Strawberry Farming: स्ट्रॉबेरी की खेती कर पढ़ाई के साथ कमाई कर रहे सारण के कुणाल, लाखों में हो रहा मुनाफा
सारण जिले के सरगटी गांव के रहने वाले कुणाल पढ़ाई के साथ ही स्टॉबेरी की खेती करके लाखों रुपये का मुनाफा कमा रहे हैं। वे 10 कट्ठा में स्ट्रॉबेरी की खेती करते हैं जिसमें एक कट्ठे में लगभग 30 हजार रुपये खर्च होते हैं और 80 से 90 हजार रुपये का फायदा होता है। हर साल 3-4 महीने इसकी खेती होती है।

पवन कुमार सिंह, गड़खा(सारण)। कहते है जज्बे के आगे बड़ी से बड़ी मुश्किल बौनी साबित हो जाती है। सारण जिला अंतर्गत गड़खा प्रखंड के सरगटी गांव के युवक कुणाल कुमार सिंह ने ऐसा ही कुछ कर दिखाया है। अपने 10 कट्ठा खेत में स्ट्रॉबेरी की खेती कर छात्र कुणाल कुमार सिंह पढ़ाई के साथ कमाई भी कर रहे हैं।
टमाटर, केला को छोड़ उपजाने लगे स्ट्राबेरी
- कुणाल ने छपरा के तेलपा निवासी अपने मामा नचिकेता से स्ट्रॉबेरी की खेती करने की विधि सीखने के बाद टमाटर, केला आदि की खेती छोड़ स्ट्राबेरी की खेती शुरू की।
- कुणाल के मामा नचिकेता पहले टमाटर, केला, शिमला मिर्च सहित कई सब्जियों की खेती कर नकदी कमाते थे।
वर्ष 2016 में जब वे महाराष्ट्र के औरंगाबाद गए तो वहां उन्होने किसानों को स्ट्रॉबेरी की खेती करते देखा। खेती किसानी में अभिरूचि रखने वाले नचिकेता ने वहां के किसानों से संपर्क बढ़ाकर स्ट्रॉबेरी की खेती के बारे में जानकारी ली।
पौधे उगाते, उसकी देखभाल व पोषण करते देखा और यहां आकर उन्होंने सिर्फ 1000 पौधे लगाए। जब उन्हें मुनाफा हुआ तो उन्होंने धीरे-धीरे इस को बढ़ाया बाद। इधर उनकी नौकरी कृषि विभाग में हुई तो नचिकेता के भांजे कुणाल कुमार सिंह ने खेती करना जारी रखा।
तुरंत मिलते हैं खरीदार, खेत में ही आ जाते हैं व्यापारी
गड़खा में स्ट्रॉबेरी की खेती शुरू करने के बाद इसमें बड़ी संख्या में लोग जुड़ने लगे हैं। कई लोगों को तो गांव में ही रोजगार भी मिला है। लाल रसीली स्ट्रॉबेरी को देखकर मुंह में पानी आ जा रहा है।
लोग धीरे-धीरे इसकी खेती की तरफ अग्रसर हो रहे हैं। दरअसल, फसल तैयार होते ही इसके खरीदार मिल जा रहे हैं। खरीदने के लिए व्यापारी खेत में आ जाते हैं और कीमत भी अच्छी मिल जाती है।
विपरीत मौसम में भी हो रही खेती
कुणाल के अनुसार छपरा की जलवायु स्ट्रॉबेरी के लिए उपयुक्त नहीं मानी जाती है, लेकिन इसके बावजूद छात्र कुणाल कुमार सिंह ने वैज्ञानिक तरीके से खेती कर इसे उपयुक्त बना दिया है।
खेत में अच्छी फसल हो रही है जो बिहार के विभिन्न शहरों के मॉल में बिक्री के लिए भेजी जा रही है। कुणाल की सफलता को देख इलाके के अन्य किसान भी स्ट्रॉबेरी की खेती की तरफ बढ़ रहे हैं।
पौधे लगाने से पूर्व खास ढ़ंग से तैयारी की जाती है मिट्टी व बनती है क्यारी
- कुणाल कुमार सिंह बताते हैं कि स्ट्रॉबेरी उगाने के लिए खास ढंग से मिट्टी को तैयार करना पड़ता है। खेत की मिट्टी को बारीक करने के बाद क्यारियां बनाई जाती हैं ।
- फिर उन क्यारियों की चौड़ाई डेढ़ मीटर और लंबाई 3 मीटर के आसपास रखी जाती है, उन्हें जमीन से 15 सेंटीमीटर ऊंचा बनाया जाता है।
- इन्हीं क्यारियों पर स्ट्रॉबेरी के पौधे लगाए जाते हैं। इसके बाद काले रंग की 50 माइक्रोन मोटाई वाली पॉलिथीन से क्यारियों को ढ़क दिया जाता है।
कुणाल ने बताया कि ऐसा करने से पैदावार में बढ़ोतरी होती है और मिट्टी में ज्यादा देर तक नमी बरकरार रहती है। आमतौर पर स्ट्रॉबेरी की खेती पहाड़ी इलाकों में की जाती है, क्योंकि इसके उत्पादन के लिए ठंडे मौसम की आवश्यकता होती है।
इसका पौधा कुछ ही महीनों में फल देने लायक हो जाता है। पौधे महाराष्ट्र के पुणे से मंगवाते हैं। बताया कि स्ट्रॉबेरी दिल के मरीजों और कैंसर जैसी जानलेवा बीमारियों से जूझ रहे लोगों के लिए काफी फायदेमंद होती है।
इग्नू से बीकॉम कर रहे हैं कुणाल
पढ़ाई के साथ खेती से कमाई करने वाले सरगटी गांव निवासी मृत्युंजय कुमार सिंह व रीता देवी के पुत्र कुणाल कुमार सिंह इग्नू से बीकॉम कर रहे हैं। परिवार खेती बाड़ी पर निर्भर है। इसलिए वे भी बचपन से ही खेती की ओर बढ़ गए।
मामा का साथ मिला तो मुनाफा कमाने वाली खेती के बारे सीखा। स्ट्रॉबेरी का पौधा ट्रेन से महाराष्ट्र के पुणे से लाया जाता है। स्ट्रॉबेरी की खेती के लिए ठंडा मौसम होना चाहिए, इसलिए प्रति वर्ष अक्टूबर मे पौधा लगाया जाता है।
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