योगी सरकार के इस फैसले पर NDA के घटक दलों के सुर अलग, JDU बोली- बिहार में इसकी जरूरत नहीं
उत्तर प्रदेश में जाति आधारित रैलियों पर रोक के आदेश पर एनडीए के घटक दलों की मिली-जुली प्रतिक्रिया आई है। उपेंद्र कुशवाहा ने जाति आधारित गणना का समर्थन किया जबकि संतोष कुमार सुमन ने दलित-पिछड़े समाज के लिए सम्मेलनों की आवश्यकता बताई। जदयू ने कहा कि बिहार में ऐसी पाबंदी की कोई आवश्यकता नहीं है क्योंकि यहां न्याय के साथ विकास का मॉडल है।

राज्य ब्यूरो, पटना। उत्तर प्रदेश में जाति आधारित रैलियों पर रोक के आदेश पर एनडीए के घटक दलों की प्रतिक्रिया मिली जुली है। राष्ट्रीय लोक मोर्चा के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा ने कहा कि पुलिस रिकॉर्ड में जातियों का उल्लेख न करने का निर्णय उचित है, लेकिन जाति आधारित संगठन के निर्माण और जातियों की रैली पर रोक के आदेश को वे उचित नहीं मानते हैं, क्योंकि केंद्र सरकार भी जाति आधारित गणना करा रही है। उसमें जाति का उल्लेख होगा।
उन्होंने कहा कि इस सच से भला कैसे इनकार किया जा सकता है कि आज भी जाति के आधार पर भेदभाव किया जा रहा है। रोक लगाने से पहले जाति आधारित भेदभाव को समाप्त करना होगा। तब जातीय संगठन और रैलियों की जरूरत भी नहीं रह जाएगी।
हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) के राष्ट्रीय अध्यक्ष संतोष कुमार सुमन ने कहा कि देश और राज्य में आरक्षण की व्यवस्स्था तो है ही, उसके लिए तो जाति बतानी ही पड़ेगी।
आदेश के अनुसार, सरकारी दस्तावेजों में जाति का जिक्र नहीं भी करेंगे, मगर जाति प्रमाण पत्र की जरूरत तो पड़ेगी ही। उन्होंने कहा कि दलित-पिछड़े समाज की एकजुटता के लिए, उन्हें मुख्य धारा में लाने के लिए कार्यक्रम और सम्मेलनों की जरूरत होती है। सामाजिक कार्यक्रमों पर रोक लगाना उचित नहीं है। इस पर विचार किया जाना चाहिए।
उधर, जदयू ने कहा कि बिहार में यह कोई समस्या नहीं है। जदयू के मुख्य प्रवक्ता एवं विधान परिषद सदस्य नीरज कुमार ने कहा कि बिहार में नीतीश कुमार ने न्याय के साथ विकास का मॉडल दिया है। यह सबके लिए है।
उन्होंने यह भी कहा कि हमें नहीं पता कि उत्तर प्रदेश सरकार ने किन कारणों से यह पाबंदी लगाई है। अगर यह अपराध पर नियंत्रण के लिए किया गया है तो अच्छी बात है। बिहार में इस तरह की पाबंदी की कोई जरूरत नहीं है।
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