगा प्रसाद चौधरी, भीखू पैकार, सिताय संत, रामप्रताप मंडल, नंदन सिंह, पिपरा-खुर्द के ठीठर गोप, हटबरिया के हरिवल्लभ सिंह, फुलेश्वर सिंह को लोग आज भी याद रखते हैं।
इसी तरह थरबिटिया के ढ़ोराय कामत, आनंदीपट्टी के पंचानन सिंह, नरसिंह प्रसाद सिंह, थुमहा के शिवनंदन झा, सोनी मंडल, लखीचंद मंडल, अमहा के हीरालाल कामत, हरदी के रामपाल यादव, कोरियापट्टी के शालिग्राम सिंह, सियाराम सिंह, बैकुंठ प्रसाद सिंह, डपरखा के सरोवर मंडल, माणिक लाल मंडल, बैरो के रामावतार सिंह, सरायगढ़ के रामदेव गुप्ता भी इसमें शामिल रहे।
वहीं, बौराहा किशनपुर के शिव नारायण राय, हरदी के भुवनेश्वर मंडल, बेला सिंगार के गंगा राम मुखिया, त्रिवेणीगंज के सुरेश्वर पाण्डेय तमकुलहा के मंगरू मुखिया, मोहनिया के अखौड़ी मंडल, सहतितुआहा के बालदेव प्रसाद सिंह, रामगंज के महावीर महतो सुपौल के इन्द्रानंद लाल दास, विंध्याचल तिवारी, रजनीकांत लाल, पन्नालाल पुगुलिया भी लोगों की यादों में हैं।
इनके अलावा वीरवर नारायण सिंह, अफ्फाक रहमानी, सीताराम चौधरी, हरिकांत वर्मा, राम शरण झा, मुरारी प्रसाद श्रीवास्तव, ज्योतेन्द्र लाल दास, मु. नईम, लक्ष्मी ठाकुर, अनुपलाल यादव, विनायक प्रसाद यादव एवं नारायण मंडल की कुर्बानी को आज भी नमन किया जाता है।
इसके अलावा भी कई नाम हैं जिन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में खुद को न्यौछावर कर दिया, जिन्हें आज भी लोग नमन करते हैं। उनकी याद में आंखें डबडबा जाती हैं।
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