Bihar Politics: कांग्रेस के साथ हो गया 'खेला', MLC की 1 सीट से भी धोना पड़ा हाथ; ताकते रह गए राहुल-अखिलेश
विधान परिषद की 11 सीटों के लिए चुनावी कार्यक्रम की घोषणा हो चुकी है। सभी सीटें विधानसभा कोटे की हैं और संख्या बल के हिसाब से राजग को छह और महागठबंधन को पांच सीटें मिल रहीं। महागठबंधन के घोषित प्रत्याशियों में से चार राजद के और एक भाकपा (माले) से हैं। कांग्रेस की झोली खाली रह गई है। राजद ने कांग्रेस के साथ खेला कर दिया है।
राज्य ब्यूरो, पटना। कांग्रेस एक संकट से उबरती है तो सामने दुर्गति का दूसरा द्वार खुला मिलता है। बिहार में तो जैसे हताहत होना ही उसकी नियति हो गई हो। सामने लोकसभा का चुनाव है और उससे पहले बिहार विधान मंडल में संख्या बल से पार्टी अपेक्षाकृत कमजोर हो गई है। पहले दो विधायकों को भाजपा तोड़ ले गई और अब विधान परिषद की एक सीट से हाथ धोना पड़ रहा है।
कांग्रेस-जनों के मनोबल पर इसका प्रभाव स्वाभाविक है। अंदरखाने क्षोभ है, लेकिन कोई मुखर नहीं हो रहा। विधानसभा के पिछले चुनाव में कांग्रेस 19 सीटों पर सफल रही थी। उनमें से दो विधायकों (मुरारी प्रसाद गौतम और सिद्धार्थ सौरव) को भाजपा अपने पाले में कर चुकी है।
11 सीटों पर होगा चुनाव
विधानसभा अध्यक्ष नंदकिशोर यादव से कांग्रेस दल बदल कानून के तहत उन विधायकों की सदस्यता रद करने का आग्रह कर चुकी है, लेकिन अभी तक कोई निर्णय नहीं हुआ है। विधान परिषद में अभी कांग्रेस के चार सदस्य हैं। उनमें से प्रेम चंद मिश्रा का कार्यकाल छह मई को पूरा हो रहा है। उनके साथ रिक्त होने वाली 11 सीटों के लिए चुनावी कार्यक्रम की घोषणा हो चुकी है।
कांग्रेस की झोली खाली
सभी सीटें विधानसभा कोटे की हैं और संख्या बल के हिसाब से राजग को छह और महागठबंधन को पांच सीटें मिल रहीं। महागठबंधन के घोषित प्रत्याशियों में से चार राजद के और एक भाकपा (माले) से हैं। कांग्रेस की झोली खाली रह गई है।
बताते हैं कि इसका कारण राज्यसभा में प्रदेश अध्यक्ष डा. अखिलेश प्रसाद सिंह को लगातार दूसरा अवसर दिया जाना है। बिहार से राज्यसभा के छह सदस्य अप्रैल में सेवानिवृत्त होने वाले हैं। उनमें से एक कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष डा. अखिलेश प्रसाद सिंह हैं।
उन छह सीटों के लिए निर्विरोध निर्वाचन हो चुका है। अखिलेश दोबारा चुने जा चुके हैं। उसके लिए बिहार में कांग्रेस के पास विधायकों की पर्याप्त संख्या नहीं थी। उसे वाम दलों से सहयोग लेना पड़ा था। विधान परिषद में वह उपकार चुकता हुआ है।
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