5 Burnt Alive: पांच जिंदा लोगों की चिता ने दिखाया शहर के बगल का 'अंधेरा', अब कौंध रहे कई सवाल
Purnia News पूर्णिया जिले के टेटगामा गांव में अंधविश्वास का एक खौफनाक मामला सामने आया है जहां पांच लोगों को जिंदा जला दिया गया। यह घटना रजीगंज पंचायत के वार्ड नंबर 6 में घटी जहां आदिवासी समुदाय के 40-50 परिवार रहते हैं। यहां अशिक्षा और जागरूकता की कमी के कारण लोग झाड़-फूंक और पंचायत के फैसलों पर अधिक विश्वास करते हैं।

प्रकाश वत्स, पूर्णिया। पूर्णिया-कटिहार फोरलेन सड़क की चमक लोगों को यह एहसास कराने के लिए काफी है कि यह जिला विकास की तेज उड़ान भर चुका है। हवाई उड़ान भी यहां से बस शुरू ही होने वाली है।
इस पथ पर शहर से तकरीबन आठ किलोमीटर पर रानीपतरा बाजार है और इस बाजार से बमुश्किल दो से ढाई किलोमीटर की दूरी पर पूर्णिया पूर्व प्रखंड का टेटगामा गांव मौजूद है।
दूरी के लिहाज से इसे जिला मुख्यालय के बाजू में बसा गांव ही माना जा सकता है। पांच जिंदा लोगों की गांव में सजी चिता ने शहर के बाजू में अंधविश्वास के अंधेरे को उजागर कर दिया है। इस घटना के बाद एक साथ कई सवाल यहां कौंध रहे हैं, जिसका जबाब किसी के पास नहीं है।
रजीगंज पंचायत का वार्ड नंबर 6
यह रजीगंज पंचायत का वार्ड नंबर छह है। यहां के वार्ड सदस्य अखिलेश्वर महलदार को भी इतनी बड़ी घटना की भनक सोमवार की सुबह लगी। इस वार्ड के तीन टोलों में 40 से 50 आदिवासी परिवार रह रहे हैं।
इन परिवारों के पास कुछ खेती भी है और वे मजदूरी भी करते हैं। कुछ लोग खुद का रोजगार भी करते हैं। इन टोलों से कई पक्के के मकान भी हैं। इन टोलों से आधा किलोमीटर की दूरी पर स्कूल भी है, लेकिन यहां के बहुत कम बच्चे स्कूल जाते हैं।
ज्ञान की रोशनी के अभाव में अंधविश्वास का अंधेरा यहां काफी गहरा है। जिस पेटगामा आदिवासी टोला में यह घटना घटी है, उसके ठीक सामने मनरेगा भवन भी बना हुआ है।
यहां बच्चे भी नशे के शिकार
गांववासी सह इस घटना के शिकार बाबूलाल उरांव के भाई जितेंद्र उरांव ने बताया कि यहां बच्चों को पढ़ाने के प्रति लोग सजग नहीं हैं। उन्होंने अपने दो बेटों को पढ़ाने के लिए अपने ससुराल में रखा है।
यहां कम उम्र के बच्चे भी नशे आदि के शिकार हो जाते हैं। यहां के लोग बीमार स्वजन का इलाज कराने से ज्यादा झाड़ फूंक में विश्वास करते हैं। पंचायत के फैसला अब भी सर्वमान्य है।
समाज से बाहर करने की धमकी
पंचायत से बाहर जाने वाले को समाज से बहिष्कृत करने व गांव से भगा देने की धमकी तक दी जाती है। उनके भाई व परिवार के अन्य भाईयों को भी जिंदा जलाने के पीछे यही अंधविश्वास रहा है।
वे लोग भीड़ से अपने भाई, मां व अन्य स्वजन के जान की भीख मांगते रह गए, लेकिन किसी ने एक बार भी नहीं सुना। उल्टे उन लोगों को भी जिंदा जलाकर मार देने की धमकी दी गई।
अब धूल उड़ा रहीं गाड़ियां
घटना के बाद जरूर वहां प्रशासनिक अधिकारियों की गाड़ी लगातार धूल उड़ा रही है, लेकिन गांव में अंधविश्वास व निरक्षता को लेकर पहले कभी किसी ने झांकने की जरूरत तक नहीं समझी।
आंगनबाड़ी केंद्र तक भी यहां के बच्चे नहीं पहुंच रहे हैं और इसकी सुधि कभी नहीं ली गई। बाबूलाल उरांव के भाईयों की मानें तो कभी शिक्षा या फिर अन्य मामलों को लेकर कोई जागरुकता कार्यक्रम गांव में नहीं हुआ है।
भाईयों पर बनाया जा रहा था शवों के दाह संस्कार का दबाव
घटना में मृत बाबूलाल उरांव के शेष चार भाईयों व उनके परिवार के अन्य लोगों ने बताया कि जब क्रूर भीड़ ने उनकी मां कातो देवी, भाई बाबूलाल उरांव व उनकी पत्नी के साथ बहू व बेटा को जिंदा जला दिया तो वे लोग हम लोगों पर शवों के दाह संस्कार का दबाव बनाने लगे।
उन लोगों को ट्रैक्टर-ट्राली पर शवों को चढ़ाने के लिए कहा गया, लेकिन उन्होंने ऐसा करने से मना कर दिया। बाद में भीड़ ने ही शवों को ठिकाने लगा दिया।
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