रामविलास पासवान: गठबंधन की सियासत के महारथी, सरकार किसी की हो हमेशा रहे मंत्री
केंद्र में सरकार किसी की भी रही हो रामविलास पासवान मंत्री जरूर रहे। गठबंधन की सियासत के इस महारथी को हवा का रूख भांपने में महारथ हासिल है। उनकी सियासत ...और पढ़ें

पटना [अमित आलोक]। देश में गठबंधन की सियासत के महारथियों की चर्चा हो तो उसमें बिहार के राम विलास पासवान (Ram Vilas Paswan) का नाम अग्रिम पंक्ति में लिया जाता है। तीन दशक में जिन कुछ क्षेत्रीय दलों के महारथियों ने सत्ता के सबसे निपुण दांव चले, उनमें लोक जनशक्ति पार्टी (LJP) सुप्रीमो रामविलास पासवान शामिल रहे हैं। सरकार कोई भी हो, राम विलास पासवान मंत्री जरूर रहे। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) की वर्तमान सरकार में कैबिनेट मंत्री पासवान गुरुवार को फिर एनडीए की नई सरकार में शामिल हो गए। उन्होंने मंत्री पद की शपथ ली। राष्ट्रपति रामनाथ काेविंद ने पद व गोपनीयता की शपथ दिलाई। रामविलास पासवान बिहार से राज्यसभा भी जाएंगे।
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लोकसभा चुनाव में रामविलास पासवान की पार्टी (एलजेपी) ने छह सीटों पर चुनाव लड़ा था। उसने सभी सीटों पर जीत दर्ज की थी। इसके बाद एलजेपी अध्यक्ष राम विलास पासवान ने कहा था कि उनकी पार्टी चिराग पासवान को मंत्री बनाना चाहती है, लेकिन अंतिम रूप से रामविलास पासवान के नाम पर ही मुहर लगी।
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राजनीति की दशा-दिशा भांपने में सानी नहीं
जो भी हो, राजनीति की करवट की दशा-दिशा का अनुमान लगाने में पासवान की सानी नहीं है। विरोधी इसके लिए उनपर 'सियासी मौसम वैज्ञानिक' होने तंज भी कसते रहे हैं। दरअसल,यही उनकी काबिलियत भी है। सियासी हवा किस ओर चल रही है, इसे भांपकर फैसले लेने के कारण ही उनकी पार्टी (एलजेपी) साल 2000 में गठन के बाद के करीब दो दशक के दौरान अधिकांश समय केंद्र की सत्ता में रही है। सरकार चाहे एनडीए की रही हो या संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (UPA) की, पासवान हमेशा सत्ता में रहे हैं।
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सत्ता के साथ ही शुरू हुआ लोजपा का सियासी सफर
रामविलास पासवान ने साल 2000 में जनता दल यूनाइटेड (JDU) से अलग होकर एलजेपी बनाई। उनका सियासी आधार बना सामाजिक न्याय। रामविलास ने जब लोजपा बनाई तो इसका सियासी सफर भी सत्ता के साथ ही शुरू हुआ। यह पासवान का राजनीतिक कौशल ही था कि उन्होंने जेडीयू से अलग होकर पार्टी बनाई और जेडीयू के साथ एनडीए में भी शामिल रहे तथा मंत्री भी बने।
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2004 में बने मनमाेहन सिंह की सरकार में मंत्री
हालांकि, पासवान ने 2002 के गुजरात दंगों के मसले पर एनडीए से नाता तोड़ लिया। सही वक्त पर सही दांव का परिणाम उनके पक्ष में गया। 2004 के लोकसभा चुनाव के पहले उन्होंने तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की पहल पर एनडीए विरोध का मोर्चा संभाल लिया। आगे रामविलास पासवान 2004 में यूपीए में शामिल होकर केंद्र की मनमोहन सिंह सरकार में मंत्री बने।
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2010 में लालू प्रसाद ने पहुंचाया था राज्यसभा
आगे 2009 में पासवान को कांग्रेस से किनारा करना महंगा पड़ा। यह उनके सियासी करियर का मुश्किल दौर था। इस दौर में एलजेपी का तो सफाया हुआ ही, रामविलास पासवान भी अपने सियासी गढ़ हाजीपुर में चुनाव हार गए, लेकिन यह दौर लंबा नहीं चला। एक साल के अंदर ही 2010 में पासवान राज्यसभा पहुंच गए। लालू प्रसाद यादव ने 2010 में उन्हें राज्यसभा में पहुंचाया।
