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नई शिक्षा नीति में बढ़ेगी अभिभावकों की भागीदारी, बिहार का शिक्षा विभाग जुट गया है तैयारियों में

शिक्षा की योजनाओं को बनाते समय अब बच्चों के माता-पिता की भी भागीदारी सुनिश्चित होगी। बच्चों के हित में अभिभावकों की सलाह मानी भी जाएगी ताकि विद्यालयी शिक्षा के गुणात्मक विकास में शिक्षकों के साथ-साथ अभिभावकों की भागीदारी सुनिश्चित की जा सके।

By Shubh Narayan PathakEdited By: Published: Sat, 20 Nov 2021 10:55 AM (IST)Updated: Sat, 20 Nov 2021 10:55 AM (IST)
बिहार में बदलेगी स्‍कूली शिक्षा की व्‍यवस्‍था। प्रतीकात्‍मक तस्‍वीर

पटना, राज्य ब्यूरो। शिक्षा की योजनाओं को बनाते समय अब बच्चों के माता-पिता की भी भागीदारी सुनिश्चित होगी। बच्चों के हित में अभिभावकों की सलाह मानी भी जाएगी, ताकि विद्यालयी शिक्षा के गुणात्मक विकास में शिक्षकों के साथ-साथ अभिभावकों की भागीदारी सुनिश्चित की जा सके। यह प्रविधान नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में है, जिस पर अमल करने का निर्देश शिक्षा मंत्रालय ने राज्य सरकार को दिया है।

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नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के प्रविधान पर अमल करने में जुटा शिक्षा विभाग

शिक्षा विभाग ने अभी से विद्यालयों में आयोजित शैक्षणिक गतिविधियों में अभिभावकों की भागीदारी सुनिश्चित करने को कहा है। वैसे हाल में जारी एनुअल स्टेटस आफ एजुकेशन रिपोर्ट में इसकी भी आवश्यकता जताई गई है कि शिक्षा की योजनाएं बनाते समय बच्चों की शिक्षा में माता-पिता की भागीदारी को ध्यान में रखना चाहिए। माता-पिता के साथ विचार-विमर्श यह समझने के लिए आवश्यक है कि वे अपने बच्चों की कैसे मदद कर सकते हैं। कोरोना के चलते 18 माह बंद रहने के बाद विद्यालयों के खुलने और दो वर्षों में नामांकन में हुई बढ़ोतरी के मद्देनजर रिपोर्ट में सरकारी विद्यालयों और शिक्षकों को तैयार करने की आवश्यकता जताई गई है।

91.9 प्रतिशत बच्चों के पास किताबें

रिपोर्ट में अच्छी बात यह सामने आई है कि विद्यालयों में नामांकित 91.9 प्रतिशत बच्चों के पास वर्तमान कक्षा की पाठ्य-पुस्तकें उपलब्ध हैं। यह वर्तमान कक्षा की पाठ्य-पुस्तक वाले बच्चों की संख्या पिछले साल (2020) की तुलना में सरकारी और निजी विद्यालयों में बढ़ी है। रिपोर्ट के मुताबिक सरकारी विद्यालयों में  नामांकित 38 प्रतिशत बच्चों को घरों में पढ़ाई में मदद नहीं मिल पाती है। निजी विद्यालयों में नामांकित ऐसे बच्चे कम हैं, जिन्हें घरों में पढ़ाई में मदद नहीं मिल पा रही है। निजी विद्यालयों के ऐसे बच्चों का प्रतिशत 23.9 है।


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