बिहार में पीठा दिवस:गांव से निकलकर महानगरों की थाली और दावतों तक पहुंचा पीठा
बिहार का पारंपरिक व्यंजन पीठा अब गांवों से निकलकर शहरों और महानगरों तक पहुंच गया है। दैनिक जागरण 'पीठा दिवस' के माध्यम से इस विरासत का जश्न मनाता है। ...और पढ़ें

बिहार में पीठा दिवस
जागरण संवाददाता, पटना। चावल के आटे की नर्माइश और गुड़ की मिठास। पीठा आज तो बिहार के गांव-गांव में त्योहार सा माहौल बन जाता है। कभी गांव की रसोई तक सीमित रहने वाला यह व्यंजन अब शहरों की रसोई, ऑफिस की पार्टियों और अलग-अलग राज्यों और महानगरों तक पहुंच चुका है। पीठा की इसी विरासत को सजाने के उद्देश्यों से दैनिक जागरण ने पीठा दिवस का आयोजन किया।
आज के दौर का स्वाद बदलता है, स्वाद बदलता है, लेकिन परंपरा आज भी वैसी ही बनी हुई है। आज बिहार, दक्षिण के राज्यों सहित देश और मुंबई जैसे महानगरों तक अपनी संस्कृति फैल रहा है। पीठा का पीठा तब भी बहुत था और आज भी है, अर्वाचीन निवासियों के लिए पीठा हमेशा जैसे रसोई का हिस्सा रहा है। नालंदा में धान की कई पैदावार होती है। जैसी हो, धान कटता, भिगोया, चावल से पीठा तैयार किया जाता है। इस 20-30 किलो पीठा बनाने वाली महिलाओं का काम एक सांस्कृतिक धरोहर के रूप में भी देखा जाता है।
पीठा: स्वाद ही नहीं, स्वास्थ्य का खजाना
पीठा केवल एक पारंपरिक व्यंजन नहीं है, बल्कि आयुर्वेदिक दृष्टिकोण से यह संपूर्ण पोषण का स्रोत भी है। आयुर्वेद के अनुसार, मीठे और नमकीन दोनों तरह के पीठे शरीर को ऊर्जा, पाचन शक्ति और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में सहायक होते हैं। इसमें चावल का आटा, नारियल, गुड़, खजूर, घी और अन्य तटीय मसालों का मिश्रण होता है, जो शरीर की गर्मी को नियंत्रित करने, रक्त संचार बढ़ाने और हड्डियों और मांसपेशियों को मजबूत बनाने में मदद करता है। गुड़ और तटीय चीनी का मिश्रण खून की कमी, थकान और पेट की समस्याओं में लाभकारी माना जाता है।
राज्य के प्रमुख आयुर्वेदिक और चिकित्सा विशेषज्ञों के अनुसार, पीठा मुख्य रूप से चावल के आटे, नारियल, खजूर या गुड़ और घी से तैयार किया जाता है। यह मिश्रण शरीर को आवश्यक पोषण देने के साथ-साथ रोग प्रतिरोधक क्षमता को भी बढ़ाता है। यह व्यंजन बच्चों, वृद्धों और जवानों सभी के लिए लाभकारी माना जाता है। खासकर सर्दियों में पीठा का सेवन शरीर की गर्मी बनाए रखने और प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करने में मदद करता है।
पीठा दिवस की परंपरा और तैयारी
बिहार के गांवों में पीठा बनाना एक पारंपरिक और सामूहिक गतिविधि रही है। आमतौर पर महिलाओं के समूह मिलकर पीठा तैयार करते हैं। पहले चावल को भिगोकर सुखाया जाता है, फिर इसे पीसकर महीन आटा बनाया जाता है। इसके बाद नारियल, गुड़ या खजूर मिलाकर हल्की आंच पर पकाया जाता है। तैयार पीठा को छोटे-छोटे टुकड़ों में काटकर भाप में पकाया जाता है। इस प्रक्रिया में प्रत्येक कदम पर परंपरा और स्वाद का ध्यान रखा जाता है।
पीठा तैयार होने के बाद इसे सजाने और परोसने की खास परंपरा है। इसमें स्वाद और सुगंध के साथ-साथ स्वास्थ्य के लाभ भी छिपे होते हैं। शहरों में लोग इसे ऑफिस पार्टी, सामाजिक आयोजन और त्योहारों में परोसते हैं। पटना और अन्य महानगरों में पीठा बनाना और बांटना एक लोकप्रिय सामाजिक गतिविधि बन गई है, जो लोगों को एक साथ जोड़ती है।
