Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    80 दौरे और रोड शो.. PM का 'बिहारीपन' बन रहा चुनौती, मोदी मैजिक से लगेगी NDA की नैया पार?

    Updated: Wed, 17 Sep 2025 01:06 PM (IST)

    प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बिहार दौरों में स्थानीय भाषाओं का प्रयोग कर लोगों से जुड़ाव बनाते हैं। वे मिथिला में मैथिली भोजपुर में भोजपुरी मगध में मगही और अंग क्षेत्र में अंगिका में संवाद करते हैं। उनके भाषणों में स्थानीय संस्कृति और विरासत का सम्मान झलकता है। चुनावी मौसम में मोदी का यह अंदाज उन्हें खास बनाता है।

    Hero Image
    संस्कृति से सरोकार और मोदी का बिहारीपन चुनावी मौसम में बन रहा चुनौती

    जयशंकर बिहारी, पटना। मिथिला में मैथिली, भोजपुर में भोजपुरी, मगध में मगही तो अंग क्षेत्र में अंगिका। स्थानीय भाषा-बोली में लोगों को इसकी अनुभूति कराना कि वे भी उसी क्षेत्र के हैं।

    पूर्णिया में 15 सितंबर को एयरपोर्ट के उद्घाटन के अवसर पर लोगों से मैथिली में संवाद करते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पुनः: उसी अंदाज में दिखे।

    बिहार दौरे के निहितार्थ

    बिहार विधानसभा चुनाव की अधिसूचना में गिने-चुने दिन रह गए हैं। मोदी के लगातार बिहार दौरे के निहितार्थ भी हैं और उसका प्रभाव भी।

    एक ओर विकास की नई-नई राह दिखाने का प्रयास तो दूसरी ओर आम जन से स्वयं का सीधा जुड़ाव। भाषण में स्थानीयता का पुट, सांस्कृतिक विरासत और विभूतियों के प्रति आदर और उन्हें नमन करते समय आम जन की तालियों की गड़गड़ाहट।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    बिहार के 80 दौरे कर चुके प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

    2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद से बिहार में उनके 80 से कुछ अधिक ही दौरों ने लोगों से जुड़ाव को बल दिया है। यह सभाओं में भी दिखता है। 22 अगस्त को गया जी की सभा में उन्होंने मगही में अभिवादन किया।

    लोगों को संबोधित करते हुए कहा, 'विश्वविख्यात, ज्ञान और मोक्ष के पवित्र नगरी गयाजी के हम प्रणाम करअ ही।' जब 15 सितंबर को पूर्णिया पहुंचे तो 'प्रणाम करै छी, पूर्णिया माई पूरण देवी, भक्त प्रह्लाद और महर्षि मेंही बाबा के भूमि छई।

    ई धरती पर फणीश्वरनाथ रेणु आरो सतीनाथ भादुड़ी जेहन उपन्यासकार पैदा लेलकई, विनोबा भावे के जैइसन समर्पित कर्मयोगी के कर्मस्थली छीयै...।'

    चुनावी मौसम में यात्राओं और रैलियों का दौर

    चुनावी मौसम में यात्राएं और रैलियों का दौर हर दल की ओर से है, पर स्थानीय परिवेश में स्वयं को ढाल लोगों को अपनी ओर खींचने को जो अंदाज मोदी का है, वह बड़ी चुनौती है।

    मौलाना मजहरुल हक अरबी एवं फारसी विश्वविद्यालय, पटना के जनसंचार विभाग के पूर्व अध्यक्ष डॉ. मुकेश कुमार कहते हैं कि स्थानीय भाषा और बोली से शुरुआत के कारण आम जन उनकी सभाओं में खुद को सहज पाते हैं।

    स्थानीय संस्कृति की नब्ज पकड़ना अहम

    वह स्थानीय संस्कृति और विशेषताओं से लोगों को पहले जोड़ते हैं। जब तारतम्य स्थापित हो जाता है तो अपनी बात रखते हैं। यह विशेषता है।

    बेगूसराय में जब गंगा पर बने पुल का उद्घाटन करने आए थे तो हाथ में गमछा लेकर चलने का अंदाज उनका बिहारीपन दर्शा रहा था।

    मगध विश्वविद्यालय के कुलपति और राजनीति विज्ञान के प्राध्यापक प्रो. एसपी शाही कहते हैं कि 2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद से मोदी बिहार में 80 से अधिक दौरे कर चुके हैं, जिसके कारण यहां के चप्पे-चप्पे से परिचित हैं।

    शेखपुरा, लखीसराय, शिवहर, किशनगंज व खगड़िया को छोड़कर दें तो राज्य के सभी जिलों में चुनावी सभा कर चुके हैं।

    2015 में 30 सभाएं की थीं

    2015 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने सर्वाधिक 30 सभाएं अलग-अलग जिलों में की थी। इस विधानसभा चुनाव में जदयू एनडीए से अलग होकर राजद के साथ चुनाव मैदान में था।

    2019 के लोकसभा चुनाव में नौ तथा 2024 के चुनाव में 16 सभा व रोड शो किया था। 2020 के विधानसभा चुनाव में जदयू एनडीए का हिस्सा रहा। इस वर्ष मोदी ने 23 अक्टूबर से तीन नवंबर तक 12 सभाएं की थी।

    पिछले विधानसभा चुनाव में एक दिन में चार-चार सभा की थी। इस बार के चुनाव से पहले ही राहुल गांधी और तेजस्वी की जोड़ी राज्य में काफी सक्रिय है, इसे देखते हुए प्रधानमंत्री की सभा इस बार भी अधिक होने की संभावना व्यक्त की जा रही है।

    सियासी जानकार क्या कहते हैं?

    प्रो. शाही कहते हैं कि कि विशेषज्ञों की टीमें सभी बड़े नेताओं के लिए काम करती है। कहां क्या बोलना है, यह संबंधित जननेता की इच्छा शक्ति पर निर्भर करता है।

    टीम क्षेत्र के मुद्दे, भूगोल, इतिहास, संस्कृति, विरासत आदि की जानकारी देती है। कौन कितने सहज तरीके से इसे बता पाते हैं, यह मायने रखता है।

    इस बार के विधानसभा चुनाव में राज्यस्तरीय मुद्दों के साथ-साथ स्थानीयता का पुट और लोगों तक अपनी बात पहुंचा पाने की भी कड़ी चुनौती होगी।

    यह भी पढ़ें- Bihar Election 2025: शादी; बारात और 'पेट पूजा' थी रघुवंश बाबू की अनोखी शैली, चुनाव प्रचार का रोचक किस्सा

    यह भी पढ़ें- Bihar Election 2025: बिहार में 1. 74 लाख मतदाताओं का क्या होगा? वोटर लिस्ट में नाम जुड़ेंगे या हटेंगे