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    अश्विनी चौबे मोदी कैबिनेट में फिर हुए शामिल, जानें इनके सियासी सफर को

    By Rajesh ThakurEdited By:
    Updated: Fri, 31 May 2019 09:59 AM (IST)

    कांग्रेस सरकार में केके तिवारी के बाद अश्विनी कुमार चौबे बक्सर से ऐसे दूसरे सांसद हैं जो केंद्र में मंत्री बने। इन्‍होंने छात्रसंघ से अपनी राजनीति शुर ...और पढ़ें

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    अश्विनी चौबे मोदी कैबिनेट में फिर हुए शामिल, जानें इनके सियासी सफर को

    बक्सर [जेएनएन]। कांग्रेस सरकार में केके तिवारी के बाद अश्विनी कुमार चौबे बक्सर से ऐसे दूसरे सांसद हैं, जो केंद्र में दोबारा मंत्री बने। चौब मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में मंत्री रहे हैं। उनहें स्‍वास्‍थ्‍य राज्‍य मंत्री की जिम्‍मेवारी दी गई थी। इस चुनाव में लगातार दूसरी बार बक्सर लोकसभा क्षेत्र से सांसद चुने गए चौबे पांच बार भागलपुर का विधानसभा में प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। इन्होंने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत पटना विश्वविद्यालय के छात्रसंघ से की और 1978 में छात्रसंघ के अध्यक्ष चुने गए। उन्होंने प्रतिष्ठित पटना साइंस कॉलेज से जूलॉजी में स्नातक किया है।   

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    दो जनवरी 1953 को भागलपुर के दरियापुर में जन्मे चौबे ने अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के सक्रिय सदस्य के रूप में कई छात्र आंदोलनों में हिस्सा लिया। जेपी आंदोलन के दौरान चर्चित फुलवारी जेल ब्रेककांड में चौबे आरोपी बनाए गए और उस दौरान आंदोलन के दमन के लिए बने मीसा कानून के तहत कई महीने जेल में रहे। वे 1995 में पहली बार ये भागलपुर से विधायक चुने गए और 2014 तक लगातार हर चुनाव में विजयी रहे। 2014 के लोकसभा चुनाव में पार्टी ने ब्राह्मण का बड़ा चेहरा के रूप में उन्हें बक्सर से उम्मीदवार बनाया और रिकॉर्ड वोट से चुनाव जीते। वे बेबाक बोल के कारण फायरब्रांड नेता माने जाते हैं।

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    क्लासिकल म्यूजिक व कत्थक को पसंद करने वाले चौबे केदारनाथ त्रासदी को अपने जीवन का सबसे बुरा पल मानते हैं। 2015 में केदारनाथ में बारिश व भूस्खलन के समय वे मंदिर में ही अपने परिवार के साथ थे और चौदह घंटे जिंदगी और मौत के बीच संघर्ष करते रहे। इस हादसे में उन्होंने अपने एक करीबी रिश्तेदार को भी खोया। बाद में उन्होंने केदारनाथ त्रासदी पर एक किताब लिखी, जो काफी चर्चा में रही।

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    2014 में सांसद चुने जाने के बाद तीन सितंबर 2017 को केंद्रीय परिवार कल्याण एवं स्वास्थ्य राज्यमंत्री बनने से पूर्व लोकसभा सदस्य के रूप में भी ये बहुत सक्रिय रहे। संसद में बातौर सांसद 93 प्रतिशत इनकी उपस्थिति रही और भोजपुरी को आठवीं अनुसूची में शामिल करने समेत चार प्राइवेट बिल का प्रस्ताव दिया। संसद में इन्होंने 181 बहस में हिस्सा लिया और 151 सवाल सरकार से पूछे। 

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