पीठा बनाने में सबसे पहले चावल को भिगोकर सुखाया जाता है। इसके बाद उसे पीसकर महीन आटा बनाया जाता है। भाप में पीठा पकाने से नारियल में गुड़ मिलाकर हल्की आंच पर पकाया जाता है। तैयार पीठा को छोटे-छोटे टुकड़ों में काटकर भाप में पकाया जाता है। पटना और आसपास के शहरों में इसे त्योहारों, ऑफिस पार्टियों और सामाजिक आयोजनों में परोसा जाता है।
दैनिक जागरण की पहल पर हर वर्ष 31 दिसंबर को उत्साह के साथ मनाया जाता है पीठा दिवस। मीठा और नमकीन दोनों तरह का बनता है पीठा, ठंड में देता है गर्मी का अहसास। हर साल 31 दिसंबर को मनाया जाने वाला पीठा दिवस अब बिहार की संस्कृति-संस्कृति में खास पहचान बना चुका है।
पीठा केवल पारंपरिक व्यंजन नहीं है, बल्कि आयुर्वेद के अनुसार यह संपूर्ण पोषण में शरीर को ऊर्जा, पाचन और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाले संपूर्ण आहार माने जाते हैं। नया चावल से बने ये व्यंजन ऋतुचक्रों के सिद्धांत पर आधारित हैं। आयुर्वेद के अनुसार शरीर की जरूरी चीजें भी पीठा पूरी करता है।
पीठा में गुड़, खजूर, घी और तटीय सामग्री (तीसी) से बनाए जाते हैं। आयुर्वेद के अनुसार सर्दियों में पाचन क्षमता प्रबल होती है, इसलिए इसे प्रोटीन और जिंक युक्त आहार माना जाता है। गुड़ और तीसरी की प्रोटीन सामग्री हड्डियों को मजबूत करती है। इसमें नारियल का दूध से फैट, पचने में आसान व मिनरल्स, तीसरी की कैलोरी और प्रोटीन मिलते हैं। पीठा थकान, कमज़ोरी और पेट दर्द में राहत देता है।
पीठा बनाने का तरीका भी खास है। चावल को भिगोकर पीसना, नारियल, गुड़ या खजूर मिलाना और भाप में पकाना इस परंपरा का हिस्सा है। पटना के रहने वाली पूजा बताती हैं कि सिलिसिलेट में आना-जाना होता है। वहीं गर्मियों में पीठा बनाना है। देश के बंगाली लोग इसे मीठा कहते हैं। ऑफिस और पार्टियों में पीठा नाश्ता के तौर पर रखा जाता है।
पटना, बिहार के गांवों में पीठा बनाना और बांटना पारंपरिक तरीके से किया जाता है। महिलाएं समूह में मिलकर पीठा बनाती हैं। इस दिन लोग अपने नाम स्थान की जानकारी देते हुए अपनी तस्वीरें साझा करते हैं। काम में सिलिसिलेट की यात्रा होती है।
स्वाद ही नहीं, सेहत का खजाना भी है पीठा। आयुर्वेद के अनुसार यह शरीर की ऊर्जा बढ़ाने, पाचन सुधारने और रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत करने में मदद करता है। बच्चों के विकास, बुजुर्गों के हड्डियों और मांसपेशियों की मजबूती के लिए पीठा का सेवन लाभकारी है।
पीठा केवल खाना नहीं, बल्कि समाज और संस्कृति का उत्सव भी है। यह बिहार की सांस्कृतिक धरोहर को जीवित रखता है। शहरों और महानगरों तक इसका उत्सव फैल चुका है, जहाँ इसे बड़े उत्साह और उमंग के साथ मनाया जाता है।
हर साल 31 दिसंबर को मनाया जाने वाला पीठा दिवस न सिर्फ स्वाद और स्वास्थ्य से जुड़ा है, बल्कि बिहार की सांस्कृतिक पहचान को भी मजबूती देता है। यह त्योहार गांव से महानगरों तक, रसोई से दावतों तक और व्यक्तिगत खाने से सामूहिक उत्सव तक अपनी यात्रा को जारी रखे हुए है।

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