Bihar Politics: छोटी-छोटी कड़ियों को जोड़ने में जुटा राजद, 2025 के चुनाव को लेकर ऐसी है पार्टी की रणनीति
Bihar Politics बिहार की राजनीति में कम जनसंख्या वाली जातियों को साधने का उपक्रम चल रहा है। लोकसभा चुनाव के दौरान शुरू हुआ यह उपक्रम विधानसभा चुनाव के ...और पढ़ें

जागरण संवाददाता, पटना। पिछड़ा व अति-पिछड़ा वर्ग पर केंद्रित हो चुकी बिहार की राजनीति मेंं इन दिनों कम जनसंख्या वाली जातियों को साधने का उपक्रम चल रहा है।
लोकसभा चुनाव के दौरान शुरू हुआ यह उपक्रम विधानसभा चुनाव के दृष्टिगत रैलियों-सभाओं के माध्यम से आगे बढ़ रहा। ऐसी ही एक रैली (तेली हुंकार रैली) रविवार को राजद विधायक रणविजय साहू के नेतृत्व में हुई।
यहां हुआ राजद को नुकासन
- तैलिक समाज के बीच कभी राजद की गहरी पैठ हुआ करती थी। बाद में यह समाज बहुलता में भाजपा का पक्षधर हो गया।
- ऐसी ही कई दूसरी जातियां भी हैं, जिनकी प्रतिबद्धता स्थायी रूप से किसी एक दल के साथ नहीं रही है। समय और संयोग के आधार पर इनका रुख बदलता रहा है, लेकिन जीत-हार में भूमिका निर्णायक होती है।
अब इनको जोड़ने की तैयारी
कभी माय (मुसलमान-यादव) समीकरण के साथ जुड़कर ये जातियां राजद को दमदार बनाए हुए थीं। इनके बिदकने-बिखरने से उसका वर्चस्व कमजोर पड़ गया। अब एक बार फिर इन्हें जोड़ने की पहल हो रही।
बिहार में कुछ जातियों की दलीय प्रतिबद्धता है तो कई तटस्थ हैं। चुनावी काल में इन तटस्थ जातियों को जोड़ने-तोड़ने के उपक्रम का बढ़ जाना स्वाभाविक है।
लोकसभा चुनाव मेंं राजद को मिली सफलता में यह प्रयोग महत्वपूर्ण कारक रहा है। पिछड़ा वर्ग में सम्मिलित कुशवाहा समाज उसके लिए प्रतिबद्ध नहीं माना जाता, लेकिन टिकट के बंटवारे में महत्व मिला।
बदले में राजद को एक सीट मिल गई। उसके चार सांसदों मेंं से एक अभय कुशवाहा इसी समाज से हैं। राजद ने इस उपकार का बदला लोकसभा में अभय को पार्टी का नेता बनाकर चुकाया और अंदरखाने तय किया कि विधानसभा चुनाव में यह क्रम आगे बढ़ेगा।
सरकार की गणना के अनुसार, बिहार में अति-पिछड़ा वर्ग की जनसंख्या 36 प्रतिशत है। इसमें तैलिक समाज की हिस्सेदारी सर्वाधिक (2.81 प्रतिशत) है।
रविवार की रैली वस्तुत: समाज की थी, इसीलिए दलीय बाध्यता को दरकिनार कर जुटान हुआ। इसके बावजूद मुख्य वक्ता विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव रहे, जो पूरे भाषण के दौरान एक-दूसरे (राजद और तैलिक समाज) के सहयोग से आगे बढ़ने का आह्वान करते रहे।
पांच-छह प्रतिशत अतिरिक्त मत जुटाने के फिराक में राजद
पुराने दिनों के साथ-संबंध की दुहाई देते हुए कुछ ऐसा ही आह्वान उन्होंने जननायक कर्पूरी ठाकुर की जयंती समारोह मेंं भी किया था। जननायक इसी समाज के प्रतिनिधि चेहरा थे।
जनसंख्या में डेढ़ प्रतिशत से कुछ अधिक की हिस्सेदारी वाला नाई समाज उस पचपनिया का अंश है, जो मिथिलांचल और पूर्वी भाग में विधानसभा की तीन दर्जन से अधिक सीटों के समीकरण को प्रभावित करता है।
इस बार राजद की मंशा पिछले चुनाव की तुलना में पांच-छह प्रतिशत अतिरिक्त मत जुटाने का है, ताकि तटस्थ मतदाताओं के रुख से प्रभावित होने वाली सीटों पर जीत की संभावना प्रबल हो।
2020 में महागठबंधन को राजग के बराबर ही वोट मिले थे, लेकिन सीटों में 15 का अंतर हो गया। 37.26 प्रतिशत वोट के बूते राजग 125 सीटें पा गया, जबकि 37.23 प्रतिशत वोट और 110 सीटें लेकर महागठबंधन सत्ता से दूर रह गया।
आगे अतिरिक्त मतों को जोड़कर सत्ता से इस दूरी को पाटा जा सकता है। बड़ी जनसंख्या वाली जातियों की राजनीतिक प्रतिबद्धताएं हैं, लिहाजा संभावना छोटे समूहों के बीच ही बची है।
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