Patna Metro: पटना मेट्रो रेल डिपो भूमि अधिग्रहण मामले में नीतीश सरकार को राहत, जमीन मालिकों को झटका
पटना HC ने पटना मेट्रो डिपो से जुड़े भूमि अधिग्रहण मामले में राज्य सरकार को बड़ी राहत दी है। कोर्ट ने रानीपुर और पहाड़ी मौजे के भू-स्वामियों की अपीलों को खारिज कर दिया है। अब मेट्रो परियोजना के लिए भूमि अधिग्रहण का रास्ता साफ हो गया है। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि राज्य सरकार अब अधिग्रहित भूमि के बदले बढ़ा हुआ मुआवजा देने के लिए बाध्य नहीं होगी।

विधि संवाददाता, पटना। पटना हाई कोर्ट (Patna High Court) ने गुरुवार को बहुप्रतीक्षित पटना मेट्रो डिपो (Patna Metro Depot) से जुड़े कानूनी विवाद पर अपना निर्णय सुनाते हुए राज्य सरकार को बड़ी राहत दी है।
न्यायालय ने रानीपुर और पहाड़ी मौजे के भू-स्वामियों की ओर से दायर की गई दर्जनों अपीलों को खारिज कर दिया, जिससे अब मेट्रो परियोजना के लिए भूमि अधिग्रहण का रास्ता साफ हो गया है।
कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश आशुतोष कुमार और न्यायाधीश पार्थ सारथी की खंडपीठ ने इस मामले में निर्णय सुनाते हुए स्पष्ट कि पटना मेट्रो डिपो और टर्मिनल का निर्माण अपनी निर्धारित जगह पर ही होगा। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि राज्य सरकार अब अधिग्रहित भूमि के बदले बढ़ा हुआ मुआवजा देने के लिए बाध्य नहीं होगी।
खंडपीठ ने एकलपीठ के उस पूर्व आदेश को संशोधित कर दिया, जिसमें सरकार को अधिग्रहित जमीन के बदले भू-स्वामियों को 2014 में तय न्यूनतम सर्किल रेट को अद्यतन कर बढ़ी हुई मुआवजा राशि देने का निर्देश दिया गया था।
क्या है पूरा मामला?
पटना के बैरिया स्थित मेट्रो रेल टर्मिनल और डिपो निर्माण के लिए चिह्नित भूखंडों को लेकर विवाद उत्पन्न विवाद में स्थानीय भू-स्वामियों ने हाई कोर्ट में याचिका दायर कर दावा किया था कि इस भूमि पर घनी बस्ती है और सरकार ने नए भूमि अधिग्रहण कानून के तहत पुनर्वास की कोई योजना नहीं बनाई है।
दिसंबर 2023 में न्यायाधीश अनिल कुमार सिन्हा की एकलपीठ ने भू-स्वामियों की याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि व्यापक जनहित में मेट्रो यार्ड के स्थान को बदलना संभव नहीं है। हालांकि, कोर्ट ने सरकार को मुआवजा बढ़ाने का निर्देश दिया था।
इस निर्णय के विरुद्ध रंजीत कुमार, ललिता देवी समेत कई भू-स्वामियों ने दो जजों की खंडपीठ में अपील दायर कर अधिग्रहित भूमि को वापस करने की मांग की थी। उनका तर्क था कि इतने बड़े पैमाने पर सौ से अधिक परिवारों का पुनर्वास पटना शहर में संभव नहीं है।
पीके. शाही और अखिल सिब्बल ने रखी दलीलें
राज्य सरकार की ओर से महाधिवक्ता पीके. शाही और अधिवक्ता किंकर कुमार ने बहस करते हुए कोर्ट को बताया था कि निर्माण कार्य काफी आगे बढ़ चुका है और जिस डिपो के लिए अधिग्रहण की प्रक्रिया चल रही है, उसके निर्माण में 100 करोड़ रुपये से अधिक की राशि खर्च हो चुकी है। भू-स्वामियों का पक्ष सुप्रीम कोर्ट के वरीय अधिवक्ता अखिल सिब्बल (कपिल सिब्बल के पुत्र) ने रखा।
याचिकाकर्ताओं का कहना था कि उन्हें भूमि अधिग्रहण पर आपत्ति दर्ज कराने का मौका ही नहीं दिया गया। आरोप लगाया कि एक जून 2021 को प्रकाशित अखबारी नोटिस के आधार पर मात्र दो दिन में, यानी तीन जून 2021 तक, सभी आपत्तियां निपटा दी गईं, जो पूरी प्रक्रिया को संदेह के घेरे में लाता है।
इस निर्णय से पटना मेट्रो परियोजना को गति मिलने की आशा है, जबकि प्रभावित भू-स्वामियों को अब पहले दिए गए मुआवजे से ही संतोष करना होगा।
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