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    Bihar Election: नोखा विधानसभा का अनोखा इतिहास, यहां से हारने वाला फिर कहीं भी नहीं जीत पाता चुनाव

    Updated: Tue, 23 Sep 2025 04:05 PM (IST)

    रोहतास के नोखा विधानसभा क्षेत्र का चुनावी इतिहास अनूठा है। यहाँ एक बार नकारे गए नेता को कहीं और सफलता नहीं मिलती। जीतने वाला लगातार जीतता है हारने वाला कहीं और से नहीं जीत पाता। कई नेताओं ने सासाराम डेहरी और नबीनगर में भी किस्मत आजमाई पर सफलता नहीं मिली। 2020 में रामेश्वर प्रसाद चौरसिया को टिकट न मिलने पर भी उन्हें सफलता नहीं मिली।

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    नोखा विधानसभा का अनोखा इतिहास। फाइल फोटो

    उदय पांडेय, राजपुर (रोहतास)। इतिहास गवाह है नोखा विधानसभा चुनाव में जिन नेताओं को जनता ने नकार दिया तो फिर उन्हें कहीं की जनता अर्थात वोटरों ने नहीं अपनाया।

    इस विधानसभा का अभिशाप कहे या वरदान यहां से जो भी चुनाव लड़ा जीत गया तो जीतता ही रहा, लेकिन किन्हीं कारणों से हार गए गए तो फिर वह कहीं से भी चुनाव लड़े, लेकिन नहीं जीत पाए।

    1952 से आज तक का नोखा विधानसभा का यही इतिहास रहा है। इस विधानसभा से मात खाए उम्मीदवार अपनी जीत को ले नोखा के अतिरिक्त सासाराम, डेहरी तथा चितौड़ कहे जाने वाले नबीनगर विधानसभा से भी चुनाव लड़ अपना भाग्य आजमाया, लेकिन उन्हें कहीं से भी सफलता हाथ नहीं लगी।

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    जनता को अपने तरफ आकर्षित करने में नाकाम होते देख एक माननीय ने उच्च सदन में पहुंच अपनी दबदबा बनाए रखना ही मुनासिब समझा। 1952 में नोखा विधानसभा के पहले चुनाव में रघुनाथ सिंह चुनाव जीते, लेकिन 1957 में जगदीश ओझा ने पराजित कर अपना विधानसभा के सीट पर कब्जा जमा लिया, परंतु 1962 में गुठली सिंह ने उन्हें पराजित कर दिया।

    इसके बाद वह लगातार दो बार चुनाव जीते, लेकिन 1967 में जनता पार्टी के टिकट पर चुनाव लडे नोखा के जगदीश ओझा ने कांग्रेस उम्मीदवार गुठली सिंह को मात दे अपनी सत्ता क़ायम किया।

    जनता पार्टी से पाला बदल जगदीश ओझा कांग्रेस के टिकट पर 1972 में चुनाव लडे व जीत दर्ज किया, परंतु 1977 में जनता पार्टी सेकुलर से चुनाव लड़े गोपाल नारायण सिंह ने पराजित किया।

    उसके बाद ओझा सासाराम विधानसभा से चुनाव लड़े, लेकिन जनता ने नकार दिया। उसके बाद चुनाव नहीं जीते।1982 में जनता पार्टी के प्रत्याशी बने जंगी चौधरी ने गोपाल नारायण सिंह को पराजित कर दिया।

    चुनाव हारने के बाद गोपाल नारायण सिंह ने भाजपा से डिहरी, चितौड़ कहे जाने वाले नबीनगर विधानसभा से भी चुनाव लडे, लेकिन सफलता हाथ नहीं लगी। अंत में अपनी दबदबा बनाए रखने को ले उन्होंने उच्च सदन राज्यसभा ही जाना मुनासिब समझा।

    अगली बार सुमित्रा देवी ने कांग्रेस से चुनाव लड़ जंगी चौधरी को 1985 में पटखनी दे दी। 1990 में जनता दल से पुनः जंगी चौधरी सुमित्रा देवी को पराजित कर कामयाब हो गए।

    उनकी मृत्यु के बाद उनके पुत्र आनंद मोहन 1995 मे जनता दल से चुनाव जीते, लेकिन 2000 में भाजपा के रामेश्वर प्रसाद चौरसिया ने आनंद मोहन को पराजित कर भगवा लहराया तथा फिर लगातार चार बार अर्थात 2010 तक अपना दबदबा बनाए रखा।

    2015 में जनता दल से चौधरी परिवार की बहू अनिता चौधरी ने रामेश्वर को पराजित कर लालटेन जला दिया, जो आज तक जल रहा है। 2020 के चुनाव में रामेश्वर को भाजपा से टिकट न मिलने पर उन्होंने दल बदल कर लोजपा से सासाराम विधानसभा से चुनाव लड़े, लेकिन वहां भी सफलता हाथ नहीं लगी।

    हालांकि उन्होंने उस चुनाव में 20 हजार से भी अधिक मत पाकर अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज की थी। लोग कहते हैं कि नोखा विधानसभा से जो हारा, उसे किसी दूसरे जगह से सफलता नहीं मिली। मिली भी तो वापस नोखा से ही।

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