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    IAS Sanjeev Hans: कौन हैं IAS संजीव हंस? जिन्हें 16 महीने बाद मिली पोस्टिंग

    Updated: Tue, 30 Dec 2025 07:28 PM (IST)

    बिहार प्रशासनिक महकमे में हुए फेरबदल में वरिष्ठ IAS संजीव हंस को 16 महीने बाद राजस्व पर्षद विभाग का अपर सदस्य नियुक्त किया गया है। उन पर गैंगरेप के आर ...और पढ़ें

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    IAS संजीव हंस

    डिजिटल डेस्क, पटना। बिहार प्रशासनिक महकमे में मंगलवार को बड़ा फेरबदल हुआ, जिसमें 10 भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) अधिकारियों को नई जिम्मेदारियां सौंपी गईं। इस तबादले की सबसे ज्यादा चर्चा 1997 बैच के वरिष्ठ IAS अधिकारी संजीव हंस को लेकर है, जिन्हें करीब 16 महीने बाद पोस्टिंग दी गई है। सामान्य प्रशासन विभाग द्वारा जारी अधिसूचना के अनुसार, पदस्थापना की प्रतीक्षा में चल रहे संजीव हंस को राजस्व पर्षद विभाग का अपर सदस्य बनाया गया है।

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    संजीव हंस का नाम उस वक्त सुर्खियों में आया था, जब उन पर गैंगरेप, आय से अधिक संपत्ति और मनी लॉन्ड्रिंग जैसे गंभीर आरोप लगे थे। हालांकि, पटना हाईकोर्ट ने उन्हें गैंगरेप मामले में बरी कर दिया था, लेकिन मनी लॉन्ड्रिंग और कथित काली कमाई से जुड़े मामलों में प्रवर्तन निदेशालय (ED) की जांच अब भी जारी है। इसी वजह से वे लंबे समय से बिना पोस्टिंग के थे।

    संजीव हंस बिहार कैडर के वरिष्ठ IAS अधिकारी माने जाते हैं। वे ऊर्जा, नगर विकास, आवास और अन्य अहम विभागों में महत्वपूर्ण पदों पर रह चुके हैं।

    उनके कार्यकाल के दौरान कई बड़े प्रोजेक्ट्स से उनका नाम जुड़ा रहा, लेकिन बाद में विवादों ने उनके प्रशासनिक करियर पर गहरा असर डाला।

    गैंगरेप मामले की जांच के दौरान ही उनके खिलाफ आय से अधिक संपत्ति और ब्लैक मनी से जुड़े तथ्यों के सामने आने का दावा किया गया था।

    जांच एजेंसियों के अनुसार, संजीव हंस और विधायक गुलाब यादव के ठिकानों से ऐसे कई दस्तावेज बरामद हुए थे, जिनमें बड़े पैमाने पर लेनदेन के सबूत बताए गए।

    ED ने चार शहरों में 20 से अधिक ठिकानों पर छापेमारी कर दस्तावेज, निवेश और संपत्तियों से जुड़े अहम साक्ष्य जुटाए थे। इन मामलों की जांच अभी भी विभिन्न एजेंसियों के स्तर पर चल रही है।

    गैंगरेप मामले में पीड़िता ने आरोप लगाया था कि संजीव हंस और गुलाब यादव ने उसके साथ कई बार दुष्कर्म किया और गर्भपात कराया गया।

    साथ ही बड़े पैमाने पर पैसों के लेनदेन, संपत्ति निवेश और हवाला कनेक्शन के भी आरोप लगाए गए थे। हालांकि अदालत से बरी होने के बाद संजीव हंस को इस केस में कानूनी राहत मिली, लेकिन अन्य मामलों ने उनकी मुश्किलें कम नहीं कीं।

    करीब 16 महीने बाद मिली इस पोस्टिंग को प्रशासनिक हलकों में अहम माना जा रहा है। सरकार के इस फैसले को एक तरफ नियमित प्रशासनिक प्रक्रिया के तौर पर देखा जा रहा है, तो दूसरी ओर यह सवाल भी उठ रहे हैं कि जांच के दायरे में चल रहे अधिकारी को इतनी अहम जिम्मेदारी क्यों दी गई।

    फिलहाल, संजीव हंस की नई भूमिका और जांच एजेंसियों की कार्रवाई—दोनों पर राजनीतिक और प्रशासनिक नजर बनी हुई है।

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