Swatantrata Ke Sarthi: गांधी जी को रामायण सुनाते थे अररिया के अमर सेनानी, 104 साल रहे जीवित; सात बार गए जेल
अररिया जिले के फुलकाहा के रामलाल मंडल एक महान स्वतंत्रता सेनानी थे। उन्होंने अपनी मधुर आवाज से महात्मा गांधी को प्रभावित किया और अंग्रेजी हुकूमत को चुनौती दी। डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने उन्हें गांधी जी से मिलवाया जिसके बाद वे उनके प्रिय बन गए। रामलाल मंडल ने भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई और कई बार जेल गए। स्वतंत्रता के बाद भी वे समाज सेवा में लगे रहे।
अजीत कुमार, फुलकाहा (अररिया)। भारत के स्वतंत्रता संग्राम में अनगिनत वीर सपूतों ने अपने जीवन की आहुति दी और आजादी का स्वप्न साकार किया।
इनमें से कई ऐसे भी थे जिनके योगदान को राष्ट्रीय स्तर पर उतनी प्रसिद्धि नहीं मिली, लेकिन जिनका त्याग और बलिदान किसी भी दृष्टि से कम नहीं था।
अररिया जिले फुलकाहा थाना क्षेत्र अंतर्गत भोड़हर गांव के रामलाल मंडल ऐसे ही एक महान सेनानी थे, जिन्होंने अपनी आवाज से महात्मा गांधी का दिल जीता और अपने साहस से अंग्रेजी हुकूमत को चुनौती दी।
रामलाल मंडल का जन्म 1883 ई में नरपतगंज प्रखंड के नवाबगंज पंचायत के अंतर्गत भोड़हर गांव में हुआ था। बचपन से ही वे धार्मिक प्रवृत्ति के थे और रामायण पाठ में विशेष रुचि रखते थे। उनकी आवाज मधुर और लयबद्ध थी, जिससे वे श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर देते थे।
डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने गांधी जी से मिलवाया
यही गुण आगे चलकर उन्हें महात्मा गांधी और डॉ. राजेंद्र प्रसाद जैसे महान नेताओं के संपर्क में ले आया। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान डॉ राजेंद्र प्रसाद ने रामलाल मंडल को साबरमती आश्रम में महात्मा गांधी से मिलवाया। वहां उन्होंने अपनी सुरीली आवाज में रामायण का पाठ किया, जिससे गांधी जी अत्यंत प्रभावित हुए।
अमर सेनानी रामलाल मंडल।(फाइल फोटो)
गांधी जी ने उन्हें कई बार सुनने के लिए बुलाया। नोआखाली प्रवास के दौरान जब गांधी जी बीमार पड़े, तो विशेष संदेश भेजकर रामलाल मंडल को बुलवाया गया।
रामायण पाठ सुनने से गांधी जी की तबीयत में सुधार हुआ। यह घटना दोनों के बीच गहरे संबंध का प्रतीक बन गई। रामलाल मंडल का जुड़ाव केवल भक्ति और भजन तक सीमित नहीं था। वे अंग्रेजी हुकूमत के कट्टर विरोधी थे।
बैलगाड़ी से आए थे गांधी जी
फुलकाहा बाजार स्वतंत्रता संग्राम के अतीत की यादों को अपने अंदर समेटे हैं। आजादी से कई सालों पहले रामलाल मंडल की गुजारिश पर एक बार गांधी जी बैलगाड़ी पर सवार होकर अररिया के बथनाहा से फुलकाहा बाजार तक आए थे। फुलकाहा बाजार में गांधी जी ने बांस के मचान पर खड़े होकर एक यादगार भाषण भी दिया था।
पूर्णिया डिस्ट्रिक्ट गजेटियर में सन 1925 में गांधी जी द्वारा अररिया में लोगों की एक बड़ी भीड़ को संबोधन करने की बात लिखी गई है। 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन’ के दौरान उन्होंने फुलकाहा बाजार में अंग्रेजों के खिलाफ उग्र भाषण दिया। पुलिस ने सभा को घेर लिया, लेकिन वे चतुराई से बच निकलने में सफल रहे।
अपने संघर्षशील जीवन में उन्हें सात बार गिरफ्तार किया गया और लगभग 21 महीने जेल में रहना पड़ा। उन्होंने पूर्णिया जेल, पटना कैंप जेल और अन्य स्थानों पर कठिन यातनाएं सही, लेकिन कभी अपने लक्ष्य से पीछे नहीं हटे। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भी रामलाल मंडल सक्रिय रहे। वे 1947 से 1950 तक पूर्णिया जिला परिषद के उपाध्यक्ष रहे।
1960-70 के दशक में उन्होंने अररिया जिला बनाओ संघर्ष समिति में भाग लेकर क्षेत्र के विकास और प्रशासनिक पहचान के लिए महत्वपूर्ण योगदान दिया। 1972 में स्वतंत्रता की 25वीं वर्षगांठ के अवसर पर तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उन्हें 'सम्मान बिल्ला' प्रदान किया। 1987 में 104 वर्ष की आयु में उनका निधन हुआ था।
अभी तक नहीं हुई मूर्ति स्थापना
उनके स्मरण में भोड़हर गांव में ‘मंडल चौक’ की स्थापना की गई, जो आज भी उनके त्याग और बलिदान की याद दिलाता है, हालांकि मूर्ति स्थापना का कार्य अब भी अधूरा है। रामलाल मंडल का जीवन त्याग, साहस और देशभक्ति का अनुपम उदाहरण है।
उन्होंने यह साबित किया कि देश की सेवा केवल हथियार उठाकर ही नहीं, बल्कि शब्दों और प्रेरणा से भी की जा सकती है। उनकी मधुर वाणी ने महात्मा गांधी को सुकून दिया और उनके क्रांतिकारी विचारों ने अंग्रेजों के दिलों में भय उत्पन्न किया।
ऐसे वीर सपूत का नाम इतिहास में सदैव सम्मान के साथ लिया जाएगा। अभी भी स्वतंत्रता सेनानी स्वर्गीय रामलाल मंडल के परिवार तंगहाली की जिंदगी में जी रहे हैं। उनके स्वजनों को आज तक सम्मान नहीं मिला है।
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