Bihar Politics: निषाद समाज का दिल जीतने का हर जतन कर रही भाजपा, अब क्या करेंगे मुकेश सहनी?
भाजपा बिहार में निषाद समाज को अपने पाले में लाने के लिए सक्रिय है। मुकेश सहनी के महागठबंधन में जाने के बाद भाजपा ने निषाद नेताओं को महत्व दिया। रमा नि ...और पढ़ें

निषाद समाज का दिल जीतने का हर जतन कर रही भाजपा, अब क्या करेंगे मुकेश सहनी?
राज्य ब्यूरो, पटना। 'सन ऑफ मल्लाह' की शोशेबाजी के साथ बिहार की राजनीति में उथल-पुथल की जुगत में लगे मुकेश सहनी को विधानसभा के इस चुनाव ने बुरी तरह से निराश किया है। भाजपा तभी से इस अवसर की ताक में थी, जब सहनी उसका साथ छोड़कर महागठबंधन के पाले में चले गए थे। इस बार निषाद समाज का अधिसंख्य वोट एनडीए के खाते में आया है।
पुरस्कार स्वरूप समाज की रमा निषाद मंत्री बनाई गई हैं। अब पटना में उनके दिवंगत हो चुके श्वसुर कैप्टन जयनारायण निषाद की प्रतिमा की स्थापना होगी, जो केंद्र में राज्य मंत्री रह चुके हैं।
मुजफ्फरपुर और उसके आसपास के क्षेत्र में कैप्टन का प्रभाव रहा है, जहां निषाद समाज की जनसंख्या ठीक ठाक है। मखाना बोर्ड के गठन के बाद कैप्टन की प्रतिमा स्थापना और मत्स्य पालन की योजनाओं को प्राथमिकता देकर भाजपा इस समाज को पूर्णतया आकृष्ट करने के लिए प्रयासरत है।
जिस अति-पिछड़ा वर्ग (ईबीसी) को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के लिए प्रतिबद्ध बताया जाता है, निषाद उसके अंश है। 22 उप जातियों में विभाजित यह समाज बिहार की जनसंख्या में समग्रता में 9.64 प्रतिशत हिस्सेदारी रखता है। इस जनसंख्या के साथ यह ईबीसी का सबसे बड़ा वर्ग हो जाता है।
जाति आधारित गणना का यह आकलन है और इसमें अकेले निषादों की जनसंख्या ही 2.61 प्रतिशत है। इस जनसंख्या ने ही मुकेश सहनी को बिहार की राजनीति में दांव आजमाने का संबल दिया, जो फिल्मों की शूटिंग के लिए स्टेज बनाने में अपनी सिद्धस्तता के साथ मुंबई में एक सफल कारोबारी के रूप में पांव जमा चुके हैं।
2020 के विधानसभा चुनाव में भाजपा इस वर्ग को रिझाने में सफल रही। तब सहनी उसके साथ थे। उनकी विकासशील इंसान पार्टी के चार विधायक बने थे। जीत के इस स्वाभाविक अभिमान में सहनी उत्तर प्रदेश में भी हुंकार भरने लगे। भाजपा ने लंगड़ी मार दी। अंतत: वे महागठबंधन में चले गए। उसी के बाद भाजपा में निषाद समाज से आने वाले नेताओं की कद्र बढ़ गई।
बिहार में हरि सहनी मंत्री बनाए गए। मुजफ्फरपुर में तीन चुनाव जीत चुके अजय निषाद को 2024 के लोकसभा चुनाव में बेटिकट करने से पहले भाजपा ने उनके स्थानापन्न डॉ. राजभूषण निषाद को मैदान में उतारा। पहली बार सांसद बनकर भी वे नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाले मंत्रिमंडल में स्थान पाए।
तब तक अजय को महागठबंधन में जाने की भूल की अनुभूति हो चुकी थी। कैप्टन उनके पिता थे, जिनके दायरे तक बिहार में निषाद समाज की राजनीति सिमटी हुई थी। महागठबंधन, विशेषकर राजद, के कैडर माने जाने वाले यादवों से निषादों की बहुत नहीं निभती।
इस गुणा-गणित की परख हो जाने के बाद अजय भाजपा में लौट आए। पत्नी रमा को सरकार में मिली कुर्सी से अब तो बांछें ही खिल आई हैं। कैप्टन को भाजपा निषाद समाज का प्रतीक पुरुष मान चुकी है, जिनकी पुण्यतिथि पर मंगलवार को उप मुख्यमंत्री सम्राट चौधरी पटना में उनकी प्रतिमा स्थापित किए जाने की घोषणा कर चुके हैं। यह वस्तुत: निषाद समाज को अपने संगठन के इर्द-गिर्द समेट रखने की रणनीति है।

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