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    निषाद वोट बैंक पर बिहार में सियासत तेज, महागठबंधन ने मुकेश सहनी को बनाया चेहरा; क्या है NDA का प्लान?

    Updated: Mon, 25 Aug 2025 07:48 PM (IST)

    बिहार में विधानसभा चुनाव के नज़दीक आते ही निषाद वोट बैंक की राजनीति फिर से शुरू हो गई है। एनडीए किसी चेहरे को आगे करने से बच रहा है जबकि महागठबंधन ने मुकेश सहनी को आगे किया है। बिहार में निषाद समाज की आबादी लगभग 7-8% है और कई सीटों पर उनका प्रभाव है। देखना होगा कि निषाद समाज किस गठबंधन को पसंद करता है?

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    एक बनाम कई चेहरे : निषाद राजनीति पर अब नया पैंतरा

    सुनील राज, पटना। विधानसभा के चुनाव नजदीक आते ही एक बार फिर निषाद वोट बैंक की राजनीति शुरू हो गई है। बिहार की राजनीति के दोनों गठबंधन निषाद वोट बैंक को अपने साथ करने के लिए अपने पत्ते सजाने में जुट गए हैं।

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    दोनों बड़े गठबंधनों इस समुदाय को साधने के लिए बिल्कुल अलग राह चुनी है। एनडीए फिलहाल किसी चेहरे को आगे करने से बच रहा है, जबकि महागठबंधन ने विकासशील इंसान पार्टी प्रमुख और गठबंधन के सहयोगी मुकेश सहनी को आगे कर निषादों को साधने में जुटा है।

    जानकारों के अनुसार, बिहार में निषाद समाज की आबादी तकरीबन 7-8 प्रतिशत के करीब है। हालांकि, विकासशील इंसान पार्टी निषाद और मल्लाह की आबादी 13 प्रतिशत से अधिक बताती है। बिहार की तीन दर्जन से अधिक सीटों पर निषादों का यह वोट बैंक बड़े उलटफेर करने की क्षमता रखता है। इस बात का एहसास दोनों गठबंधनों को है।

    यही कारण है कि दोनों गठबंधन निषादों की अनदेखी का जोखिम नहीं ले सकते। लिहाजा एनडीए के दो प्रमुख सहयोगी भाजपा और जदयू राजभूषण निषाद, हरि सहनी, अर्जुन सहनी और मदन सहनी को आगे कर निषाद-मल्लाह वोट को एकजुट करने में जुट गए हैं। एनडीए का स्पष्ट मत है कि निषाद समाज को एक परिवार या एक नेता तक सीमित नहीं रखा जाएगा।

    दूसरी ओर, महागठबंधन ने निषाद राजनीति की पूरी कमान विकासशील इंसान पार्टी के संस्थापक और महागठबंधन के सहयोगी मुकेश सहनी को सौंप दी है। सहनी की राजनीति मूल रूप से निषाद वोटरों पर है। हालांकि, वे इन दिनों निषाद की उप जातियों को एकत्र करने में जुटे हैं।

    कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी और विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव सहनी को वोटर अधिकार यात्रा में साथ रखकर सहनी को निषाद समाज का स्वाभाविक नेता साबित करने की कोशिश में जुटे हैं। सूत्रों की माने तो कांग्रेस का स्पष्ट मत है कि निषाद वोट बैंक को एकजुट करने के लिए किसी और चेहरे की जगह एक ही नेता को आगे किया जाए।

    चुनाव के पहले निषादों को लेकर चल रही राजनीति को देखते हुए यह सवाल जरूर उठाए जा रहे हैं कि निषाद समाज किस गठबंधन के मॉडल को पसंद करेगा। मुकेश सहनी इस पूरे समाज को एकजुट कर पाएंगे या फिर एनडीए की रणनीति इन्हें एक करेगी। बहरहाल सवालों के बीच यह तो साफ है कि आने वाले चुनाव में निषाद राजनीति बिहार की सियासत का एक बड़ा एजेंडा होगा।

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