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    Munger News: मुंगेर ग्रामीण बैंक के घोटाले से हिल गया था बिहार, मैनेजर था मास्टरमाइंड; 42 साल बाद हुई सजा

    मुंगेर में 1983-84 में हुए बैंक घोटाले में सजा का एलान कर दिया गया है। सीबीआई कोर्ट ने ग्रामीण बैंक मुंगेर के तत्कालीन शाखा प्रबंधक समेत पांच लोगों को तीन वर्ष की कठोर कारावास के साथ 50 हजार रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई है। तत्कालीन बैंक मैनेजर ने फर्जी तरीके से 76 बैंक खाते खोले थे। पशु ऋण भी लोगों को दिया था।

    By Sunil Raj Edited By: Sanjeev Kumar Updated: Tue, 28 Jan 2025 01:44 PM (IST)
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    मुंगेर ग्रामीण बैंक घोटाले में सीबीआई कोर्ट ने सुनाई सजा (जागरण)

    राज्य ब्यूरो, पटना। Munger News: सीबीआइ अदालत ने 1983-84 में हुए बैंक घोटाल में ग्रामीण बैंक मुंगेर के तत्कालीन शाखा प्रबंधक समेत पांच लोगों को तीन वर्ष की कठोर कारावास के साथ 50 हजार रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई है। मैनेजर ने शातिर तरीके से घोटाले को अंजाम दिया था। उस समय के घोटाले की सीबीआई जांच हुई थी।

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    1983-84 में हुआ था घोटाला

    यह घोटाला 1983-84 में हुआ था। सीबीआइ मामलों के विशेष न्यायाधीश, अदालत-1, पटना ने इंद्रेश मिश्रा (तत्कालीन शाखा प्रबंधक, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक, मुंगेर), ओम प्रकाश शर्मा (तत्कालीन फील्ड सुपरवाइजर, मुंगेर ग्रामीण बैंक, बरहिया), विनोद कुमार सिंह (डेवलपमेंट आफिसर, ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी, मुंगेर) और दो निजी व्यक्ति (बदन सिंह और सादन सिंह) को सजा सुनाई है।

    तत्कालीन मैनेजर इंद्रेश मिश्रा ने 76 बैंक खाते खोले थे

    इंद्रेश मिश्रा पर आरोप है कि इन्होंने ग्रामीण बैंक में शाखा प्रबंधक रहते हुए अन्य लोगों के साथ मिलकर वर्ष 1983-84 के दौरान फर्जी तरीके से 76 बैंक खाते खोले। इन खातों के माध्यम से 3,92,429 रुपयों की राशि फर्जी दस्तावेज बनाकर धोखाधड़ी से निकाली गई और उसका गबन किया गया।

    सीबीआइ ने बैंक फ्राड के इस मामले में 1997 में इंद्रेश मिश्रा समेत नौ लोगों के खिलाफ मामला दर्ज करते हुए अपनी जांच शुरू की थी।

    जांच में यह उद्भेदन हुआ कि बैंक अधिकारियों ने निजी व्यक्तियों (नकली आपूर्तिकर्ता) के साथ मिलकर आपराधिक साजिश रची। उन्होंने सामग्री की आपूर्ति के फर्जी दस्तावेज तैयार किए।

    शातिर तरीके से हुआ था घोटाला

    इसके अलावा तत्कालीन शाखा प्रबंधक इंद्रेश मिश्रा ने 25 फर्जी उधारकर्ताओं को पशु ऋण स्वीकृत और वितरित किया और भुगतान किया, जबकि वास्तव में कोई पशु या सामग्री आपूर्ति नहीं की गई थी।

    कुछ महीनों बाद, पशुओं को मृत दिखाया गया और ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी से दावा दायर किया गया। जांच पूरी होने के बाद सीबीआइ ने आरोप पत्र दाखिल किया।

    जिसमें आरोपियों को दोषी पाया गया और इन्हें तीन वर्ष की कठोर कारावास और 50 हजार रुपये के जुर्माना की सजा सुनाई गई।

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