Bihar Politics: चुनाव से पहले कांग्रेस का बड़ा दांव, क्या 21 नए चेहरे बिहार में कर पाएंगे कमाल? यहां समझें समीकरण
बिहार में कांग्रेस ने अपने संगठनात्मक जिलों में 40 अध्यक्ष नियुक्त किए हैं जिनमें से 14 सवर्ण बिरादरी से आते हैं। यह कदम पार्टी के पिछले रुख से अलग है जब वह अल्पसंख्यक पिछड़ा और अति पिछड़ा वोटों पर ध्यान केंद्रित करती थी। कांग्रेस का यह नया दांव अगड़ी जातियों के अपने पुराने वोटरों को लुभाने की रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है।
सुनील राज, पटना। देश में मंडल की राजनीति के बाद से बिहार जैसे प्रदेश में पिछड़ी जातियों का वोट सभी राजनीतिक दलों के लिए तुरुप का इक्का रहा है।
कांग्रेस भी अल्पसंख्यक, पिछड़ा, अति पिछड़ा वोट को अपना परंपरागत वोट बताती रही है, लेकिन इस वर्ष बिहार में होने वाले विधानसभा चुनाव के ऐन पहले पार्टी ने अपने 40 संगठनात्मक जिलों में जिन 40 अध्यक्षों की नियुक्ति की है उनमें 14 सवर्ण बिरादरी से आते हैं।
पांच दलित, सात अल्पसंख्यक, 10 ओबीसी, तीन अतिपिछड़ा समाज और एक वैश्य समाज से आते हैं। यह पहला मौका नहीं है, इसके पूर्व पार्टी के पूर्व अध्यक्ष डॉ. अखिलेश प्रसाद सिंह ने मई 2023 में 39 जिलों में अध्यक्ष नियुक्त किए थे, उनमें 25 जिलों की कमान सवर्ण अध्यक्षों को दी गई थी।
इनमें 11 भूमिहार, पांच राजपूत, आठ ब्राह्मण और एक कायस्थ बिरादरी के थे। इनके अलावा चार यादव, पांच मुस्लिम, तीन पासवान और एक रविदास बिरादरी से आते थे। इन जिलाध्यक्षों में दो महिलाएं भी थी। 2023 की कमेटी की अपेक्षाकृत नई कमेटी में अगड़ों की संख्या में काफी कमी आई है।
कांग्रेस के बिहार प्रभारी कृष्णा अल्लावारू ने 27 मार्च को जिला और प्रखंड के संगठन में बदलाव के लिए एक स्क्रीनिंग कमेटी बनाई थी।
इस कमेटी ने महज चार दिनों में जिलों का आकलन करने के बाद अपनी अनुशंसा केंद्रीय हाईकमान को भेजी थी। जिसके बाद नए 21 चेहरों को पार्टी में जिलाध्यक्ष की जिम्मेदारी दी गई है। जबकि 19 पुराने चेहरों को वापस जिलाध्यक्ष पद का जिम्मा दिया गया है।
पार्टी के अंदर चल रही ये चर्चा
पार्टी के अंदरखाने भी जिलाध्यक्षों के 14 पद सवर्णो को देने को लेकर दबी जुबान चर्चा होनी शुरू हो गई है। हालांकि कांग्रेस मीडिया विभाग के अध्यक्ष राजेश राठौड़ कहते हैं।
नए जिलाध्यक्षों को लेकर कोई शंका, विवाद नहीं है। कांग्रेस सबको साथ लेकर चलने में विश्वास करती है। जिलाध्यक्षों की नियुक्ति में भी इसका ख्याल रखा गया है।
तीन दशकों के बाद काफी कमजोर हुई कांग्रेस
- हालांकि, पार्टी के बाहर राजनीतिक गलियारों में इस बात की चर्चा है कि कांग्रेस मंडल की राजनीति के तीन दशकों के बाद बिहार में काफी कमजोर हुई है।
- ऐसे में वह नया दांव चलकर अगड़ी जातियों के अपने पुराने वोटरों को लुभाने में जुटी है। साथ ही दलित, पिछड़ा, अति पिछड़ा का हिमायती होने का दावा भी कर रही है।
- बहरहाल कांग्रेस अपने इस प्रयोग में कितना सफल होगी इसका निर्णय तो विधानसभा चुनाव 2025 के बाद ही हो पाएगा।
यह भी पढ़ें-
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।