Bihar Politics: क्या अब लालू यादव होंगे महागठबंधन के बॉस? दिल्ली चुनाव के बाद सामने आया नया समीकरण
दिल्ली विधानसभा चुनाव में एनडीए गठबंधन को भारी जीत मिली है। इस चुनाव में सबसे ज्यादा नुकसान कांग्रेस को हुआ है। कांग्रेस को इस चुनाव में एक भी सीट नहीं मिली। दिल्ली चुनाव परिणाम की गूंज बिहार तक गई है। दिल्ली चुनाव के परिणाम के बाद बिहार में महागठबंधन सचेत हो गया है। यह तो तय है कि बिहार में लालू यादव अब महागठबंधन के बॉस होंगे।

विकाश चन्द्र पाण्डेय, जागरण संवाददाता, पटना। दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 का आज परिणाम सामने आया है। दिल्ली विधानसभा चुनाव में एनडीए को प्रचंड बहुमत मिला है।
इस चुनाव में सत्ताधारी पार्टी आम आदमी पार्टी को मुंह की खानी पड़ी है और दिल्ली चुनाव में उन्हें 22 सीटें मिली हैं। इस चुनाव में कांग्रेस का खाता भी नहीं खुला है। दिल्ली चुनाव के परिणाम की गूंज बिहार तक जा रही है। क्योंकि आने वाले समय में बिहार में विधानसभा चुनाव है।
बंद होगा लुकाछिपी का खेल
दिल्ली विधानसभा चुनाव का परिणाम महागठबंध को भी सचेत कर रहा है। अगर आईएनडीआईए एकजुट होकर चुनाव लड़ता तो नतीजे कुछ और आते। अपनी महत्ता के लिए महागठबंधन में इन दिनों लुकाछिपी का खेल चल रहा था। दिल्ली विधानसभा के चुनाव परिणाम के बाद अब उस पर विराम की संभावना जताई जा रही।
हालांकि, घटक दलों के भीतर नेतृत्व को उकसाने वाले तत्वों की बहुलता से निश्चिंत भी नहीं हुआ जा सकता। पिछले चुनावों में भी ऐसे तत्वों की अति-सक्रियता से संभावनाएं प्रभावित होती रही हैं।
इसके बावजूद दिल्ली का परिणाम राजद को अपने प्रभुत्व के लिए अपेक्षाकृत अधिक आश्वस्त करने वाला है, क्योंकि वह कांग्रेस की बढ़ती सक्रियता से कुछ असहज महसूस कर रही थी।
दिल्ली चुनाव परिणाम से कांग्रेस को नुकसान
पहले से ही दबाव बनाए रखने की रणनीति के तहत कांग्रेस ने बिहार में विधानसभा की कम से कम 90 सीटों की दावेदारी कर दी थी। लेकिन दिल्ली चुनाव का परिणाम उन्हें एक बार फिर अपने गिरेबान में झांकने के लिए प्रेरित कर रहा है।
राजद ने पुराने प्रदर्शन और जीत की संभावना के आधार पर सीट समझौते की बात दोहराई थी। राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद ने तो मृतप्राय हो चुके आईएनडीआईए का नेतृत्व ममता बनर्जी को सौंप दिए जाने की राय तक दे दी।
उसके बाद कांग्रेस के भीतर से तीखे स्वर निकले। पार्टी के आलाकमान ने कहा कि कांग्रेस को कम आंकने का प्रयास धृष्टतापूर्ण होगा। तिलमिलाए राजद ने अपनी राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक उसी रोज आहूत की, जिस दिन राहुल गांधी पटना में संविधान सुरक्षा सम्मेलन में सहभागिता के लिए आए थे।
वह तारीख 18 जनवरी थी। महागठबंधन के दो बड़े घटक दलों के इस लुकाछिपी से यह संदेश गया कि महागठबंधन में सब कुछ ठीक नहीं है।
संभवत: इसी आभास के कारण लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी लालू यादव से मिलने उनके आवास तक पहुंचे। मीडिया में संबंधों को सामान्य दिखाने की जुगत में वह लालू यादव की गायों को काफी देर तक पुचकारते रहे।
हालांकि, जगलाल चौधरी जयंती समारोह के बहाने 18 दिनों के भीतर राहुल का बिहार में दोबारा आमगन हुआ।
पहले भी जब दूसरे-तीसरे पायदान के नेताओं ने असहज स्थिति बनाई तो मध्यस्थता के लिए लालू-तेजस्वी और सोनिया-राहुल को ही आगे आना पड़ा था। इस बार तो राजद का एक वर्ग चाहता था कि दिल्ली में दांव आजमाया जाए।
लालू यादव बनेंगे बॉस
हालांकि, उसे कांग्रेस की जमीन बताकर राजद के शीर्ष नेतृत्व ने दावेदारी नहीं की। इसके बावजूद अगर दिल्ली में कांग्रेस बुरी तरह पराजित हुई है तो यह रणनीति पर पुनर्विचार का संदेश है।
कांग्रेस के पूर्व विधायक हरखू झा तो केंद्रीय नेतृत्व से इस परिणाम की समग्रता में विवेचना का आग्रह कर रहे हैं।
बिहार में तो लगभग चार दशक पहले से ही कांग्रेस अपना जनाधार गंवा चुकी है। प्रतिबद्ध मतदाताओं के एक वर्ग के कारण अकेले लड़कर भी वह लगभग आठ-नौ प्रतिशत मत तो पा जाती है, लेकिन सीटें महागठबंधन के बूते ही मिलती रही हैं।
अपवाद की चर्चा इसलिए भी बेमानी है, क्योंंकि इस बार तो दिल्ली में उसने पूर्वांचल मामलों के विभाग के गठन तक का वादा किया था। यूपी-बिहार के लोगों को लुभाने का वह उपक्रम नहीं चला।
इसीलिए तो राजद के प्रदेश प्रवक्ता चित्तरंजन गगन बिहार में ठोस मुद्दों और जमीनी रणनीति की बात कर रहे हैं। अब राजद आश्वस्त है कि बिहार में मुद्दे भी वही तय करेगा और चुनावी रणनीति भी उसे ही बनानी है। सीटों का बंटवारा इस चुनावी रणनीति का ही एक अंश है।
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