Bihar News: 150 साल बाद आई पूर्वजों की याद, सात समंदर पार बिहार पहुंचा परिवार; खूब बजे ढोल-नगाड़े
Saran News अपनी जमीन और खून का रिश्ता क्या होता है यह वेस्टइंडीज से आई एक दंपती ने बयां किया। 150 साल बाद अपने पुरखों के गांव पहुंचने पर उनकी आंखें नम थीं और अपनी मिट्टी से जुड़ने का सुखद अहसास उनकी आंखों में दिखाई दे रहा था। गांव के लोगों ने भी वेस्टइंडीज से आए परिवार का जमकर स्वागत किया।

संजय कुमार ओझा, लहलादपुर (सारण)। पुरखों की मिट्टी से जुड़ाव सात समंदर पार वेस्टइंडीज में बसे भारतीय मूल के एक परिवार को पुरखों के पैतृक गांव खींच लाया।
वेस्टइंडीज के त्रिनिदाद एंड टोबैगो शहर में रहने वाले 40 वर्षीय फाजिल जहूर और उनकी पत्नी मेरीन द्वारका जहूर शनिवार को सारण जिले के लहलादपुर प्रखंड के छोटे से गांव लशकरीपुर पहुंचे।
डेढ़ सौ वर्ष पहले इनके पूर्वज चटंकी मियां को अंग्रेज जबरन ईख की खेतों में मजदूरी कराने के लिए वेस्टइंडीज लेकर चले गए थे। तब से वह कभी भारत नहीं आ सके। उन्होंने वहीं शादी कर ली और वहीं बस गए।
अंग्रेजों ने भले ही छटंकी मियां को अपने वतन भारत से दूर कर दिया था, लेकिन उन्होंने अपने दिल में वतनपरस्ती को जगाए रखा और अपने बेटों और पोतों और अन्य पीढ़ियों को भी भारत और अपने गांव की यादों के संबंध में बताते रहे।
उसी मिट्टी का जुड़ाव आज उनकी चौथी पीढ़ी को अपने पुरखों की मिट्टी और गांव की खुशबू की ओर खींच लाया।
परदादा सुनाते थे गांव के किस्से कहानियां
फाजिल जहूर और मेरीन द्वारका जहूर ने बताया कि गांव की गलियां, मंदिर, मस्जिद, पोखर, कुआं, खेत, पीपल और नीम का पेड़ आदि के संबंध में उनके परदादा, दादा-दादी कहानियों में बताया करते थे।
परिवार वालों से मिलते फाजील जहूर और मोरीन द्वारका।
इन कहानियों ने फाजिल जहूर को अपने जड़ों को जानने की इच्छा को और गहरा कर दिया। गांव में कदम रखते ही पति-पत्नी ने अपने पुरखों की मिट्टी को चूम लिया। सभी के लिए यह क्षण भावनात्मक था।
यह परिवार चार पीढ़ियों से वेस्टइंडीज में रह रहा है, लेकिन उनके दिल में हमेशा भारत और पुरखों के गांव लशकरीपुर से विशेष लगाव था।
गांव वालों ने किया स्वागत
पति-पत्नी जब गांव पहुंचें तो शिया वफ्फ बोर्ड के चेयरमैन सैयद अफजल अब्बास के नेतृत्व में गांव वालों ने गर्मजोशी से सभी का स्वागत किया।
हसन इमाम, सैयद मो. इमाम, समशाद अली, अफताब अली, जया अब्बास, सैयद सोहैल, कमर अब्बास आदि ने ढोल-नगाड़ों, फूल-मालाओं और पारंपरिक रीति रिवाजों के साथ सभी का स्वागत किया।
गांव वालों ने उनके स्वागत में पटाखे भी फोड़े। जिन्हें उनके दादा-दादी कभी कहानियों में सुनाया करते थे, उन्हें देखने के लिए उनके मन में उत्साह और जिज्ञासा थी। उन यादों को सामने से देखकर पति-पत्नी गदगद हो गए।
जब वे गांव की मिट्टी को छुआ तो उनके आंखों में आंसू थे। उन्होंने कहा कि हमने अपने जमीन को छू लिया, जिसपर कभी उनके पुरखे सपने देखा करते थे। वे गांव के हर गली में घूम कर अपने पुरखों की छवि देखने की कोशिश कर रहे थे।
विशेष भोज का किया गया था आयोजन
गांव में उनके स्वागत के लिए टेंट लगाए गए थे और विशेष भोज का आयोजन किया गया था। थाली में पारंपरिक भारतीय व्यंजन परोसे गए। फाजिल जहूर और मेरीन द्वारका जहूर ने कहा कि हम यहां सिर्फ पर्यटक बनकर नहीं आएं हैं।
यह हमारी आत्मा का घर है जिससे भावनात्मक जुड़ाव है। वेस्टइंडीज में रहकर भी हम भारतीय हैं। यहां आकर पुरखों की आत्मा का आशीर्वाद मिला। उन्होंने कहा कि वे आगे भी यहां आते रहेंगे और गांव के विकास के लिए बेहतर करने की योजना बनाएंगे।
पारंपरिक रीति रिवाज से की गई विदाई
अपने खून के रिश्तों से मिलकर वापस जाते समय पूरा माहौल गमजदा था। पारंपरिक रीति-रिवाजों से दंपती को विदा किया गया।
मोहल्ले की बुजुर्ग महिलाएं खैरून निशा और शमां अरा ने महिला मेरीन द्वारका जहूर को खोइचा देकर (गोदी) देकर विदा किया। जहूर ने सबको गले लगा लिया।
अपने पुरखों के मिट्टी को चुमने गांव आना बड़ी बात है। ये दो चचेरे परिवारों का ही नहीं दो संस्कृतियों का मिलन था। - सैयद अफजल अब्बास, शिया वक्फ बोर्ड के चेयरमैन
वंशावली के विशेषज्ञों ने सरकारी कागजात का अध्ययन कर परिवार को मिलवाया
चटंकी मियां 1890 में जब भारत से वेस्टइंडीज गये थे तो उनके इमिग्रेशन पास पर अपने सगे भाई हरभंगी मियां का जिक्र था।
बता दें कि वेस्टइंडीज में परिवारों की जानकारी रखने वाले अफसरों ने इस भारतीय परिवार के इमीग्रेशन से जुड़ी जानकारी नेशनल आर्काइव से निकाली थी। इसके बाद ही इस परिवार ने अपने पूर्वजों की मिट्टी तक पहुंचने का सफर शुरू किया था।
इस पास में बिहार, सारण, बनियापुर और लशकरीपुर गांव का जिक्र था। उसके बाद अयोध्या के रहने वाले परिवार वायली (वंशावली) विशेषज्ञ कृष्णा पाठक को इनके परिवार को खोजने की जिम्मेदारी दी गई।
कृष्णा पाठक ने अभिलेखागार सारण से चटंकी मियां के भाई हरभंगी मियां के कागजात को निकाला। उसके बाद प्रमाणित हुआ कि चटंकी मियां और हरभंगी मियां सगे भाई थे। दोनों भाइयों के कागजात में इनके पिता का नाम लंगट मियां दर्ज पाया गया।
उसके बाद कृष्णा पाठक ने लशकरीपुर गांव आकर भी बुजुर्गों से इस संबंध में जानकारी प्राप्त की थी। उसके बाद दो चचेरे भाइयों का मिलना संभव हुआ।
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