BPSC Bharti: सहायक अभियंता की नियुक्ति पर पटना HC ने लगाई रोक, नीतीश सरकार और बीपीएससी से मांगा जवाब
पटना हाई कोर्ट ने ग्रामीण कार्य विभाग में सहायक अभियंता (सिविल) के पदों पर संविदा के आधार पर की जा रही नियुक्तियों पर रोक लगा दी है। कोर्ट ने राज्य सर ...और पढ़ें

विधि संवाददाता, पटना। पटना हाई कोर्ट (Patna High Court) ने ग्रामीण कार्य विभाग में सहायक अभियंता (सिविल) के पदों पर संविदा के आधार पर की जा रही नियुक्तियों (Bihar Assistant Engineer Bharti) पर फिलहाल रोक लगा दी है।
न्यायाधीश हरीश कुमार की एकल पीठ ने श्याम बाबू एवं अन्य की याचिका पर सुनवाई करते हुए राज्य सरकार और बिहार लोक सेवा आयोग (बीपीएससी) को जवाबी हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया है।
याचिकाकर्ताओं ने क्या कहा?
याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश अधिवक्ता हर्ष सिंह ने अदालत को बताया कि ग्रामीण कार्य विभाग द्वारा गेट (ग्रेजुएट एप्टीट्यूड टेस्ट इन इंजीनियरिंग) स्कोर के आधार पर सहायक अभियंताओं की नियुक्ति के लिए विज्ञापन जारी किया गया है।
उन्होंने तर्क दिया कि हाई कोर्ट की खंडपीठ पहले ही एक अन्य मामले में गेट स्कोर के आधार पर नियुक्ति को अस्वीकार कर चुकी है, इसके बावजूद नया विज्ञापन जारी किया गया है।
13 फरवरी को होगी अगली सुनवाई
उल्लेखनीय है कि नौ जनवरी को ग्रामीण कार्य विभाग ने 231 सहायक अभियंताओं की संविदा नियुक्ति के लिए गेट स्कोर के आधार पर आवेदन आमंत्रित किए थे। अब इस मामले पर अगली सुनवाई 13 फरवरी को होगी।
गैर-सरकारी संस्कृत विद्यालयों से संबंधित प्रकरण में जवाब तलब
पटना हाई कोर्ट ने बिहार राज्य के गैर-सरकारी संस्कृत विद्यालयों के गैर-शिक्षण कर्मचारियों के लिए बनाए गए 2015 के सेवा-शर्त नियमों को चुनौती देने वाली याचिका पर राज्य सरकार से विस्तृत जवाब मांगा है। कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश अशुतोष कुमार एवं न्यायाधीश पार्थ सारथी की खंडपीठ ने बिहार संस्कृत प्राथमिक सह माध्यमिक शिक्षक संघ द्वारा दायर रिट याचिका की सुनवाई के दौरान उक्त आदेश दिया।
याचिकाकर्ताओं ने 2015 में अधिसूचित ''बिहार राज्य गैर-सरकारी मान्यता प्राप्त संस्कृत विद्यालय (माध्यम तक) गैर-शिक्षण कर्मचारियों की सेवा-शर्त नियम'' के नियम 04, 05, 10 और 11 को असंवैधानिक और मनमाना बताते हुए इसे रद करने की मांग की है।
इस मामले में याचिकाकर्ताओं का पक्ष अधिवक्ता दुर्गा नंद झा ने रखा। याचिकाकर्ताओं का कथन है कि नियम 04 निजी और गैर-सरकारी संस्कृत विद्यालयों में आरक्षण लागू करने का प्रयास करता है, जबकि ये विद्यालय राज्य सरकार के प्रत्यक्ष नियंत्रण में नहीं आते।
उन्होंने दावा किया कि नियम 05 प्रबंधन समिति के अधिकारों को सीमित करता है। इस नियम के तहत स्थानीय विज्ञापन और प्रधानाध्यापक की अनुशंसाओं को प्राथमिकता दी गई है, जो प्रबंधन समिति की स्वायत्तता में हस्तक्षेप है। याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि नियम 10 प्रधानाध्यापक के अधिकारों को बाधित करता है।
नियम 11 गैर-सरकारी संस्कृत विद्यालयों के कर्मचारियों की छुट्टियों को सीमित करता है, जबकि मदरसा और अन्य अल्पसंख्यक संस्थानों में अधिक छुट्टियों का प्रविधान है। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि 2015 के नियमों में कर्मचारियों के वेतन, छुट्टियों और अन्य लाभों में अल्पसंख्यक संस्थानों जैसे मदरसों के कर्मचारियों के समानता नहीं दी गई है।
राज्य सरकार ने मदरसों में शिक्षकों की स्वीकृत संख्या में कोई कटौती नहीं की है, जबकि संस्कृत विद्यालयों के शिक्षकों की संख्या में कटौती की गई है। आरक्षण और रोस्टर प्रणाली को निजी और गैर-सरकारी संस्थानों में लागू करना अनुचित और अवैध है। इस मामले की अगली सुनवाई 07 मार्च को होगी ।

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