2014 में थामा एनडीए का दामन, फिर बने मंत्री
आगे 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले एनडीए व यूपीए, दोनों के दरवाजे पासवान के लिए खुले थे। वक्त की नजाकत भांप पासवान ने एनडीए का रूख किया। चुनाव में एनडीए की जीत के बाद वे मंत्री बने। आगे 2019 के लोकसभा चुनाव में भी वे एनडीए के साथ रहे। परिणाम एक बार फिर सामने है।
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लोकसभा चुनाव में रामविलास पासवान की पार्टी (एलजेपी) ने छह सीटों पर चुनाव लड़ा था। उसने सभी सीटों पर जीत दर्ज की थी। इसके बाद एलजेपी अध्यक्ष राम विलास पासवान ने कहा था कि उनकी पार्टी चिराग पासवान को मंत्री बनाना चाहती है, लेकिन अंतिम रूप से रामविलास पासवान के नाम पर ही मुहर लगी।
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राजनीति की दशा-दिशा भांपने में सानी नहीं
जो भी हो, राजनीति की करवट की दशा-दिशा का अनुमान लगाने में पासवान की सानी नहीं है। विरोधी इसके लिए उनपर 'सियासी मौसम वैज्ञानिक' होने तंज भी कसते रहे हैं। दरअसल,यही उनकी काबिलियत भी है। सियासी हवा किस ओर चल रही है, इसे भांपकर फैसले लेने के कारण ही उनकी पार्टी (एलजेपी) साल 2000 में गठन के बाद के करीब दो दशक के दौरान अधिकांश समय केंद्र की सत्ता में रही है। सरकार चाहे एनडीए की रही हो या संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (UPA) की, पासवान हमेशा सत्ता में रहे हैं।
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सत्ता के साथ ही शुरू हुआ लोजपा का सियासी सफर
रामविलास पासवान ने साल 2000 में जनता दल यूनाइटेड (JDU) से अलग होकर एलजेपी बनाई। उनका सियासी आधार बना सामाजिक न्याय। रामविलास ने जब लोजपा बनाई तो इसका सियासी सफर भी सत्ता के साथ ही शुरू हुआ। यह पासवान का राजनीतिक कौशल ही था कि उन्होंने जेडीयू से अलग होकर पार्टी बनाई और जेडीयू के साथ एनडीए में भी शामिल रहे तथा मंत्री भी बने।
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2004 में बने मनमाेहन सिंह की सरकार में मंत्री
हालांकि, पासवान ने 2002 के गुजरात दंगों के मसले पर एनडीए से नाता तोड़ लिया। सही वक्त पर सही दांव का परिणाम उनके पक्ष में गया। 2004 के लोकसभा चुनाव के पहले उन्होंने तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की पहल पर एनडीए विरोध का मोर्चा संभाल लिया। आगे रामविलास पासवान 2004 में यूपीए में शामिल होकर केंद्र की मनमोहन सिंह सरकार में मंत्री बने।
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2010 में लालू प्रसाद ने पहुंचाया था राज्यसभा
आगे 2009 में पासवान को कांग्रेस से किनारा करना महंगा पड़ा। यह उनके सियासी करियर का मुश्किल दौर था। इस दौर में एलजेपी का तो सफाया हुआ ही, रामविलास पासवान भी अपने सियासी गढ़ हाजीपुर में चुनाव हार गए, लेकिन यह दौर लंबा नहीं चला। एक साल के अंदर ही 2010 में पासवान राज्यसभा पहुंच गए। लालू प्रसाद यादव ने 2010 में उन्हें राज्यसभा में पहुंचाया।
2014 में थामा एनडीए का दामन, फिर बने मंत्री
आगे 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले एनडीए व यूपीए, दोनों के दरवाजे पासवान के लिए खुले थे। वक्त की नजाकत भांप पासवान ने एनडीए का रूख किया। चुनाव में एनडीए की जीत के बाद वे मंत्री बने। आगे 2019 के लोकसभा चुनाव में भी वे एनडीए के साथ रहे। परिणाम एक बार फिर सामने है।

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